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'कुछ तो दुनिया खराब थी, कुछ हम भी कम नहीं थे', खुद के बारे में ऐसा क्या बोल गईं कंगना रनौत

कंगना रनौत ने दैनिक जागरण के संवादी कार्यक्रम में अपने जीवन के कई पहलुओं पर खुलकर बात की। उन्होंने अपने बचपन फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष नेपोटिज्म अभिनेत्री से राजनीति में कदम रखने तक के सफर पर चर्चा की। कंगना ने बताया कि कैसे उन्होंने अपने अंदर के साहस को पहचाना और चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने अपने पसंदीदा फिल्मों और किरदारों के बारे में भी बात की।

By Ritika Mishra Edited By: Sonu Suman Updated: Thu, 12 Sep 2024 07:51 PM (IST)
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दैनिक जागरण के संवादी कार्यक्रम में रानी की कहानी सत्र में बीजेपी सांसद कंगना ने अपनी बात रखी।
रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली। मैंने बहुत छोटी उम्र में ही घर छोड़ दिया था। इस उम्र में मुझे अब वो उम्र ज्यादा याद नहीं आती। लेकिन कई बार जब मेरे जीवन में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव चल रहे होते हैं तब मैं अपनी बचपन की सहेलियों को देखती हूं जो एकदम आम जिंदगी जी रही है, पति के साथ अच्छा वक्त व्यतीत कर रही हैं। लोकसभा सदस्य व अभिनेत्री कंगना रनौत ने ये बात दैनिक जागरण के संवादी कार्यक्रम में रानी की कहानी सत्र में कही।

कलाविद् यतींद्र मिश्र के साथ बातचीत में कंगना ने अपने बचपन के किस्सों से लेकर, फिल्म जगत, नेपोटिज्म, अभिनेत्री से लेकर फिल्म निर्माता और फिर राजनीति में कदम रखने तक के सफर पर चर्चा की। अपने अंदर के साहस को लेकर कंगना से जब यतींद्र ने सवाल किया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि ऐसा नहीं है कि मैं कुछ साहसी करने का सोचती हूं। अक्सर जब लोग मुझे देखते हैं और मेरे कृत्यों के बारे में पूछते हैं तो मुझे लगता है कि क्या ऐसा भी कुछ था कि मैंने कुछ साहसी कार्य किया है।

मेरे अंदर पहाड़ों का भोलापन: कंगना

कंगना फिर थोड़ा हंसते हुए कहती हैं कि मुझे लगता है मेरे अंदर कुछ वो पहाड़ों का भोलापन है, कुछ मैं सहज भी हूं बाकि कहते हैं न कुछ तो दुनिया खराब थी और कुछ हम भी कम नहीं थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस स्थित कॉन्फ्रेंस सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में कंगना की बेबाकी भरी बातें सुनकर पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाट से गूंज उठा। छात्रों ने कंगना के लिए जय श्री राम के नारे लगाकर उनका स्वागत किया।

10 साल की उम्र में गालिब को सुनती थी: कंगना

गैंगस्टर, फैशन, वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई जैसी फिल्मों में निभाए गए किरदार कितने चुनौतीपूर्ण लगे के सवाल पर कंगना बहुत सहजता से कहती है कि मैं तो पदाइशी दुखी आत्मा हूं। 9-10 वर्ष की थी, तो गालिब को बहुत सुनती थी। मैं खुद भी बहुत दुखी कविताएं लिखती थी, तब लोग पूछते थे तुमको क्या गम है? उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है कि मेरे साथ बचपन में कोई हादसा हुआ इसलिए दुखी थी, हां बाद में फिल्म इंडस्ट्री में मेरे साथ बड़े हादसे हुए।

शुरुआती दिनों में कविताएं अच्छी लगती थी: कंगना

उन्होंने कहा कि करियर के शुरुआती दिनों में जब संघर्ष का दौर था तब दुख, दुखी लोग और दुखी कविताएं उन्हें अच्छी लगती थी। शायद इसलिए वो महिलाएं जिनके किरादर उन्होंने निभाए। जिन्होंने काफी यातनाएं सही, चाहे वो सिमरन में प्रफुर का किरदार हो, वो लम्हें में परवीन बॉबी का किरादर निभाना हो, सबकी इतनी दुखी जिंदगी थी और फैशन फिल्म में तो दुखों की हद ही हो गई। उन्होंने कहा कि इन किरदारों की महिलाओं से उन्हें काफी समानुभूति है। इस दौरान सभी छात्र कंगना को बड़ी तल्लीनता से सुनते नजर आए।

फिल्म 'इमरजेंसी' को लेकर भी बोलीं कंगना

बचपन में ओशो को पढ़ने के सवाल पर कंगना ने कहा कि ओशो ने मेरे जीवन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने मुझे एक व्यक्ति के रूप में जागृत किया। ओशो सांसारिक चीजों को लेकर काफी प्रबल है। अपनी फिल्म इमरजेंसी के रिलीज होने के सवाल पर कंगना ने कहा कि जल्द ही इसे दर्शकों के लिए जारी किया जाएगा।

