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क्या अब आरबीआई को भी अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरह ब्याज दरों में करनी चाहिए कटौती?

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की कटौती की है। दुनियाभर की कई अन्य विकसित इकोनॉमी भी ब्याज दरों में कमी कर रही हैं। हालांकि अभी आरबीआई ने ब्याज दरों में कटौती करने जैसा कोई संकेत नहीं दिया है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास का अभी पूरा फोकस महंगाई को काबू में रखने पर है। आरबीआई की अगली MPC मीटिंग दिसंबर में होगी।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Fri, 08 Nov 2024 05:27 PM (IST)
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आरबीआई हर दो महीने में ब्याज दरों की समीक्षा करता है।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने उम्मीद के मुताबिक गुरुवार देर रात नीतिगत ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की कटौती की। इससे पहले वाली मीटिंग में उसने ब्याज दरों को आधा फीसदी घटाया था। दुनिया की अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाएं भी ब्याज दरों में लगातार कटौती कर रही हैं।

यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने तीन बार दरों में कटौती की है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी दो बार दरों घटाई हैं। स्विट्जरलैंड, स्वीडन, कनाडा जैसी कई अर्थव्यवस्थाओं ने ढील दी है। चीन भी लंबे समय से किसी भी तरह से ब्याज दरों में राहत दे रहा है।

अब सवाल उठता है कि भारत में ब्याज दरें कब तक कम होंगी? आरबीआई अब किस बात का इंतजार कर रहा है? साथ ही, ब्याज दरें कम करना जरूरी क्यों हो गया है। आइए इन सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।

ब्याज दर (Repo Rate) क्या होती है?

नीतिगत ब्याज दर दरअसल देश में लोन पर इंटरेस्ट रेट को तय करती हैं। इसे अमूमन केंद्रीय बैंक तय करते हैं। इसका आसान-सा हिसाब यह है कि नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट जितनी कम रहेगी, आपको उतना ही सस्ता होम, कार या भी कोई अन्य लोन मिलेगा।

आरबीआई हर दो महीने में ब्याज दरों की समीक्षा करता है, लेकिन उसने फरवरी 2023 से नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है।

महंगाई का ब्याज दर से कनेक्शन

महंगाई का ब्याज दर से सीधा कनेक्शन है। ब्याज दरें अगर कम रहेंगी, तो लोगों को सस्ता लोन मिलेगा। वे घर या गाड़ी खरीदने जैसा खर्च बढ़ाएंगे। लोन का इस्तेमाल किसी आर्थिक गतिविधि जैसे निवेश (व्यवसाय में) या उपभोग (घर, मोबाइल फोन, छुट्टी) के लिए किया जाता है। जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो कर्ज  उठाव अधिक होता है।

इससे डिमांड और जीडीपी ग्रोथ के साथ महंगाई भी बढ़ती है। इस स्थिति में केंद्रीय बैंक अमूमन ब्याज दरों को बढ़ा देते हैं। इससे कर्ज महंगा हो जाता है और मार्केट में नकदी घटने लगती है। फिर धीरे-धीरे महंगाई काबू में आ जाती है।

RBI ब्याज दर क्यों नहीं घटा रहा?

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के मुताबिक, केंद्रीय बैंक का फिलहाल सबसे ज्यादा फोकस मुद्रास्फीति घटाने पर है। खासकर, खाद्य महंगाई ने आरबीआई को परेशान कर रखा है। आलू, प्याज और टमाटर जैसी सब्जियों के दाम लगातार आसमान पर बने हुए हैं। क्रूड ऑयल की अस्थिरता ने अलग परेशानी बढ़ा रखी है।

दास ने पिछले महीने एक इंटरव्यू में कहा था, 'जब मुद्रास्फीति 5.5 फीसदी पर हो और इसके आने वाले समय में ऊंचा बने रहने का अनुमान हो, तो ब्याज दरों में कटौती करना मुमकिन नहीं। खासकर, जब आर्थिक वृद्धि अच्छी गति से आगे बढ़ रही हो।'

ब्याज दरों में कटौती जरूरी क्यों

भारत की आर्थिक तरक्की की रफ्तार कुछ सुस्त पड़ रही है। एसबीआई के मुताबिक, सितंबर तिमाही में रियल जीडीपी ग्रोथ 6.5 फीसदी रह सकती है। इससे पहले ग्रोथ 7 फीसदी रहने का अनुमान था। कुछ आर्थिक जानकार आशंका जता रहे हैं कि पूरे वित्त वर्ष 2024-25 के लिए जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी से कम रह सकती है।

FMCG कंपनियों ने भी खपत में सुस्ती की बात कही है। ऑटो कंपनियों की बिक्री भी उम्मीद से कम रही है। ऐसे में ब्याज दरों में कटौती से आम जनता को राहत मिलेगी और खपत में बढ़ोतरी होगी।

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