Maharashtra: कभी थे साथ अब होगी आमने-सामने की लड़ाई, महाराष्ट्र में बिछ रही है कई अबूझे समीकरणों की बिसात
महाराष्ट्र की राजनीति शिवसेना-भाजपा के लंबे राजनीतिक गठबंधन के लिए जानी जाती रही है। लेकिन यह गठबंधन 2019 के विधानसभा चुनाव का परिणाम आते ही ऐसा टूटा कि इस गठबंधन को वोट देनेवाले मतदाता भी चकित रह गए। हमेशा कांग्रेस विरोध एवं प्रखर हिंदुत्व की राजनीति करनेवाले स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे सीधे कांग्रेस और राकांपा की गोद में जा बैठे।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र में पिछले 25 साल से दो गठबंधन आमने-सामने की लड़ाई लड़ते आ रहे थे। 2019 में इन गठबंधनों का आपसी समीकरण बिगड़ा तो पिछले ढाई साल में दो पार्टियां टूट गईं, और इस बार छह पार्टियां नए-नवेले गठबंधन बनाकर आमने-सामने हैं। इसके अलावा कुछ छोटे दलों का तीसरा मोर्चा भी बनने को तैयार है। 2024 के विधानसभा चुनाव में बहुकोणीय मुकाबला किस करवट बैठेगा, और चुनाव परिणाम आने के बाद कौन से नए समीकरण बनेंगे इसका अनुमान बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी नहीं लगा पा रहे हैं।
गठबंधन को वोट देनेवाले मतदाता भी चकित रह गए
महाराष्ट्र की राजनीति शिवसेना-भाजपा के लंबे राजनीतिक गठबंधन के लिए जानी जाती रही है। लेकिन यह गठबंधन 2019 के विधानसभा चुनाव का परिणाम आते ही ऐसा टूटा कि इस गठबंधन को वोट देनेवाले मतदाता भी चकित रह गए। हमेशा कांग्रेस विरोध एवं प्रखर हिंदुत्व की राजनीति करनेवाले स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे सीधे कांग्रेस और राकांपा की गोद में जा बैठे। ये बात उनके नवनिर्वाचित 56 विधायकों एवं छह माह पहले ही चुनकर आए 18 सांसदों को भी हजम नहीं हुई।
उद्धव ठाकरे की पार्टी ही टूट गई
लेकिन कुछ दिन अपना मुख्यमंत्री बनने की खुशी एवं उसके बाद करीब दो साल चली कोविड जैसी महामारी में राजनीतिक गतिविधियां लगभग ठप सी रहीं। इसलिए कोई प्रतिक्रिया नजर नहीं आई। लेकिन दो साल बाद गुबार फूटा तो उद्धव ठाकरे की पार्टी ही टूट गई। टूटी भी तो ऐसी कि उनके दो तिहाई से ज्यादा विधायकों ने बगावत का झंडा उठा लिया, और उन्हें मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
पवार के परिवार में फूट
ऐसी ही बगावत एक साल बाद शरद पवार को भी झेलनी पड़ी, जिन्हें 2019 में बनी महाविकास आघाड़ी (मविआ) का शिल्पकार कहा जाता रहा। लेकिन राजनीति के चतुर खिलाड़ी पवार को तो परिवार और पार्टी दोनों टूट गए। उनके भतीजे अजीत पवार भी पार्टी के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों के साथ पहले से चल रही शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल हो गए। मविआ का तीसरा एवं राष्ट्रीय दल कांग्रेस सीधी टूट से तो बचा रहा, लेकिन लोकसभा चुनाव आते-आते उसके अशोक चव्हाण, मिलिंद देवड़ा और संजय निरुपम जैसे कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर भाजपा एवं शिवसेना (शिंदे) के साथ आ गए।
लोकसभा चुनाव में शरद पवार की राकांपा एवं उद्धव ठाकरे की शिवसेना में तोड़फोड़ का जिम्मेदार भाजपा को बताते हुए मराठी मतदाताओं की सहानुभूति बटोरने का प्रयास हुआ। कुछ हद तक यह प्रयास कारगर भी रहा।
मराठा आरक्षण से जुड़ा आंदोलन डालेगा असर
मराठा आरक्षण को लेकर करीब डेढ़ साल पहले शुरू हुआ मनोज जरांगे पाटिल के आंदोलन ने भी खासतौर से मराठवाड़ा क्षेत्र में अपना असर दिखाया। जिसका नुकसान पूरी भाजपानीत महायुति को हुआ। प्याज एवं कपास के किसानों की नाराजगी भी रंग लाई।
इस सब का असर यह हुआ कि लोकसभा चुनाव में भाजपा एवं दोनों सहयोगी दलों के साथ मुंह के बल गिरी। लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणामों से सबक लेकर महायुति अब तक कई गलतियां सुधारने में कामयाब रही है।
लोकसभा चुनाव में उदासीन रहे अपने ओबीसी वोटबैंक को साधने का पूरा प्रयास किया गया है। लाड़की बहिन, लाड़का भाई और लाड़का किसान जैसी योजनाएं शुरू की गई हैं, जिनका भरपूर असर ग्रामीण एवं शहरी मतदाताओं में दिख रहा है।
सीएम शिंदे ने अपनी सरकार के कामकाज की रिपोर्ट पेश की
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बुधवार को अपनी सरकार के कामकाज का रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा कि महायुति अपने सवा दो साल के कामकाज के आधार पर चुनाव मैदान में उतरेगी और राज्य के मतदाता महाविकास आघाड़ी के ढाई साल एवं महायुति के सवा दो साल के कामकाज के आधार पर दोनों सरकारों की तुलना करके वोट देंगे। इसी बीच हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों ने भी महायुति का मनोबल बढ़ाने एवं महाविकास आघाड़ी का घटाने में बड़ी भूमिका निभाई है।