अपना पसंदीदा फिल्म के बारे में बात करते हुए कंगना ने कहा कि उन्हें गुरुदत्त के निर्देशक में सन 1957 में आई प्यासा फिल्म बहुत पसंद है। उन्होंने कहा कि वो इस फिल्म के रीमेक में वहीदा रहमान का किरदार निभाना चाहेंगी। उन्होंने कहा कि लेकिन लोग आज ऐसी फिल्में बना नहीं रहे, उन्हें वही शोर-शराबा, चीख-पुकार चाहिए। उन्होंने कहा कि ढोल तो ढोल है लेकिन बांसुरी की भी अपनी अहमियत है।

एक जैसी छवि में बंधकर नहीं रहना चाहती: कंगना

उन्होंने कहा कि वो एकमात्र ऐसी कलाकार हैं जो एक जैसी छवि में बंधकर नहीं रहना चाहती हैं। जबकि बहुत से अभिनेता या अभिनेत्री एक किरदार निभाने के बाद उस छवि में बंध जाते हैं। यही कारण है कि तनु वेड्स मनु, क्वीन जैसी फिल्में करने के बाद वो उसी जैसी फिल्में बार-बार नहीं करना चाहती है और यही कारण है कि मणिकर्णिका के बाद निर्देशन का काम किया। बाद में कई फिल्में में अलग-अलग किरदार निभाए।

वहीं, इस दौरान उन्होंने कहा कि उनके बारे में सभी को एक गलतफहमी है कि वो घर से भागी थी। जबकि ऐसा नहीं है वो बकायदा अपने पिता से इस पर काफी चर्चा के बाद घर छोड़कर अपना करियर बनाने निकली थी। लेकिन कालेज नहीं जाने के निर्णय का आज भी मलाल करती हूं और बाद में पुस्तकालय में बैठकर इसकी क्षतिपूर्ति भी की है।

उन्होंने कहा कि उनके अंदर शुरू से जिंदगी में कुछ करने का उत्साह था। अब तक की फिल्मों में सबसे चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने के सवाल पर कंगना कहती हैं कि उन्हें इंदिरा गांधी और तनु वेड्स मनु में हरियाणवी लड़की दत्तो का किरदार काफी चुनौतीपूर्ण लगा।

बच्चों को समय-समय पर इतिहास बताना चाहिए: कंगना

मणिकर्णिका में झांसी की रानी का किरदार निभाने के बारे में कंगना कहती हैं कि आने वाली पीढ़ी बीते इतिहास को भूल जाती है। उसे समय-समय पर अनुस्मारक देना जरूरी है। इसलिए वो इस तरह की फिल्में करती हैं। वो जोशीली आवाज में कहती है अंग्रेजी भाषी बच्चों को पूरी तरफ से वायरस ने खा लिया है। इसलिए अगर देश को कोई बचा सकता है तो वो ये हिंदी भाषी बच्चे हैं। क्योंकि इनमें देश, धर्म और संस्कारों को लेकर ईमानदारी है।

फिल्मों में माफिया को लेकर उन्होंने कहा कि वंस अपान अ टाइम इन मुंबई फिल्म के बाद उन्हें पता चला कि मुंबई में क्या दहशत थी दाऊद इब्राहिम की और फिल्में से वो कैसी जुड़ी थी। उन्होंने कहा कि ये सब देखकर उन्हें काफी हैरानी हुई। अब तो फिल्म इंडस्ट्री बहुत अच्छे वक्त में हैं, फिर भी ये मूवी माफिया ज्यादा लगते हैं।

भारतीय सिनेमा रचनात्मक गरीबी के दौर में: कंगना

उन्होंने कहा कि आज के दौर में भारतीय सिनेमा रचनात्मक गरीबी के दौर से गुजर रहा है, हिंदी फिल्मों का काफी खस्ताहालत है। दक्षिण की फिल्में बहुत अच्छा कर रही है, वो नयापन को खुले दिल से स्वीकार करते हैं। उन्होंने छात्रों से फिल्ममेकिंग में करियर बनाने का आग्रह करते हुए कहा कि इससे ज्यादा संतोषजनक कुछ नहीं है।

उन्होंने कहा कि मैं फिल्म इंडस्ट्री के बारे में जो कहती हूं , शायद वहां के लोगों को ये सब सुनना पसंद नहीं आता। लेकिन ये उनका अपना अनुभव है। इसका मतलब ये नहीं कि अन्य लोग उन्हें बदनाम करें और कहें ये तो बस ऐसे ही बोलती है। हम जैसे लोगों की भी बात सुनी जानी चाहिए।

पुरानी दिल्ली की गलियों में चलना चाहती हूं: कंगना

एक दिन के लिए आम इंसान बनने के सवाल पर कंगना कहती हैं वो पुरानी दिल्ली की गलियों में चलना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि सारे नेपोकिड्स ओवररेटेड हैं। भारतीय सिनेमा के इतिहास में श्रेष्ठ अभिनेता केवल इरफान खान थे। लेकिन कोई उनकी बात नहीं करता है। उन्होंने कहा कि वो अपनी किसी भी घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया देने की आदत को छोड़ना चाहती हैं।

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