प्रदूषण रोकने के लिए क्या दिल्ली में होगी कृत्रिम बारिश? CPCB ने कर दिया स्पष्ट; वजह भी बताई
सीपीसीबी ने दिल्ली में कृत्रिम वर्षा को व्यवहारिक नहीं बताया है। उनका कहना है कि सर्दियों में हवा में पर्याप्त नमी नहीं होती है। क्लाउड सीडिंग के लिए 50% या उससे अधिक नमी वाले बादल की आवश्यकता होती है। 100 वर्ग किमी क्षेत्र में बारिश की लागत 3 करोड़ है। संस्था ने सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवाल का जवाब दिया था।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए दिल्ली सरकार कृत्रिम वर्षा की बात कर रही है। इसकी अनुमति के लिए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय केंद्र सरकार को चार पत्र लिख चुके हैं। परंतु, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उत्तर भारत में कृत्रिम वर्षा को व्यवहारिक नहीं बताया है। उसका कहना है कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जवाब में बताया गया है कि सर्दी के मौसम में क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बादल) के लिए हवा में पर्याप्त नमी नहीं है। इससे स्पष्ट है कि दिल्ली में कृत्रिम बारिश की संभावना कम ही नजर आ रही है।
आरटीआई कार्यकर्ता अमित गुप्ता द्वारा कृत्रिम वर्षा को लेकर 24 अक्टूबर को दायर आरटीआई के जवाब में सीपीसीबी ने इसकी व्यवहारिकता की जानकारी दी है। उसका कहना है कि आईआईटी कानपुर के कृत्रिम वर्षा के प्रस्ताव के अनुसार क्लाउड सीडिंग पहले से उपलब्ध नमी पर निर्भर करता है। इसके लिए 50 प्रतिशत या उससे अधिक नमी वाले बादल की आवश्यकता होती है।
100 वर्ग किमी के क्षेत्र में बारिश की लागत 3 करोड़
मौसम विभाग का कहना है कि उत्तरी क्षेत्र में सर्दी के मौसम में बादल पश्चिमी विक्षोभ के साथ आते हैं। हवा में नमी बहुत कम होती है। इस कारण क्लाउड सीडिंग की संभावना सीमित हो जाती है। बोर्ड का कहना है कि 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में कृत्रिम वर्षा के प्रस्तावित प्रयोग की अनुमानित लागत लगभग तीन करोड़ है।आईआईटी कानपुर ने 2017 में किया था परीक्षण
आईआईटी कानपुर ने वर्ष 2017 में गर्मी के मौसम में कृत्रिम वर्षा का परीक्षण किया था। दावा है कि सात में से छह प्रयासों में यह सफल रहा था। आईआईटी कानपुर की टीम ने पिछले वर्ष दिल्ली सरकार के सामने इसकी प्रस्तुति दी थी। सरकार ने इस बार प्रदूषण के रोकथाम के लिए इसे भी अपनी कार्य योजना में शामिल किया है लेकिन केंद्र सरकार से अनुमति नहीं मिली है।
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