राहुल की 1300 किमी यात्रा फेल: 'मतदाता अधिकार यात्रा' का नहीं दिखा कोई असर, कांग्रेस 6 सीटों पर सिमटी
राहुल गांधी की 1300 किलोमीटर की 'मतदाता अधिकार यात्रा' मतदाताओं को जागरूक करने में विफल रही। कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा और वह केवल 6 सीटों पर सिमट गई। यात्रा का अपेक्षित प्रभाव न दिखने से इसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न लग गया है।

वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी
डिजिटल डेस्क, पटना। राहुल गांधी ने बिहार में “वोट चोर, गद्दी छोड़” का नारा लगाते हुए चुनावी माहौल बनाने की कोशिश की। इस दौरान उन्होंने 1,300 किलोमीटर लंबी मतदाता अधिकार यात्रा भी निकाली, जो कि 25 जिलों से होते हुए 110 सीटों से गुजरी।
गमछे से लेकर भोजपुरी भाषा, मखाना, मछली पकड़ना और साइकिल यात्रा जैसे स्थानीय रंगों के सहारे उन्होंने खुद को बिहारी संस्कृति से जोड़ने का हर संभव कोशिश की।
इसके बावजूद मतदाता इस अभियान से प्रभावित नजर नहीं आए और कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा। पार्टी दहाई का आंकड़ा छूने के लिए भी जूझती दिखी।
2020 में मिली 19 सीटों की तुलना में इस बार कांग्रेस का समर्थन और भी ज्यादा खराब रहा। 61 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस ने सिर्फ 6 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी।
‘मतदाता अधिकार यात्रा’ नहीं पड़ा कोई असर
शुरुआत में यह यात्रा भारी भीड़ और उत्साह के कारण कांग्रेस के उत्थान का संकेत देती दिख रही थी। लेकिन समय के साथ यह यात्रा ज्यादा कमाल नहीं दिखा पाई।
विश्लेषकों के अनुसार, पार्टी प्रतीकात्मक अभियानों पर ज्यादा निर्भर रही, जबकि बूथ स्तर पर मजबूत संगठन बनाने की कोशिश नजर नहीं आई। नतीजा यह निकला कि जनता से जुड़ाव बनाने में अभियान कमजोर पड़ गया।
हिंदी पट्टी में कांग्रेस की लगातार चुनौतियां
कांग्रेस पहले ही हिंदी भाषी राज्यों में लंबे समय से संघर्ष कर रही है। 2024 लोकसभा चुनावों में उम्मीद जगने के बाद भी 2025 के विधानसभा नतीजों ने कई राज्यों में संगठनात्मक कमजोरी को उजागर कर दिया।
हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। हरियाणा में जीत के करीब पहुंचने के बावजूद गुटबाजी और स्पष्ट नेतृत्व की कमी भारी पड़ी।
महाराष्ट्र में एमवीए गठबंधन की थकान ने कांग्रेस की संभावनाएं कमजोर कर दीं। दिल्ली में पार्टी फिर से खाता भी नहीं खोल सकी। वहीं लोकसभा चुनाव के पहले 2023 में हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार का सामना करना पड़ा।
मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी की मजबूत चुनावी रणनीति और नरेंद्र मोदी की मौजूदा लोकप्रियता कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनी रही। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस पार्टी ने ज्यादा कुछ कमाल नहीं कर पाई।
वर्तमान में हिंदी पट्टी राज्य झारखंड ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा जहां कांग्रेस-झामुमो गठबंधन ने बेहतर तालमेल, कल्याणकारी नीतियों और क्षेत्रीय पहचान पर जोर देकर सत्ता बरकरार रखी।

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