Ratan Tata ने अपनी वसीयत में पेटडॉग का भी रखा ध्यान, जानिए अब कौन करेगा Tito की देखभाल
हाल ही में देश बड़े उद्योगपतियों में शामिल रतन टाटा का देहांत हुआ। उनके देहांत के बाद उनकी वसीयत (Ratan Tata Will) सामने आई। इस वसीयत में उनके भाई-बहन बटलर के साथ पेटडॉग Tito का नाम भी शामिल है। यह पहली बार है जब किसी भारतीय उद्योगपति के वसीयत में पेटडॉग के लिए अलग से प्रावधान किए गए हैं। पढ़ें पूरी खबर...
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। हाल ही में देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा ग्रुप का नेतृत्व करने वाले रतन टाटा (Ratan Tata) का देहांत हुआ था। रतन टाटा ने अपने पीछे लगभग 10,000 करोड़ रुपये की संपत्ति छोड़ दी है। अब सवाल आता है कि उनकी इस संपत्ति का ध्यान कौन-रखेगा।
रतन टाटा के वसीयत में उन्होंने अपनी संपत्ति में भाई जिमी टाटा, सौतेली बहनों शिरीन और डिएना जीजीभॉय, हाउस स्टाफ और अन्य लोगों के लिए काफी कुछ छोड़ा है। यहां तक कि उनकी वसीयत में पेटडॉग टीटो (Tito) के लिए भी प्रावधान है।
कौन-है टीटो के नए केयरटेकर
रतन टाटा ने पांच-छह साल पहले जर्मन शेफर्ड डॉग टीटो को गोद लिया था। यह कहना गलत नहीं होगा कि उनको जानवरों से कितना प्यार था। अब रतन टाटा ने अपने वसीयत में टीटो की'असीमित' देखभाल सुनिश्चित करने का प्रावधान किया है। यह भारत में पहली बार है जब किसी उद्योगपति के वसीयत में इस तरह का प्रावधान हो। विदेशों में इस तरह के प्रावधान सामान्य होते हैं पर भारत में यह काफी दुर्लभ है। माना जा रहा है कि यह पहली बार है जब किसी भारतीय उद्योगपति ने अपने वसीयत में ऐसा प्रावधान किए हैं।रतन टाटा के वसीयत के अनुसार टीटो की देखभाल की जिम्मेदारी रसोइए राजन शॉ को दी गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रतन टाटा के वसीयत में उनके बटलर सुब्बैया के लिए भी प्रावधान है। बता दें कि पिछले तीन दशकों से राजन शॉ और सुब्बैया रतन टाटा से जुड़े हैं।यह भी पढे़ं: Gold Jewellery खरीदने से पहले जानें कैसे तय होती है कीमत, ज्वैलर्स कौन-से कैलकुलेशन का करते हैं इस्तेमाल
शांतनु नायडू को क्या मिला
रतन टाटा के वसीयत में एग्जीक्यूटिव एसिसटेंट शांतनु नायडू का नाम भी है। रतन टाटा ने नायडू के वेंचर गुडफेलो (GoodFellow) में अपनी हिस्सेदारी छोड़ दी है। इसके अलावा उन्होंने नायडू के फॉरेन एजुकेशन के लिए लिया गया पर्सनल लोन (Personal Loan) भी माफ कर दिया। बता दें कि टाटा ग्रुप में चैरिटेबल ट्रस्ट्स के शेयरों को छोड़ने की परंपरा है, रतन टाटा ने भी इस परंपरा को जारी रखा।
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