दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली में 22 जुलाई, 1923 को मां चांद रानी और पिता जोरावर चंद माथुर के घर-आंगन जन्मे मुकेश के जन्म के साथ भी बारिश की अद्भुत स्मृति जुड़ी है। मुकेश के जन्म से जुड़े एक रोचक दृश्य-परिदृश्य का वर्णन करते हुए उनकी छोटी बहन श्यामा प्यारी ने मुझे दशकों पूर्व दिल्ली में अपने निवास पर एक विमर्श में बताया था-
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हमारे परिवार में ये कोई पहली संतान का जन्म नहीं था। इसके पूर्व पांच बच्चों का जन्म हो चुका था। मां बताती थीं कि उनके इस छठे पुत्र के जन्म लेते ही गाने-बजाने की टोली हर दिन घर आ धमकती थी। हर किसी को लगता था कि ये कोई पहला-पहला बच्चा भी नहीं है फिर बधाई देने का तांता दिन-प्रति दिन क्यों बढ़ता जा रहा है और क्यों हर दिन गाने-बजाने वाली मंडली नाच-गाना करने में रमी हुई है?
एक दिन तो विचित्र दृश्य हमारे सामने था। भरी दोपहरी में सूरज अपने पूरे तेज के साथ चमक रहा था, तभी किन्नरों का समूह आ धमका। अपनी ढोलक पर इधर उन्होंने तान छेड़ी और उधर अकस्मात् ही ना जाने कहां से बादलों का एक झुंड घिर आया। कड़ी धूप में ही पानी भी झर-झर बरसने लगा।
मां कहती थीं कि तब हमें दिन-प्रतिदिन होने वाली इन घटनाओं का अर्थ नहीं समझ आया था, पर आगे चलकर जब मुकेश इतने बड़े गायक बन गए, देश-विदेश में उनके यश-कीर्ति की पताका फहराने लगी। तब लगा कि वास्तव में ईश्वर की ओर से ही यह संकेत था कि हमारे घर-परिवार में एक महान आत्मा का आगमन हुआ था, जिसके स्वागत में जन साधारण के संग प्रकृति स्वयं भी आनंद उत्सव मना रही थी!
पहली नजर की सफलता ने बनाया शीर्ष गायक
मुकेश दिल्ली के मंदिर मार्ग स्थित सरकारी स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी करके सिने नगरी से बुलावा मिलने पर वहां चल पड़े थे। यहां पहुंचने पर तब की प्रसिद्ध नायिका नलिनी जयवंत के साथ नायक-गायक के रूप में मुकेश को फिल्म ‘निर्दोष’ (1941) में काम मिल तो गया पर सफलता उनसे दूर ही रही।संघर्ष की इस अवधि में मुकेश छिट-पुट रूप से कुछ फिल्मों में काम करते रहे और इसी बीच संगीतकार अनिल बिस्वास ने उन्हें तब के शीर्ष अभिनेता मोतीलाल के लिए फिल्म ‘पहली नजर’ (1945) में एक गीत गवाया, ‘दिल जलता है तो जलने दे’।
इस गीत की अपार सफलता ने युवा मुकेश को रातों रात घर-घर में परिचित नाम बना दिया। पार्श्वगायक के रूप में मुकेश अब प्रथम पंक्ति में थे। उस कालखंड के स्थापित और नए संगीतकारों में युवा मुकेश से गीत गवाने की होड़ मच गई थी।अनिल बिस्वास, बुलो सी रानी, खेमचंद प्रकाश, हंसराज बहल, राम गांगुली, नौशाद, सचिन देव बर्मन, ज्ञान दत्त, गुलाम मुहम्मद जैसे संगीतकारों ने अपने-अपने संगीत में मुकेश से जो गीत गवाए, उन सभी ने लोकप्रियता का इतिहास रचा। राज कपूर के स्थायी स्वर बनने के पूर्व मुकेश तब मोतीलाल, दिलीप कुमार, प्रेम अदीब, देव आनंद, भारत भूषण जैसे नायक-अभिनेताओं के लिए गीत गाते हुए उपलब्धियों की झड़ी लगा रहे थे।
