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Rupee vs Dollar: डॉलर के मुकाबले नए निचले स्तर आया रुपया, क्या हैं इसके फायदे और नुकसान?

भारतीय रुपया बुधवार को डॉलर के मुकाबले 8 पैसे कमजोर हुआ। इसने 84.50 रुपये का अपना नया ऑल टाइम लो-लेवल बना लिया है। इससे सरकार और आरबीआई की परेशानी बढ़ रही है। आइए जानते हैं कि रुपये की वैल्यू में गिरावट आने की क्या वजहें हैं। साथ ही रुपये में गिरावट से क्या फायदा और क्या नुकसान हो सकता है।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Thu, 21 Nov 2024 05:41 PM (IST)
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वैश्विक अस्थिरता बढ़ने से भी रुपया लगातार कमजोर हो रहा है।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। यह गुरुवार को भी 8 पैसे गिरकर 84.50 (अनंतिम) के नए निचले स्तर पर बंद हुआ। रुपया दिन में कारोबार के दौरान 84.51 पैसे के स्तर को भी छू गया था। इससे पहले रुपये का सबसे निचला बंद स्तर 84.46 रुपये था, जो इसने 14 नवंबर को बनाया था।

अदाणी ग्रुप पर लगे धोखाधड़ी और रिश्वत के आरोपों ने इक्विटी मार्केट में विदेशी निवेशकों की निकासी को बढ़ावा दिया। इससे भारतीय बाजार से पूंजी का पलायन जारी है, जो रुपये को काफी चोट पहुंचा रहा है।

भारतीय करेंसी में गिरावट की वजह

  • विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली से रुपये पर दबाव बढ़ा।
  • क्रूड की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने भी रुपये की परेशानी बढ़ाई।
  • रूस-यूक्रेन तनाव से सेफ करेंसी के तौर पर डॉलर मजबूत हुआ।
  • वैश्विक अस्थिरता बढ़ने से भी रुपया लगातार कमजोर हो रहा है।
  • खाद्य वस्तुओं की महंगाई ने रुपये पर अतिरिक्त दबाव डाला है।

रुपये की वैल्यू में गिरावट से फायदा

किसी भी देश की करेंसी की वैल्यू में गिरावट से कितना फायदा होगा और कितना नुकसान, ये उसकी अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करता है। करेंसी में गिरावट से ज्यादा निर्यात करने वाले देशों को फायदा होता है, क्योंकि उनका निर्यात दूसरे देशों के मुकाबले सस्ता और प्रतिस्पर्धी हो जाता है।

अगर कोई बाहर से डॉलर भेजता है, तो उसकी भी वैल्यू रुपये में अधिक हो जाएगी। इससे टूरिज्म सेक्टर को भी बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि विदेशियों के लिए घूमने-फिरने या मेडिकल की लागत कम रहेगी।

रुपये की वैल्यू में गिरावट से नुकसान

भारत चूंकि निर्यात से अधिक आयात करता है, तो करेंसी की वैल्यू में गिरावट से कई नुकसान भी हैं। जैसे कि हमें क्रूड ऑयल और गोल्ड के लिए ज्यादा मूल्य चुकाना होगा। इससे देश में महंगाई के और अधिक बढ़ने का खतरा रहेगा। देश में विदेशी निवेश भी घट सकता है।

भारत के बहुत से बच्चे विदेश में पढ़ने के लिए जाते हैं। उनके लिए पढ़ाई और रहन-सहन का खर्च भी बढ़ जाएगा। इसे यूं समझिए कि जब रुपया की वैल्यू 70 पर थी, तो भारतीय छात्रों को एक डॉलर 70 रुपये में मिल जाता था। लेकिन, अब वह 84.50 पैसे में मिलेगा। यही चीज विदेश में घूमने-फिरने के लिए जाने वाले सैलानियों पर लागू भी होगी।

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