जागरण संपादकीय: अप्रत्याशित परिणाम, बिहार में एनडीए की प्रचंड जीत
महागठबंधन की करारी हार का एक बड़ा कारण मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को वोट चोरी के मुद्दे में तब्दील किया जाना भी रहा। चुनाव आते-आते इस थोथे मुद्दे की हवा निकल गई। इसमें संदेह है कि विपक्ष बिहार के नतीजों से सबक सीखेगा, लेकिन राजग को अपनी प्रचंड जीत को इस रूप में अवश्य लेना होगा कि अब उस पर जन अपेक्षाओं का बोझ कहीं अधिक बढ़ गया है।
HighLights
राजग की बिहार में प्रचंड जीत
डबल इंजन सरकार का वादा
बिहार के चुनाव परिणाम कितने अप्रत्याशित हैं, इसका पता इससे चलता है कि भाजपा और जदयू के नेता भी ऐसी प्रचंड जीत का दावा नहीं कर रहे थे। राजग की जीत का आंकड़ा दो सौ के पार जाना यह बताता है कि बिहार की जनता ने भाजपा-जदयू के नेतृत्व वाले गठबंधन को फिर से सत्ता में लाने का मन बना लिया था।
इसी कारण जिस मुकाबले को कांटे की टक्कर कहा जा रहा था, वह एकपक्षीय सिद्ध हुआ। इतनी जबरदस्त जीत का श्रेय भाजपा-जदयू समेत उसके अन्य सहयोगी दलों के बीच के बेहतर समन्वय के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से बनाए गए इस माहौल को भी जाता है कि बिहार का हित डबल इंजन सरकार ही अच्छे से साध सकती है।
यदि नीतीश कुमार सत्ता विरोधी रुझान से अछूते रह सके तो केवल अपनी बेदाग छवि के कारण नहीं, बल्कि यह भरोसा जगाने के कारण कि राज्य के लिए जो कुछ किया जाना शेष है, वह वही कर सकते हैं। वह ऐसा संदेश देने में इसीलिए सफल रहे, क्योंकि उन्होंने बीते 20 वर्षों में बिहार की सूरत बदली है।
राजग को चुनौती दे रहा विपक्षी खेमा भले ही खुद को महागठबंधन कहता हो, पर वह वैसे सामाजिक समीकरणों का नेतृत्व करते नहीं दिखा, जैसा जदयू, भाजपा और उसके सहयोगी दल करते दिखे। रही-सही कसर राजद-कांग्रेस के बीच की अनबन ने पूरी कर दी। इस अनबन के चलते 11 सीटों पर कथित मैत्री मुकाबला हुआ। इसके कारण पूरे बिहार में यह संदेश गया हो तो हैरानी नहीं कि महागठबंधन में एकजुटता का अभाव है।
बिहार के नतीजे यह भी बता रहे कि विपक्षी दल पलायन, बेरोजगारी जैसे मुद्दों के सहारे जिस युवा वर्ग को अपने पाले में मान कर चल रहे थे, उसने भी उन्हें पीठ दिखाई। शायद इसलिए, क्योंकि महागठबंधन के लोक-लुभावन वादे कुछ ज्यादा ही हवा हवाई थे। नेताओं को यह समझना होगा कि उनके वादे लुभावने होने के साथ ही पूरे हो सकने वाले भी दिखने चाहिए।
विजयी गठबंधन की एक बड़ी ताकत महिला मतदाता भी बनीं, जो पहले से ही नीतीश और मोदी के पक्ष में थीं। बिहार के नतीजों से यह भी साफ हो रहा है कि जंगलराज की कड़वी यादों ने महागठबंधन की लुटिया डुबोई होगी। जंगलराज के लिए तेजस्वी यादव को दोष नहीं दिया जा सकता, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
महागठबंधन की करारी हार का एक बड़ा कारण मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को वोट चोरी के मुद्दे में तब्दील किया जाना भी रहा। चुनाव आते-आते इस थोथे मुद्दे की हवा निकल गई। इसमें संदेह है कि विपक्ष बिहार के नतीजों से सबक सीखेगा, लेकिन राजग को अपनी प्रचंड जीत को इस रूप में अवश्य लेना होगा कि अब उस पर जन अपेक्षाओं का बोझ कहीं अधिक बढ़ गया है।













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