संपादकीय: एक और भगदड़ में लोगों की मौत, घटनाओं से नहीं ले पा रहे सबक
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में एकादशी पर भगदड़ मचने से दस श्रद्धालुओं की मौत हो गई। मंदिर में प्रवेश और निकास का रास्ता संकरा होने के कारण भीड़ का दबाव बढ़ा और लोहे की रॉड गिरने से भगदड़ मच गई। भीड़ प्रबंधन के अभाव में यह हादसा हुआ। मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक ने दुख जताया, लेकिन भीड़ प्रबंधन के ठोस उपायों की आवश्यकता है, खासकर धार्मिक स्थलों पर, जहाँ आस्था के आवेग में संयम की कमी दिखती है।
HighLights
आंध्र प्रदेश मंदिर में भगदड़, दस की मौत
भीड़ प्रबंधन के ठोस उपाय नहीं
आस्था के आवेग में संयम की कमी
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में एकादशी के अवसर पर मची भगदड़ से करीब दस श्रद्धालुओं की मौत एक बार और यह बता रही है कि इस तरह की घटनाओं से कहीं कोई सबक नहीं सीखा जा रहा है। यह तब है, जब इस तरह की घटनाओं का सिलसिला कायम है और इसी वर्ष भगदड़ की कई घटनाएं धार्मिक स्थलों में भी हो चुकी हैं।
लघु तिरुपति कहे जाने वाले वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में भगदड़ इसलिए मची, क्योंकि मंदिर में जाने-आने का एक ही रास्ता था और वह भी संकरा था। यहां स्थिति तब बिगड़ी, जब श्रद्धालुओं की भीड़ के दबाव में मंदिर की सीढ़ियों में लगी लोहे की एक राड गिर गई। इससे अफरातफरी फैली और लोगों ने एक-दूसरे को कुचल दिया। इस हादसे को इसलिए नहीं रोका जा सका, क्योंकि श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के कोई ठोस उपाय नहीं थे।
मंदिर में भगदड़ से मौतों की खबर आते ही शोक संवेदनाओं का तांता लग गया और मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक ने दुख प्रकट किया। यह स्वाभाविक तो है, लेकिन पर्याप्त नहीं। किसी को इसकी चिंता करनी चाहिए कि जिस भी स्थल पर बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हों, वहां भीड़ प्रबंधन के पर्याप्त और ठोस उपाय किए जाएं।
कम से कम धार्मिक-सांस्कृतिक स्थलों में तो ऐसा अनिवार्य रूप से होना चाहिए, क्योंकि ऐसे स्थानों पर आस्था के आवेग के आगे संयम का अभाव दिख जाता है। ऐसा होना नहीं चाहिए, क्योंकि श्रद्धा अनुशासन और संयम की मांग करती है। यह मांग पूरी हो, इसे मठ-मंदिरों के प्रबंधकों को भी सुनिश्चित करना चाहिए और स्थानीय प्रशासन को भी।
भगदड़ का गवाह बने वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में न तो मंदिर के आयोजकों ने भीड़ प्रबंधन के कोई कारगर उपाय किए और न ही स्थानीय प्रशासन ने। ऐसा तब हुआ, जब आंध्र प्रदेश इसी वर्ष मंदिरों में भगदड़ की दो घटनाओं से दो-चार हो चुका है। स्थानीय प्रशासन यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकता कि मंदिर का प्रबंधन निजी हाथों में था।
उसे यह पता होना चाहिए था कि विशेष अवसरों पर इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। तथ्य यह भी है कि भगदड़ उन धार्मिक स्थलों में भी मचती रहती है, जिनका संचालन प्रशासन की ओर से किया जाता है। कई बार तो पुलिस की उपस्थिति में भी मंदिरों में भगदड़ मची है और उसमें लोगों की जान गई हैं। चूंकि भगदड़ की घटनाएं देश की बदनामी भी कराती हैं, इसलिए उन्हें रोकने के कुछ नए उपाय करने होंगे।
इसलिए और भी, क्योंकि हाल की भगदड़ की घटनाओं से यह साफ है कि अपने देश में भीड़ प्रबंधन के जो तौर-तरीके अपनाए जा रहे हैं, वे निष्प्रभावी सिद्ध हो रहे हैं। वैसे भीड़ प्रबंधन के नए उपाय तभी प्रभावी होंगे, जब लोग भी संयम का परिचय देंगे।













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