क्या है GRAP? दिल्ली-एनसीआर में क्यों किया जाता है लागू; प्रदूषण रोकने में कैसे बना ये कारगर
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। सीएक्यूएम ने ग्रेप का चौथा चरण लागू कर दिया है। यानी पहले तीनों चरण जो ग्रेप के लागू किए गए हैं वो भी लागू ही रहेंगे। दिल्ली में हवा की गुणवत्ता गंभीर श्रेणी से लेकर खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। आइए जानते हैं क्या है होता है ग्रेप और कैसे काम करता है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप, GRAP) का चौथा चरण लागू कर दिया है। इससे पहले ग्रेप के पहले, दूसरे और तीसरे चरण लागू किए जा चुके हैं। ग्रेप के यह चरण आपातकाल में प्रदूषण को नियंत्रण करने के उपाय हैं। आपने मन में अक्सर ख्याल आता होगा कि यह नियम क्या हैं? यह प्रदूषण बढ़ने पर क्यों लागू होता है। अक्सर यह चरणबद्ध तरीके से ही लागू होता है? आइए यहां जानते हैं ग्रेप के बारे में विस्तार से...
दिल्ली में प्रदूषण गंभीर स्थिति में पहुंच गया है। बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्गों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो रही है। चिकित्सक लोगों को घरों से बाहर न निकलने की सलाह दे रहे हैं। वहीं, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ग्रेप के चरण लागू करता है, जिसका मतलब बिगड़ी वायु गुणवत्ता में सुधार लाना होता है।
कब लाया गया था ग्रेप
GRAP पहली बार जनवरी 2017 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था। नवंबर 2016 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) इस योजना को लेकर आया था। 2016 में इसे सुप्रीम कोर्ट से स्वीकृति मिल गई थी। इस योजना को पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) द्वारा राज्य सरकार के प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों के साथ की गई कई बैठकों के बाद तैयार किया गया था।पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण पहले एनसीआर में ग्रेप के चरणों को लागू करता था, लेकिन यह भंग हो चुका है और अब सीएक्यूएम इसे 2021 से लागू करता आ रहा है।
बैठक के बाद लागू होता है ग्रेप
ग्रेप जब लागू किया जाता है तो सीएक्यूएम की बैठक होती है, उसमें सभी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, औद्योगिक क्षेत्र प्राधिकरण, नगर निगम, भारतीय मौसम विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी, और स्वास्थ्य सलाहकार शामिल होते हैं। ग्रेप के चरण जब लागू होते हैं तो वायु गुणवत्ता (AQI) को देखा जाता है। उसी के अनुसार ग्रेप लागू किया जाता है।एक्यूआई क्या है?
एक्यूआई एक तरह से प्रदूषण मापने का थर्मामीटर है। इस पैमाने के जरिए हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, PM 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) और PM 10 पोल्यूटेंट्स की मात्रा को चेक किया जाता जाता है। एक्यूआई की माप 0 से 500 तक होती है। हवा में पॉल्यूटेंट्स (प्रदूषक तत्व) की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, उतना ही एक्यूआई का स्तर ज्यादा होगा। अगर एक्यूआई बढ़ता जाता है तो समझ लीजिए प्रदूषण बढ़ रहा है।
एक्यूआई की रीडिंग के आधार पर हवा की गुणवत्ता को छह कैटेगरी में बांटा गया है। शून्य से 50 के बीच AQI अच्छा, 51 और 100 संतोषजनक, 101 और 200 मध्यम, 201 और 300 खराब, 301 और 400 बहुत खराब, और 401 और 500 के बीच AQI को गंभीर माना जाता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।चार चरणों में बांटा गया है ग्रेप
दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता के आधार पर "ग्रेप" को चार चरणों में बांटा गया है। पहला चरण एक्यूआई 201 से 300 यानी खराब होने पर लागू किया जाता है। दूसरा चरण एक्यूआई 301-400 (बहुत खराब) होने पर, तीसरा चरण एक्यूआई 401-450 (गंभीर) होने पर और चौथा चरण एक्यूआई 450 से अधिक (गंभीर से ज्यादा) होने पर लागू किया जाता है। दिल्ली में इस साल पहली बार ग्रेप का पहला चरण 15 अक्टूबर ले लागू किया गया था। इसके तहत ये पाबंदियां लगाई गई थीं।22 अक्टूबर से ग्रेप-2 के चरण लागू हो गया
- सड़कों पर पानी का छिड़काव करने को कहा।
- जहां धूल ज्यादा उड़ती हो, जहां ज्यादा ट्रैफिक लगता हो, कूड़ाघरों के आसपास पानी का छिड़काव जरूर हो, ताकि धूल के कड़ों को हवा में जाने से रोका जा सके।
- धूल पर नियंत्रण के लिए निर्माण साइटों पर पानी का छिड़काव हो।
- पार्किंग फीस बढ़ाने को कहा, ताकि लोग सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें।
- दिल्ली मेट्रो को फेरो को बढ़ाने का निर्देश दिया है।
- सीएनजी बसों की भी फेरों की संख्या बढ़ाने को कहा।
- ओद्योगिक इकाइयों, सोसाइटियों में डीजल जेनरेटर का न हो प्रयोग।
- लोगों को निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों को प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- सर्दियों में सुरक्षा कर्मियों को वायो गैस या खुले में आग जलाने की जगह बिजली का हीटर दिया जाए।