पहाड़ चढ़ती गंदगी: गीला हो रहा पैसा, सूख रहे नियम; दिल्ली में बढ़ रहे कूड़े के पहाड़ पर खास रिपोर्ट
स्वच्छ भारत मिशन के 10 साल पूरे होने के बाद भी दिल्ली-एनसीआर में कूड़े के पहाड़ खत्म नहीं हो पाए हैं। कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने के लिए शुरू किए गए प्रयास भी कमजोर पड़ गए हैं। जिन कूड़े के पहाड़ों को तीन वर्ष में खत्म कर दिया जाना था वो अब भी मौजूद हैं। लोग आज भी घर में गीला-सूखा कूड़ा अलग करने की आदत नहीं बना पाए।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। स्वच्छत भारत मिशन का एक बड़ा लक्ष्य कूड़े के पहाड़ों को खत्म करना था, लेकिन इसे दस साल बीतने के बाद भी दिल्ली समेत एनसीआर में कूड़े का एक भी पहाड़ खत्म नहीं हो पाया है। स्थिति यह है कि कूड़े के पहाड़ खत्म करने के लिए जो प्रयास शुरू भी हुए थे, वो भी वर्तमान समय में कमजोर पड़ गए हैं। जिन कूड़े के पहाड़ों को तीन वर्ष में पूरी तरह खत्म कर दिया जाना था, वो अब भी अपने स्थान पर खड़े हैं और स्वच्छ भारत मिशन को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
स्वच्छ भारत मिशन को 10 वर्ष हो गए हैं। एक दशक की परिपक्वता हमारे स्वच्छता संस्कारों में झलकनी चाहिए थी, लेकिन सबसे दुखद पहलू ये है, आज भी हम घर में गीला-सूखा कूड़ा अलग करने की आदत नहीं बना सके। प्लास्टिक से लेकर पेपर, रसोई का कचरा एक ही पालीथिन पैक किया और कूड़े की गाड़ी तक पहुंचा दिया या घर की बालकनी से ही घुमाकर खाली प्लाट में फेंक दिया। सब जानते हैं ये संकट हम अपने लिए और भावी पीढ़ी के लिए ही खड़ा कर रहे हैं बावजूद इसके सब ऐसा करते हैं।
आज भी शहरी-ग्रामीण सभी क्षेत्रों में कोई विरले ही ऐसे परिवार मिल पाते हैं जो कूड़े को घर से ही अलग करने का उपक्रम कर रहे हों। इन आदतों के कारण ही कूड़े के पहाड़ों का भी जन्म हुआ, जिन्हें अब अलग-अलग शहरों में 300 करोड़, 150 करोड़ से अधिक खर्च कर खत्म किया जा रहा है। सोचिए कितना पैसा कूड़ा हो रहा है। इससे एक शहर की आर्थिकी कितनी सशक्त-स्वस्थ हो सकती थी। अभी तो जितना कूड़ा वहां से मशीनों से उठ भी रहा है उतना ही पहुंच भी रहा है। आखिर कूड़े के इस संकट का कैसे हो निदान? लोग कैसे समझें अपनी जिम्मेदारी? एनसीआर के इन कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने में कहां हैं बाधाएं? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है।
-क्या दिल्ली समेत एनसीआर में कूड़े के पहाड़ न हट पाने के पीछे आप राजनीतिक खींचतान को जिम्मेदार मानते हैं?हां : 94
नहीं : 6-क्या दिल्ली समेत एनसीआर से कूड़े के पहाड़ खत्म न होने के लिए संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए?
