चुनावी मुद्दा: जहां कभी थी देश की दूसरी सबसे बड़ी जूट मंडी, वहां आज किसान पलायन को मजबूर
अररिया जिले के फारबिसगंज में जूट मंडी की हालत खस्ता है। पलायन बेरोजगारी और बाढ़ यहां की मुख्य समस्याएं हैं। कभी यह शहर जूट व्यापार का केंद्र था लेकिन अब किसान जूट की खेती छोड़कर मक्का उगा रहे हैं। आगामी चुनाव में जूट किसानों और बंद मिलों का मुद्दा छाया रहेगा। साठ के दशक में यहां 65 से 70 जूट प्रेस थीं।

संवाद सूत्र, फारबिसगंज (अररिया)। पलायन, बेरोजगारी और खेती-किसानी पर निर्भर आजीविका यहां के लोगों की मुख्य पहचान है। दशकों से बाढ़ का दंश झेलने वाली फारबिसगंज की जनता को आज भी समाधान की तलाश है।
इस पूरे इलाके ने तरक्की की तस्वीर भी नहीं देखी। किसान से लेकर व्यापारी पलायन भी यहां की प्रमुख समस्याओं में से एक है। जहां आगामी विधानसभा चुनाव में जूट किसान सहित बंद जूट मिल व्यवसायियों का मुद्दा अहम रहेगा।
गौरतलब है की 60 के दशक में फारबिसगंज देश की दूसरी सबसे बड़ी जूट मंडी थी। राष्ट्रीय स्तर पर जूट उत्पादन व व्यवसाय के क्षेत्र में इसकी विशिष्ट पहचान थी, लेकिन दशकों से इसका भविष्य खतरे में नजर आ रहा है।
जहां सरकारी विफलता के कारण किसान भी अब जूट की खेती छोड़ मक्का उपजाने में लग गये हैं। जिस कारण आज यह मंडी बदहाली के दौर से गुजर रही है। एक समय था जब प्रति वर्ष 45 से 50 लाख मन पाट इस मंडी में आता था, जो अब सिमट कर 10 से 15 लाख मन रह गया है।
फारबिसगंज में थीं 65 से 70 जूट प्रेस
धोती व शर्ट के अंदर उंगली पकड़ होता है सौदा
क्या कहते हैं जूट व्यवसायी?
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