आवारा से बने देश के पहले अंतरराष्ट्रीय सिंगर
शंकर-जयकिशन के साथ फिल्म ‘बरसात’ (1949) से मुख्य गायक बनकर मुकेश अब राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय व्योम पर विजय पताका फहराने को आतुर थे। फिल्म ‘आवारा’ (1951) के गीत ‘आवारा हूं’ से मुकेश भारत के प्रथम वैश्विक गायक बन गए।
शंकर-जयकिशन और शैलेंद्र संग मुकेश की त्रिवेणी ने सुरीले और कालजयी गीतों की अंतहीन शृंखला गढ़ दी। मुकेश सिने गीतों में नूतन परिपाटी तथा भिन्न-भिन्न विधाओं के सहज सूत्रधार रहे हैं। राज कपूर की प्रथम फिल्म ‘आग’ (1948) का युगल गीत ‘रात को जी चमके तारे’ मुकेश और शमशाद बेगम के युगल स्वरों में राम गांगुली के संगीत में पार्टी/ क्लब गीत की प्रकृति लिए था।यह भी पढ़ें:
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स्टीरियोफोनिक साउंड का पहला गीत
हिंदी सिनेमा के गीत-संगीत में जब नई तकनीक के विस्तार से ‘स्टीरियोफोनिक साउंड’ का प्रभाव समक्ष आया तो इस पद्धति में सर्वाधिक उपयुक्त स्वर गायक मुकेश का सिद्ध हुआ। इस ध्वनि संयोजन तकनीक में 1971 में जो प्रथम गीत रिकार्ड किया गया वो मुकेश के स्वर में था- ‘तारों में सजके अपने सूरज से, देखो धरती चली मिलने’।क्या आपको ज्ञात है कि किसी गायक ने किसी अभिनेत्री के लिए पार्श्व गायन किया है? आप संभवतः विश्वास ना करें पर यह सत्य है। दारा सिंह अभिनीत फिल्म ‘शेर-ऐ-वतन’ (1971) का युगल गीत ‘जरा हमसे मिलो’ को मुकेश ने आशा भोंसले के साथ मिलकर गाया है।
यह एक प्रणय गीत है, जिसे असद भोपाली ने लिखा और संगीत में पिरोया उषा खन्ना ने। दो नारियों के इस नृत्य दृश्य में पुरुष प्रेमी बनी नारी के लिए मुकेश अपनी वाणी में जिस प्रकार मन की चंचल वृत्ति को सामने लाते हैं, वह अद्भुत है।
मुकेश के गाते ही होने लगी थी बरसात
संगीतकार उषा खन्ना ने मुझे ‘बरखा रानी जरा जम के बरसो’ गीत की रिकार्डिंग के संबंध में एक विशेष बात बताई थी। सिने जगत में न्यूनतम अवधि में रिकॉर्ड किए जाने वाले इस गीत को गाने के लिए जब मुकेश स्टूडियो पहुंचे तो दो-एक अभ्यास के पश्चात ही इस गीत को रिकार्ड कर दिया।
जब मुकेश स्टूडियो पहुंचे थे, तब मुंबई में धूप खिली थी और दूर-दूर तक कहीं बादल भी नहीं थे। गीत की रिकॉर्डिंग संपन्न होने पर जब सबने बाहर देखा तो बरसात पूर्ण वेग से हो रही थी। सभी अचरज में थे। जिस तल्लीनता के संग मुकेश गीत गा रहे थे, लग रहा था मानो बरखा रानी से मन से जमकर बरसने का अनुरोध कर रहे हों। शायद ये मुकेश के गाने का ही फल था, जो बिन मौसम के बरसात आ चुकी थी!
(लेखक सिनेमा इतिहासकार हैं)