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Mirzapur 3 Review: ढीले पड़े 'कालीन भैया' के तेवर, 'गुड्डू पंडित' के भौकाल को लगा 'शरद शुक्ला' का ग्रहण

मिर्जापुर का तीसरा सीजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गया है। मिर्जापुर की गद्दी पर कौन बैठेगा इस सवाल को साथ लेकर तीसरा सीजन चलता है। कहानी के केंद्र में इस बार कालीन भैया और गुड्डू पंडित के अलावा शरद शुक्ला भी है जिसकी नजरें मिर्जापुर की गद्दी पर टिकी हैं। हालांकि गुड्डू और शरद दोनों के लिए यह गद्दी पाना आसान नहीं है।

By Manoj Vashisth Edited By: Manoj Vashisth Fri, 05 Jul 2024 08:45 PM (IST)
मिर्जापुर 3 स्ट्रीम हो गया है। फोटो- इंस्टाग्राम

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। प्राइम वीडियो पर मिर्जापुर का पहला सीजन 2018 में आया था। दूसरा सीजन दो साल के इंतजार के बाद 2020 में रिलीज हुआ था और अब चार साल के लम्बे इंतजार के बाद तीसरा सीजन शुक्रवार को स्ट्रीम कर दिया गया है। मगर, क्या यह सीजन इतने लम्बे इंतजार की कसौटी पर खरा उतरता है? क्या जिस भौकाल की उम्मीद गुड्डू पंडित और कालीन भैया से लगाये बैठे थे, वो पूरी हुई?

किसी भी शो के रोमांच को बरकरार रखने के लिए कहानी में सहज बहाव होना बहुत जरूरी है। घटनाएं भले ही किसी लेखक की कल्पना की उपज हों, मगर उन्हें देखते हुए बनावटीपन का एहसास नहीं होना चाहिए। मिर्जापुर के तीसरे सीजन को देखते हुए कई जगह इस तरह के पल आते हैं, जब लगता है कि किसी खास किरदार को निपटाने के लिए यह दृश्य लिखा गया है, जबकि इस कहानी का फ्लो कुछ और भी हो सकता था। 

ओटीटी स्पेस की इस सबसे चर्चित क्राइम सीरीज का तीसरा सीजन पहले दो सीजनों के मुकाबले डार्क और हिंसक है, मगर यह हिंसा मनोरंजन नहीं करती। कुछ अप्रत्याशित घटनाओं से झटका जरूर लगता है और यही तीसरे सीजन (Mirzapur 3 Review) की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। 

क्या है तीसरे सीजन की कहानी?

तीसरे सीजन की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां दूसरा सीजन खत्म हुआ था। मुन्ना (दिव्येंदु) और कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) को मारने के बाद गुड्डू (अली फजल) ने त्रिपाठी आवास को ही अपना घर बना लिया है। उसके सारे जरूरी फैसले गोलू गुप्ता (श्वेता त्रिपाठी) लेती है। कालीन भैया की मौत पर उसे अभी भी यकीन नहीं है और तलाश जारी है। 

पूर्वांचल में होने वाले अफीम, अवैध हथियार और दूसरे काले धंधों पर उसी की हुकूमत चलेगी, जो मिर्जापुर की गद्दी पर बैठेगा। मगर, गुड्डू को यह गद्दी कमानी होगी। 

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मिर्जापुर की गद्दी और गुड्डू के बीच जौनपुर का बाहुबली शरद शुक्ला (अंजुम शर्मा) है, जिसने कालीन भैया की जान बचाकर अपनी सबसे बड़ी चाल चल दी है।

प्रदेश की मुख्यमंत्री माधुरी यादव (ईशा तलवार) भयमुक्त प्रदेश बनाने के लिए बाहुबलियों को खत्म करना चाहती है और इस अंत की शुरुआत वो गुड्डू से करना चाहती है, जिसकी वजह जाहिर है। उधर, गुड्डू की जान बचाने के लिए एसएसपी मौर्य को मार डालने के आरोप में पिता रमाकांत पंडित (राजेश तैलंग) जेल में हैं।

उसूलों वाले रमाकांत खुद को दोषी मानते हुए केस लड़े बिना सजा चाहते हैं, मगर परिवार का दबाव है कि वो अपना केस लड़ें, क्योंकि उन्होंने गुड्डू को एनकाउंटर से बचाने के लिए एसएसपी पर गोली चलाई थी। 

सिवान के बाहुबली दद्दा त्यागी (लिलीपुट) का बेटा शत्रुघ्न त्यागी (विजय वर्मा) यानी छोटे ने मौके का फायदा उठाकर जुड़वां भाई भरत यानी बड़े की जगह ले ली है, ताकि वो पिता की नजरों में उठ सके। इन्हीं किरदारों के बीच मिर्जापुर के तीसरे सीजन की कहानी उतार-चढ़ाव के साथ आगे बढ़ती है। 

कैसा है तीसरे सीजन का स्क्रीनप्ले?

