'अनुशासन के नाम पर बच्चे के साथ शारीरिक हिंसा करना क्रूरता', छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
अदालत ने आदेश में कहा कि छोटा होना किसी बच्चे को वयस्कों से कमतर नहीं बनाता... अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे के साथ शारीरिक हिंसा करना क्रूरता है। बच्चा एक बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन है इसलिए उसका पालन-पोषण कोमलता और देखभाल के साथ किया जाना चाहिए क्रूरता के साथ नहीं। बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता।
पीटीआई, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट एक मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुशासन या शिक्षा के नाम पर बच्चे के साथ शारीरिक हिंसा करना क्रूरता है। न्यायालय ने एक छात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने की आरोपी एक महिला शिक्षक की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
याचिकाकर्ता के वकील रजत अग्रवाल ने बताया कि सरगुजा जिले के अंबिकापुर स्थित कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल की शिक्षिका सिस्टर मर्सी उर्फ एलिजाबेथ जोस पर आरोप लगे थे। एलिजाबेथ के खिलाफ फरवरी में मणिपुर पुलिस थाने में छठी कक्षा के एक छात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी।
खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में एफआईआर और आरोपपत्र रद्द करने की मांग वाली एलिजाबेथ जोस की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।29 जुलाई के अपने आदेश में पीठ ने कहा, "बच्चे को शारीरिक दंड देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त उसके जीवन के अधिकार के समान नहीं है।"
अनुच्छेद 21 में जीवन का हर पहलू शामिल- पीठ
कोर्ट ने कहा, "बड़े स्तर पर जीवन के अधिकार में वह सब कुछ शामिल है जो जीवन को अर्थ देता है और इसे स्वस्थ और जीने लायक बनाता है। इसका मतलब जिंदा रहने या पशुवत अस्तित्व से कहीं अधिक है। अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार में जीवन का वह हर पहलू शामिल है जो इसे सम्मानजनक बनाता है।"छोटा होना किसी बच्चे को वयस्कों से कमतर नहीं बनाता
अदालत के आदेश में आगे कहा गया है, "छोटा होना किसी बच्चे को वयस्कों से कमतर नहीं बनाता... अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे के साथ शारीरिक हिंसा करना क्रूरता है। बच्चा एक बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन है, इसलिए उसका पालन-पोषण कोमलता और देखभाल के साथ किया जाना चाहिए, क्रूरता के साथ नहीं। बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता।"
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