Bihar Chunav: तरैया में कांटे की टक्कर, विकास बनाम जातीय समीकरण तय करेगा जीत का गणित
सारण जिले के तरैया विधानसभा सीट पर चुनावी मुकाबला दिलचस्प है। विकास और जाति समीकरणों के बीच, एनडीए, महागठबंधन और जनसुराज के उम्मीदवार जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं। एनडीए सरकार की योजनाओं को गिना रही है, तो महागठबंधन बेरोजगारी और महंगाई को मुद्दा बना रहा है।
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)
राणा प्रताप सिंह, तरैया (सारण)। सारण जिले की तरैया विधानसभा सीट पर इस बार का चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। विकास और जातीय समीकरण दोनों ही इस चुनाव में बराबरी से असर दिखा रहे हैं।
मतदाताओं के बीच चर्चाओं का दौर लगातार तेज है। कोई उम्मीदवारों से विकास की बात कर रहा है तो कोई जातीय संतुलन को ध्यान में रखकर मतदान का रुख तय कर रहा है।
सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशी और उनके समर्थक क्षेत्र के गांव-गांव में पहुंचकर जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं। चुनावी माहौल में उत्साह, जोश और रणनीति का अनोखा संगम देखने को मिल रहा है।
एनडीए के उम्मीदवार और वर्तमान विधायक पूरी ताकत के साथ मैदान में हैं। वे लगातार दौरे कर जनता को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की याद दिला रहे हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, सड़क और बिजली जैसी सुविधाओं को अपनी बड़ी उपलब्धि बताते हुए वे दावा कर रहे हैं कि तरैया ने एनडीए की सरकार पर भरोसा किया है।
उनका कहना है कि इस बार जनता जाति नहीं, विकास के नाम पर वोट देगी। उनके साथ भाजपा और जदयू के स्थानीय नेता भी लगातार क्षेत्र में प्रचार कर रहे हैं।
वहीं, महागठबंधन के राजद प्रत्याशी भी अपनी लोकप्रियता और संगठनात्मक मजबूती के सहारे मुकाबले को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। उनका कहना है कि अब जनता झूठे वादों से ऊब चुकी है। बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और किसानों की समस्या उनके मुख्य चुनावी मुद्दे हैं।
वे गांव-गांव जाकर लोगों को यह भरोसा दिला रहे हैं कि अगर राजद की सरकार बनती है तो युवाओं को रोजगार और किसानों को राहत मिलेगी। उनके समर्थन में महागठबंधन के सभी घटक दल-कांग्रेस, माले और वामदलों के कार्यकर्ता एकजुट होकर प्रचार में जुटे हैं।
तीसरा विकल्प बनकर उभर रही जनसुराज
इन दोनों दिग्गजों के बीच जनसुराज पार्टी के प्रत्याशी भी तीसरा विकल्प बनकर उभरे हैं। जनसुराज की टीम मुख्य रूप से युवाओं और छात्रों के बीच सक्रिय है। उनका कहना है कि पुरानी राजनीति ने विकास की राह रोक दी है, अब तरैया को नए नेतृत्व की जरूरत है।
वे शिक्षा, रोजगार और पारदर्शी शासन को चुनावी एजेंडा बनाकर जनता से समर्थन मांग रहे हैं। पार्टी का फोकस युवा वर्ग और पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं पर है, जो परिवर्तन की उम्मीद में हैं।
चुनावी तस्वीर को और पेचीदा बना रहे हैं राजद के बागी निर्दलीय प्रत्याशी। टिकट न मिलने के बाद वे स्वतंत्र रूप से मैदान में उतर चुके हैं। उनका दावा है कि वे तरैया के स्थानीय मुद्दों को बेहतर समझते हैं और जनता अब बाहरी नेतृत्व से तंग आ चुकी है।
वे जातीय आधार पर वोटों में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे राजद का पारंपरिक वोट बैंक खिसकने की आशंका जताई जा रही है।
धरातल पर मतदाताओं की राय इस बार बंटी हुई दिखाई दे रही है। कुछ लोग जनक सिंह के कार्यकाल को सराहते हुए उन्हें विकासशील बताते हैं, तो कुछ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को जनता का आदमी मानते हैं। वहीं युवा मतदाताओं में बेरोजगारी और पलायन का मुद्दा गहराई से असर डाल रहा है।
ग्रामीण इलाकों में अब भी जातीय एकजुटता एक बड़ा कारक बनी हुई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में विकास और रोजगार को लेकर चर्चा जोरों पर है।
तरैया की गलियों, चौपालों और हाट-बाजारों में हर तरफ चुनावी चर्चा गर्म है। कहीं, रोड शो और नुक्कड़ सभाओं में नारे गूंज रहे हैं तो कहीं समर्थक पोस्टर-बैनर लगाकर माहौल बना रहे हैं। चारों प्रमुख प्रत्याशी अपनी-अपनी रणनीति के साथ वोटरों को रिझाने में जुटे हैं।
अब देखना यह होगा कि तरैया की जनता इस बार विकास को तरजीह देती है या जातीय समीकरण को। मुकाबला बेहद कांटे का है और नतीजों का अनुमान लगाना अभी कठिन। लेकिन इतना तय है कि तरैया विधानसभा का यह चुनाव पूरे सारण जिले का सबसे चर्चित और निर्णायक मुकाबला बन गया है।

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