हां : 97नहीं : 3पहाड़ चढ़ती गंदगी-60% सूखा अपशिष्ट (कागज़, पैकेजिंग, प्लास्टिक, बोतलें आदि)-40% गीला अपशिष्ट (रसोई अपशिष्ट, बागवानी अपशिष्ट आदि)-जिले में बने कूड़े के पहाड़ों की अधिकतम ऊंचाई कितनी थी, इन्हें खत्म करने की क्या समयसीमा तय की गई थी, इसे अब तक कितना कम किया जा सका है, कितने प्रतिशत कूड़ा हटाया जा चुका है और कितने प्रतिशत शेष है
लैंडफिल साइटों की ऊंचाई-लैंडफिल साइट : ऊंचाई : पहले तय की गई समय-सीमा :-ओखला-62 मीटर- मार्च 2023-गाजीपुर-65 मीटर-सितंबर 2024-भलस्वा -65 मीटर-जून 2022-लैंडफिल साइट : 2019 में कितना कूड़ा था : अब तक कितना निस्तारण हुआ : अब कितना बचा : समय-सीमा-भलस्वा : 80 : 71.17 : 47.66 :-गाजीपुर : 140 : 27 : 82.60 :-ओखला : 60 : 48.72 : 29.61 :
-कुल : 280 : 146.89 : 159.87 (मीट्रिक टन में)-नोट : दिसंबर 2028 तक खत्म करना है कूड़ा।-एजेंसियों के प्रयास-2019 में ट्रामल मशीनों से कूड़ा निस्तारण शुरू किया।-30-30 लाख टन कूड़ा निस्तारण का कार्य शुरुआत में निजी एजेंसियों को दिया।-350 करोड़ रुपये कूड़े के पहाड़ खत्म करने पर हो चुके हैं खर्च।-11300 मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन दिल्ली में निकलता है।
-300-500 टन प्रतिवर्ष कूड़ा उत्पन्न होने की मात्रा बढ़ रही है।-प्रतिदिन कहां कितना कूड़ा पहुंचता है :-2000 मीट्रिक टन गाजीपुर-2000 मीट्रिक टन भलस्वा-कूड़ा रिसाइकिल की व्यवस्था-260 टन कूड़ा प्रतिदिन अलग-अलग मटेरियल रिकवरी सेंटर (एमआरएफ) की मदद से हो रहा रिसाइकिल।-1260 टन से बनती है खाद-6200 टन बिजली बनाने में हो रहा है प्रयोग
गुरुग्राम:--वर्ष 2022 में बंधवाड़ी में कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई : 72 मीटर-वर्तमान में : 1200 मीट्रिक टन-2019 में: 800 मीट्रिक टन-लक्ष्य : 31 दिसंबर 2024 तक बंधवाड़ी लैंडफिल से कूड़ा खत्म करने का लक्ष्य-खत्म किया गया : 30.43 लाख मीट्रिक टन-शेष : 9.59 लाख मीट्रिक टन-68.5% कूड़ा खत्म हो गया 31.5% बाकी है।-प्रयास :
6 प्राइवेट एजेंसियों ने वर्ष 2023 में कूड़ा निस्तारण का कार्य शुरू किया था।-4 मै मटेरियल रिकवरी फेसिलिटी सेंटर (एमआरएफ) बनाए गए हैं।-31 दिसंबर 2024 तक कूड़ा निस्तारण की क्षमता 415 टन प्रतिदिन किया जाना है।-गुरुग्राम में वर्ष 2013 से दिसंबर 2023 तक बंद था कूड़े का निस्तारण।
-कूड़ा निस्तारण-7000 टन कूड़ा प्रतिदिन होता है निस्तारित-254 टन कूड़ा चार मेटेरियल रिकवरी सेंटर (एमआरएफ) पर प्रतिदिन हो रहा निस्तारित।-खर्च1000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं एक दशक में कूड़ा खत्म करने के लिए।-संकट-लैंडफिल से लीचेट वन क्षेत्र में बहने से अरावली प्रदूषित हो रही है।फरीदाबाद :-वर्ष 2017 में दिसंबर से कूड़ा निस्तारण का काम फरीदाबाद नगर निगम ने शुरू किया-वर्ष 2019 तक इको ग्रीन को बंधवाड़ी में लगाना था पावर प्लांट-31 दिसंबर 2024 तक इस कूड़े को पूरी तरह खत्म किया जाना है।-वर्तमान में : 1200 मीटिक टन-2019 में: 800 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता था।-200 टन कूड़ा प्रतापगढ़ में निस्तारित हो रहा है इसे 150 करोड़ की लागत से तैयार किया गया था।-150 टन कूड़ा मुजेड़ी में निस्तारित हो रहा है इसे 100 करोड़ की लागत से तैयार किया गया था।-600 टन कूड़ा निस्तारण के लिए मोठूका में चारकोल प्लांट की चल रही तैयारी।-बंधवाड़ी के आसपास फरीदाबाद के गांवों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 250 से अधिक होता है। -लैंडफिल से निकलने वाले लिचेट से भूजल दूषित हो रहा है।बंधवाड़ी के आसपास : एक्यूआइ : 250-गाजियाबाद:निस्तारण से ज्यादा प्रतिदिन कूड़ा निकलता है-60 फीट ऊंचा कूड़े का पहाड़ है मकरेड़ा गांव में-30% कूड़े का निस्तारण हो पाता है।-1200 मीट्रिक टन कूड़ा लैंडफिल पर पहुंचता है।-450 मीट्रिक टन कूड़े का निस्तारण हो रहा, पूरे जिले में सिर्फ एक प्लांट लगा हुआ है।-100 वार्ड में केवल एक वार्ड में ही अलग होता है गीला, सूखा कूड़ा।-वर्तमान में : 1500 मीट्रिक टन-2019 में : 1100 मीट्रिक टन-गौतमबुद्ध नगर :-300 टन कूड़ा निकलता है प्रतिदिन-35 मीट्रिक टन का होता है निस्तारण।-70% कूड़ा बायोरिमेडिक्स से निस्तारित किया जा चुका है। अगले पांच महीने में शेष कूड़ा निस्तारित कर दिया जाएगा।-30% ही कूड़ा जिले में अलग अलग किया जाता है।- 10 करोड़ खर्च हो चुके हैं, कूड़े के पहाड़ों खत्म करने में अब तक।-कूड़ा निकलता है :-वर्तमान में : 7 लाख मीट्रिक टन-2019 में : 2.5 लाख मीट्रिक टन
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