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    चुनावी मुद्दा: जहां कभी थी देश की दूसरी सबसे बड़ी जूट मंडी, वहां आज किसान पलायन को मजबूर

    Updated: Wed, 17 Sep 2025 08:20 PM (IST)

    अररिया जिले के फारबिसगंज में जूट मंडी की हालत खस्ता है। पलायन बेरोजगारी और बाढ़ यहां की मुख्य समस्याएं हैं। कभी यह शहर जूट व्यापार का केंद्र था लेकिन अब किसान जूट की खेती छोड़कर मक्का उगा रहे हैं। आगामी चुनाव में जूट किसानों और बंद मिलों का मुद्दा छाया रहेगा। साठ के दशक में यहां 65 से 70 जूट प्रेस थीं।

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    जूट मिल व्यवसायियों का मुद्दा रहेगा अहम रहेगा। सांकेतिक तस्वीर

    संवाद सूत्र, फारबिसगंज (अररिया)। पलायन, बेरोजगारी और खेती-किसानी पर निर्भर आजीविका यहां के लोगों की मुख्य पहचान है। दशकों से बाढ़ का दंश झेलने वाली फारबिसगंज की जनता को आज भी समाधान की तलाश है।

    इस पूरे इलाके ने तरक्की की तस्वीर भी नहीं देखी। किसान से लेकर व्यापारी पलायन भी यहां की प्रमुख समस्याओं में से एक है। जहां आगामी विधानसभा चुनाव में जूट किसान सहित बंद जूट मिल व्यवसायियों का मुद्दा अहम रहेगा।

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    गौरतलब है की 60 के दशक में फारबिसगंज देश की दूसरी सबसे बड़ी जूट मंडी थी। राष्ट्रीय स्तर पर जूट उत्पादन व व्यवसाय के क्षेत्र में इसकी विशिष्ट पहचान थी, लेकिन दशकों से इसका भविष्य खतरे में नजर आ रहा है।

    जहां सरकारी विफलता के कारण किसान भी अब जूट की खेती छोड़ मक्का उपजाने में लग गये हैं। जिस कारण आज यह मंडी बदहाली के दौर से गुजर रही है। एक समय था जब प्रति वर्ष 45 से 50 लाख मन पाट इस मंडी में आता था, जो अब सिमट कर 10 से 15 लाख मन रह गया है।

    फारबिसगंज में थीं 65 से 70 जूट प्रेस 

    बिहार राज्य जूट डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बच्छराज राखेचा कहते हैं की 60 के दशक में फारबिसगंज में 65 से 70 जूट प्रेस थी जहां किसानों द्वारा लाये गये 40 किलो के पाट के बोझे को क्वालिटी में वर्गीकृत कर साढ़े तीन मन का गांठ बना पश्चिम बंगाल व आंध्र प्रदेश की जूट मिलों को भेजा जाता था।

    पूरा शहर पाट की बैलगाड़ियों से पटा रहता था। यहां 1980 में जूट मिल की आधारशिला संजय गांधी द्वारा रखी गयी थी जिसका प्रशासनिक उदासीनता के कारण नामों निशान ही विलोपित हो गया।  पलायन कर गये व्यवसायी  चौपट हो रहे जूट उद्योग के कारण किसान विमुख हो रहे हैं।

    इस क्षेत्र में किसानों की मुख्य फसल धान के बाद पाट ही हुआ करता था। आज किसान पाट की खेती से विमुख होकर गेंहू व मक्का की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं। वहीं बड़ी संख्या में जूट व्यवसायी या तो पलायन कर गये हैं या अन्य धंधे में लग गये हैं।

    जिसमें मुख्य रूप से छोटु लाल सेठिया, झंवर लाल जैन, जी दास, रामेश्वर जूट मिल, वृद्धि चंद सेठिया, शिखर चंद सरावगी, जेके जूट मिल, नवरत्न वैद, संपत डागा,जय भारत उद्योग, नन्द किशोर केडिया, जगदीश साह आदि शामिल हैं।

    धोती व शर्ट के अंदर उंगली पकड़ होता है सौदा

    बच्छराज राखेचा बताते हैं की हर व्यवसाय में खरीद बिक्री का रेट साधारण तरीके से होता है, लेकिन जूट व्यवसाय में रेट तय करने का एक दिलचस्प अंदाज है।

    यहां रेट का निर्धारण कोई नहीं जाने इसलिए मंडी में धोती या शर्ट पहने कारोबारी किसान के उंगली को शर्ट या धोती के अंदर ढक कर उनके पांचो उंगली में से किसी को पकड़ कर रेट का निर्धारण कर खरीद बिक्री करते हैं, जो व्यवसाय का अनोखा व दिलचस्प अंदाज है।

    क्या कहते हैं जूट व्यवसायी?

    मूलचंद गोलछा व धीरेन्द्र दुग्गड़,अशोक राखेचा सहित अन्य  कहते हैं कि फारबिसगंज में जूट व्यवसाय कम होने का मुख्य कारण शहर के पूर्वी क्षेत्र से संपर्क का अभाव होना एवं मिल न होना।

    उन्होंने कहा की कटिहार के दोनों जूट मिलें बंद हो जाने के बाद यहां के व्यवसायी अब नेपाल स्थित जूट मिलों को पाट का निर्यात करते हैं।

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