औसतन 50 मिनट प्रति एपिसोड की अवधि वाले सीजन में कुल 10 एपिसोड्स रखे गये हैं। अपूर्व धर बडगाइयान ने शो का लेखन किया है, जबकि गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर का निर्देशन हैं। पहले एपिसोड की शुरुआत मुन्ना के अंतिम संस्कार के साथ होती है और इसी के साथ शो के ह्यूमर का भी क्रियाकर्म हो जाता है। 

शुरू के पांच एपिसोड में कहानी मिर्जापुर की गद्दी को लेकर मीटिंग्स और बाहुबलियों की तनातनी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। कालीन भैया को बाहरी जख्मों से ज्यादा अंदर के घाव परेशान कर रहे हैं।

हालांकि, उनकी अनुपस्थिति को विदाई मानने के लिए अभी कोई तैयार नहीं है। पूर्वांचल में इस अनिश्चितता का फायदा पश्चिमांचल के बाहुबली उठाना चाहते हैं और मुनव्वर के जरिए यहां भी अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं। 

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तीसरे सीजन की कहानी प्रमुख रूप से कालीन भैया, गुड्डू पंडित, गोलू गुप्ता, माधुरी यादव और शरद शुक्ला के आस-पास ही रहती है, पांचवें एपिसोड के बाद रफ्तार पकड़ती है। इसके साथ ही कहानी में दिलचस्प मोड़ आने शुरू होते हैं। कालीन भैया को खत्म करने सिवान गई गोलू गुप्ता को छोटे बंधक बना लेता है।

गोलू के अचानक गायब होने से गुड्डू एक बार फिर अकेला पड़ जाता है। माधुरी यादव और शरद शुक्ला की नजदीकियों के साथ गुड्डू की मुश्किलें बढ़ने लगती हैं। शरद के एहसान तले दबे कालीन भैया उसे मिर्जापुर की गद्दी पर बिठाने का वचन देते हैं। हालांकि, कालीन भैया के पुराने तेवर लौटने के इंतजार करते-करते शो का आखिरी एपिसोड आ जाता है।

तीसरा सीजन 'कालीन भैया वर्सेज गुड्डू पंडित' से ज्यादा 'गुड्डू पंडित वर्सेज गुड्डू पंडित' है, क्योंकि इस किरदार की अप्रत्याशितता कहानी को शॉकिंग टर्न्स देती है, जिनका जिक्र यहां करना ठीक नहीं होगा। सब-प्लॉट्स ज्यादा होने की वजह से कुछ किरदार अधूरे रहते हैं और छूटे हुए लगते हैं।  

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

कलाकारों के अभिनय की बात करें तो गुड्डू का पागलपन इस सीजन में ज्यादा खूंखार हुआ है और अली फजल ने किरदार के इस पहलू को कामयाबी के साथ पेश किया है। गुड्डू की शारीरिक भाषा से लेकर उसके बातचीत करने का ढंग या किसी खास परिस्थिति में उसकी प्रतिक्रिया अली के अभिनय की निरंतरता की मिसाल है।

अली ने किरदार की मानसिक अवस्था को समझते हुए इसकी बारीकियों को बखूबी पेश किया है। इसकी एक मिसाल है वो दृश्य, जब सीएम माधुरी यादव उससे जेल में मिलने जाती है और वो बेपरवाही से सलाखों से नाक रगड़ते हुए बात करता रहता है।

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तीसरे सीजन में कालीन भैया का किरदार जिस तरह खुद को हारा हुआ महसूस करता है और फिर अपने पुराने तेवरों के साथ वापसी करता है, पंकज ने इस ट्रांसफॉर्मेशन को कामयाबी के साथ पर्दे पर उतारा है।

गजगामिनी यानी गोलू गुप्ता के किरदार में श्वेता त्रिपाठी को इस सीजन में अच्छे दृश्य मिले हैं, जिनका उन्होंने फायदा उठाया है। अन्य कलाकारों में अंजुम शर्मा, ईशा तलवार, विजय वर्मा, रसिका दुग्गल, शीबा चड्ढा, हर्षिता गौड़, प्रियांशु पेन्युली, मनु ऋषि और मेघना मलिक ने किरदारों को सफलता के साथ जीया है।  

गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर ने दृश्यों को क्रूर और हिंसक बनाने में संकोच नहीं किया है। गुड्डू और गोलू का मिलन और कालीन भैया की वापसी के कारण चौथे सीजन की सम्भावना जगी रहती है। मगर, कहानी क्या विस्तार लेगी, यह सबसे बड़ा सवाल है। इसकी वजह है आखिरी एपिसोड में कालीन भैया के किरदार का ट्विस्ट, जिसने कहानी के कुछ सिरे बंद कर दिये हैं।