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RBI MPC: ब्याज दरें घटाकर EMI में राहत क्यों नहीं दे रहा आरबीआई, किस बात का है डर?

रिजर्व बैंक (RBI) ने लगातार आठवीं बार नीतिगत ब्याज दरों (Repo Rate) में कोई बदलाव नहीं किया है। अब कम से कम अगले दो महीने के लिए ब्याज दरें 6.5 फीसदी के स्तर पर ही बरकरार रहेंगी। यह फैसला 5 जून से चल रही आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की मीटिंग लिया गया। बैंकिंग रेगुलेटर ने आखिरी बार फरवरी 2023 में ब्याज दरों में 0.25 का इजाफा किया था।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Fri, 07 Jun 2024 11:33 AM (IST)
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आरबीआई मुद्रास्फीति यानी महंगाई और विकास दर के बीच संतुलन साधना चाहता है।

बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। रिजर्व बैंक (RBI) ने लगातार आठवीं बार नीतिगत ब्याज दरों (Repo Rate) में कोई बदलाव नहीं किया है। इसका मतलब है कि लोन महंगा नहीं होगा, लेकिन आपकी EMI भी कम नहीं है। अगर केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को बढ़ाता है, तो लोन महंगे होते हैं। वहीं, घटाने की सूरत में कर्ज सस्ता होता और आपकी EMI भी कम होती।

अब कम से कम अगले दो महीने के लिए रेपो रेट 6.5 फीसदी के स्तर पर ही बरकरार रहेगा। यह फैसला 5 जून से चल रही आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की मीटिंग लिया गया। इसकी जानकारी आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज यानी शुक्रवार को दी। बैंकिंग रेगुलेटर ने आखिरी बार फरवरी 2023 में ब्याज दरों में 0.25 का इजाफा किया था।

ब्याज दरें क्यों नहीं घटा रहा आरबीआई?

  • आरबीआई दरअसल मुद्रास्फीति यानी महंगाई और विकास दर के बीच संतुलन साधना चाहता है। इस वक्त देश की जीडीपी काफी तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में रिजर्व बैंक ब्याज दरें घटाकर या बढ़ाकर विकास की रफ्तार के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करना चाहता।
  • अगर आरबीआई ब्याज दरें घटाकर आम जनता को राहत देता है, तो इससे महंगाई बढ़ने का खतरा रहेगा। महंगाई, खासकर खुदरा महंगाई पहले ही आरबीआई के लिए चिंताजनक स्तर पर है। ऐसे में आरबीआई ब्याज दर घटाने से पहले महंगाई के काबू में आने का इंतजार कर रहा है।
  • आरबीआई अमूमन ब्याज दरों में कोई बदलाव करने से पहले अमेरिकी नीतियों पर करीबी नजर रखता है। फिलहाल, अमेरिका का फेडरल रिजर्व भी ब्याज दरों में कटौती करने से बच रहा है। वह आम लोगों को कर्ज के मोर्चे पर राहत देने से पहले महंगाई कम करना चाहता है।

ब्याज दरों में कटौती कब होगी?

आर्थिक जानकारों का मानना है कि रिजर्व बैंक मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2024-25 की तीसरी तिमाही में ब्याज में कटौती कर सकता है। लेकिन, यह कटौती भी मामूली रहने की संभावना है।

SBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उपभोक्ता मूल्य सूचंकाक (CPI) आधारित महंगाई दर मई में 5 फीसदी के करीब रहने की उम्मीद है। यह जुलाई में घटकर 3 फीसदी तक आ सकती है। इसके बाद रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती पर कोई फैसला ले सकता है।

क्या होता है रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट?

देश के सभी बैंक हर रोज लाखों करोड़ों का कर्ज देते हैं। लेकिन, उनके पर अमूमन जमा का अनुपात लोन की डिमांड से मैच नहीं होता। उस पर बैंक पैसे जमा करने वाले लोग अपने पैसों की निकासी भी करते रहते हैं। इस सूरत में बैंक होम लोन, कार लोन या फिर किसी बड़े प्रोजेक्ट को कर्ज देने के लिए देश के केंद्रीय बैंक आरबीआई से पैसे उधार लेते हैं।

अब आरबीआई बैंकों को जिस ब्याज दर पर कम अवधि का कर्ज देता है, उसे रेपो रेट कहते हैं। यह फिलहाल 6.5 फीसदी है। इसका मतलब है कि देश का कोई भी बैंक 6.5 फीसदी से कम ब्याज दर पर लोन नहीं दे सकता, क्योंकि उसे खुद ही कर्ज इस दर पर मिल रहा। बैंक अपने खर्च और कमाई को जोड़कर ब्याज दरों को और बढ़ा देते हैं और यह अमूमन 8 फीसदी से ऊपर पहुंच जाती है।

वहीं, रिवर्स रेपो रेट के नाम से ही जाहिर है कि यह रेपो रेट के उलट है। अब जैसे कि बैंकों के पास रोजमर्रा के कामकाज के पास बड़ी रकम बच जाती है, तो वे इसे अल्प अवधि के लिए रिजर्व बैंक के पास जमा कर देते हैं। रिजर्व बैंक इस जमा रकम पर जिस दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। यह फिलहाल 3.35 फीसदी है।

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