महाराष्ट्र की अजीब चुनावी चौसर, अपने कहीं कर रहे समर्थन तो कहीं प्रत्याशी के प्रतिद्वंद्वी का दे रहे साथ
भुजबल नासिक जिले के येवला में अपनी जीत के लिए जितनी मेहनत नहीं कर रहे उससे ज्यादा रणनीतिक दांव बगल की नांदगांव सीट पर शिवसेना शिंदे के उम्मीदवार का पैकअप करने के लिए चल रहे हैं। वैसे महाराष्ट्र की राजनीति में भुजबल अकेले नहीं हैं। देवेंद्र फडणवीस अजित पवार से लेकर उद्धव ठाकरे तक सूबे में कहीं न कहीं इसी तरह का चुनावी दांव खेल रहे हैं।
संजय मिश्र, येवला (नासिक)। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राजनीति का विरोधाभास इस बार जितना है शायद पहले कभी नहीं देखा गया। दोनों मुख्य गठबंधनों के बड़े-बड़े नेता चुनावी मैदान में अपने ही गठबंधन प्रत्याशी के खिलाफ बागी निर्दलीय का कहीं खुले तो कहीं अंदरूनी समर्थन कर रहे हैं। इसमें अजित पवार की राकांपा के छगन भुजबल जैसे नेता भी शामिल हैं।
भुजबल नासिक जिले के येवला में अपनी जीत के लिए जितनी मेहनत नहीं कर रहे, उससे ज्यादा रणनीतिक दांव बगल की नांदगांव सीट पर शिवसेना शिंदे के उम्मीदवार का पैकअप करने के लिए चल रहे हैं। वैसे महाराष्ट्र की राजनीति में भुजबल अकेले नहीं हैं। देवेंद्र फडणवीस, अजित पवार से लेकर उद्धव ठाकरे तक सूबे में कहीं न कहीं इसी तरह का चुनावी दांव खेल रहे हैं। येवला में विंचोर रोड पर छगन भुजबल के चुनाव कार्यालय के बाहर उनके बड़े-बड़े पोस्टर लगे हैं।
विंचोर रोड पर छगन भुजबल के चुनाव कार्यालय के बाहर लगे पोस्टर
दफ्तर के अंदर शाम करीब साढ़े पांच बजे भुजबल के दशकों से विश्वस्त सहयोगी उनके पीए भगवान राव लोंडे उनके प्रचार दौरे की अपडेट ले रहे थे। तभी दर्जन भर नौजवान राकांपा कार्यकर्ताओं की टोली उनके पास पहुंची। मगर इनके गले में महायुति का पटका नहीं बल्कि उसके बागी उम्मीदवार समीर भुजबल का पटका और सीने पर चुनावी बैज लगा था।भुजबल का अपने क्षेत्र में काफी दबदबा
इस टोली का नेतृत्व कर रहे बागलान तालुका के राकांपा के अध्यक्ष राजेंद्र सोनवाणे ने कहा कि समीर के पूरे चुनाव प्रचार का संचालन स्थानीय राकांपा के लोग ही कर रहे हैं। इस टोली ने लोंडे को प्रचार से लेकर लाड़ली-बहिन के लाभार्थियों से संवाद-संपर्क का ब्योरा देते हुए इन्हें फोन करने की गति बढ़ाने की जरूरत बताई और फिर वे अगले पड़ाव पर निकल पड़े।
महायुति के बागी उम्मीदवार समीर भुजबल की प्रचार रणनीति पर मंत्रणा पर हैरान देख मुस्कुराते हुए भगवान लोंडे कहते हैं कि नांदगांव भी साहब का इलाका है। लोगों का दबाव है कि उनका प्रतिनिधित्व बाहर नहीं जाना चाहिए। सीटिंग फार्मूले में यह सीट शिवसेना (शिंदे) के खाते में चली गई तो चाचा भुजबल के इशारे पर भतीजे समीर भुजबल मुंबई शहर राकांपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर चुनाव मैदान में उतर पड़े।
भुजबल प्रचार के लिए नहीं जा रहे
दरअसल इस सीट से लगातार दो बार विधायक रहे अपने बेटे पंकज भुजबल की पिछले चुनाव में हार के बाद वह किसी सूरत में दूसरे पक्ष को उभरने नहीं देना चाहते। इसीलिए समीर की पत्नी से लेकर भुजबल परिवार के अन्य सदस्य खुलकर उनके प्रचार में जुटे हैं। भुजबल प्रचार के लिए भले नहीं जा रहे हैं, मगर समीर को जिताने में पूरा जोर लगा रखा है।शिवसेना (शिंदे) के उम्मीदवार वर्तमान विधायक सुहास कांदे के मुकाबले शिवसेना (यूबीटी) ने गणेश धात्रक को उतारा है। दोनों बंजारा समुदाय के हैं। इसमें मराठा वोट निर्णायक न हो जाए, इसकी काट के लिए उन्होंने इस समुदाय के रोहन बोरसे को भी निर्दलीय उतारने की बिसात बिछाई है। ओबीसी के नेता छगन भुजबल दरअसल मराठा आरक्षण की मांग के खिलाफ रहे हैं।