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    Bihar Election Result 2025: बिखरा कुनबा, टूटी रणनीति; रणनीति के स्तर पर फेल रहा महागठबंधन

    Updated: Fri, 14 Nov 2025 03:48 PM (IST)

    बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन की रणनीति विफल रही, जिससे गठबंधन कमजोर हो गया। पारिवारिक कलह और रणनीतिक गलतियों ने महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। रणनीति के स्तर पर महागठबंधन की कमजोर योजना और कार्यान्वयन के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। गठबंधन के भीतर समन्वय की कमी भी एक बड़ी समस्या थी। महागठबंधन के घटक दलों के बीच आपसी मतभेद और बिखराव ने चुनावी प्रदर्शन को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।

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    सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन की करारी हार सिर्फ सीटों का गणित नहीं, बल्कि रणनीति, नेतृत्व, समन्वय और चुनावी जमीन की अनदेखी का समग्र परिणाम है। यह हार कई स्तरों पर गहरे संकेत छोड़ती है। चुनाव के नतीजे विपक्षी राजनीति के संकट और महागठबंधन की आंतरिक टूट-फूट को उजागर करती है जिसकी वजह से महागठबंधन सत्ता की रेस में कहीं पीछे रह गया। महागबंधन की हार के पांच प्रमुख कारण रहे। ये कारण ही उसकी पराजय की वजह बने।

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    नेतृत्वहीनता और समन्वय की कमी:

    महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी उसके नेतृत्व का अस्थिर ढांचा रहा। चुनाव के शुरुआती दौर में राजद और कांग्रेस के बीच नेतृत्व और समन्वय और चेहरे को लेकर जो विवाद हुए उसे जनता और मतदाताओं ने भी महसूस किया। चुनाव के पहले जब राजनीतिक दलों को सीटों के तालमेल से लेकर प्रचार की रणनीति तक पर काम करते हैं उस वक्त महागठबंधन के तमाम सहयोगी दल सीटों की खींचतान, मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के फेस जैसे मामलों को लेकर आपस में उलझे रहे।

    तेजस्वी यादव भी रणनीति के मामले में फेल साबित हुए। उन्होंने भले पूरे प्रदेश भर मे घूम-घूम कर चुनावी सभाएं की, लेकिन गठबंधन के साथी दलों के साथ मुद्दों और सीटों को लेकर कोई ठोस समन्वित रणनीति बनाने में वे पूरी तरह असफल साबित हुए।

    जातीय व सामाजिक समीकरणों का गलत आकलन:

    बिहार की राजनीति में सामाजिक समीकरण सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि भरोसे और जमीन पर डिलीवरी से जुड़े होते हैं। इस बार महागठबंधन ने जातीय गणित का अति-विश्वासपूर्वक इस्तेमाल किया, लेकिन सामाजिक परिवर्तन और नए समीकरणों को समझने में चूक गया। निम्नवर्गीय और पिछड़े तबकों में एक नई राजनीतिक चेतना उभर रही थी, जिसका लाभ एनडीए ने बेहतर ढंग से उठाया।

    महिला मतदाताओं, पहली बार वोट करने वाले युवाओं और गैर-परंपरागत जातीय समूहों में महागठबंधन अपनी पकड़ नहीं बना सका। विपक्ष सिर्फ पुराने वोट बैंक के भरोसे चुनाव जीतने बैठा था, जबकि मतदाता नए मुद्दों, नए चेहरे और स्थिर नेतृत्व की तलाश में था।

    कांग्रेस की कमजोर कड़ी और आंतरिक कलह:

    महागठबंधन का एक बड़ा स्तंभ होने के बावजूद कांग्रेस इस चुनाव में लगातार बोझ की तरह साबित हुई। पार्टी में टिकट वितरण को लेकर भारी नाराजगी थी। कई सीटों पर गलत प्रत्याशी चयन की वजह से स्थानीय समीकरण बिगड़ गए। कृष्णा ल्लावारू जैसे प्रभारी नेताओं की कार्यशैली से कार्यकर्ताओं में असंतोष रहा।

    राजद-कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग को लेकर गहरे मतभेद शुरू से अंत तक बने रहे, नतीजा यह हुआ कि संयुक्त लड़ाई कमजोर, बिखरी और अविश्वसनीय दिखी। कांग्रेस की कमजोर ग्राउंड मशीनरी और प्रचार की अनियमितता महागठबंधन के लिए घाटे का सौदा साबित हुई।

    मुद्दों की जुगलबंदी में पिछड़ना:

    महागठबंधन चुनावी एजेंडा तय करने में पूरी तरह असफल रहा। रोजगार, महंगाई, शिक्षा और कृषि जैसे बड़े मुद्दे जरूर उठाए गए, लेकिन जो नैरेटिव बनना चाहिए था, वह नहीं बन पाया। इसके उलट एनडीए ने विकास, कानून-व्यवस्था और स्थिर सरकार के माडल को आक्रामक तरीके से जनता तक पहुंचाया। महागठबंधन की आवाज मतदाताओं तक बिखरी हुई और अस्पष्ट पहुंची। तेजस्वी यादव की सभाओं में भी वही पुराने वादों की पुनरावृत्ति होती दिखी, जिससे युवाओं को नई दिशा का भरोसा नहीं मिला।

    उम्मीदवार चयन, संगठनात्मक ढिलाई और स्थानीय असंतोष:

    गठबंधन की तीसरी बड़ी समस्या थी—स्थानीय स्तर पर संगठन की निष्क्रियता। महागठबंधन कई क्षेत्रों में समय पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में नाकाम रहा। राजद के कई पुराने मजबूत वोट बैंक इलाके में भी बूथ प्रबंधन कमजोर पड़ा। इसके अलावा, जिन सीटों पर उम्मीदवार बदले गए, वहां स्थानीय असंतोष खुलकर उभर आया। कांग्रेस के कई उम्मीदवारों को जनता न पहचानती थी, न स्वीकार कर पाई। युवाओं और महिलाओं को भी लुभाने और अपनी ओर आकर्षित करने में महागठबंधन सफल नहीं हो पाया।

    महागठबंधन की इस करारी हार ने यह स्पष्ट कर दिया कि चुनाव केवल पुराने समीकरणों, नारों या गठजोड़ से नहीं जीते जाते। नेतृत्व की मजबूती, संगठनात्मक सक्रियता और स्पष्ट राजनीतिक नैरेटिव ही जीत की कुंजी हैं। इस चुनाव में महागठबंधन ने वही खोया जो उसे मजबूत बनाता था समीकरण, रणनीति, समझ और जमीनी पकड़। अगर विपक्ष भविष्य में वापसी की उम्मीद रखता है, तो उसे इन पांच क्षेत्रों में गहरी सुधारात्मक कार्रवाई करनी होगी।