Haryana Result 2024: BJP का साथ छोड़ कहीं के नहीं रहे अशोक तंवर, सरकार का हिस्सा बनने की उम्मीदों पर फिरा पानी
प्रदेश के चुनावी रण में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच विवाद के चलते कांग्रेस ने भाजपा नेता अशोक तंवर को कांग्रेस में शामिल कर जबरदस्त दांव खेला था। अशोक तंवर एक समय हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष थे और कांग्रेस ने ही उन्हें सिरसा से पहली बार सांसद बनाया था। लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम दिन कांग्रेस में शामिल हो गए।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। राजनीति में अक्सर कहा जाता है कि जिसने मौका खो दिया, समझो सब कुछ खो दिया। प्रदेश में पूर्व सांसद डा. अशोक तंवर, पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह और पूर्व मंत्री रणजीत सिंह चौटाला पर यह बात पूरी तरह से सटीक बैठती है।
य़ह तीनों नेता ऐसे हैं, जिन्हें भाजपा ने अपनी पलकों पर बैठाया, लेकिन वे भाजपा के सम्मान के लायक स्वयं को नहीं समझ पाए और भाजपा को धोखा देकर उसका साथ छोड़ गये। चुनावी रण में प्रदेश के मतदाताओं ने इन तीनों नेताओं को उनके वास्तविक राजनीतिक कद का अहसास करा दिया है।
अशोक तंवर पर खेला गया दांव पड़ गया उल्टा
प्रदेश के चुनावी रण में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच विवाद के चलते कांग्रेस ने भाजपा नेता अशोक तंवर को कांग्रेस में शामिल कर जबरदस्त दांव खेला था। अशोक तंवर एक समय हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष थे और कांग्रेस ने ही उन्हें सिरसा से पहली बार सांसद बनाया था। भूपेंद्र हुड्डा से टिकटों के आवंटन के विवाद के चलते तंवर कांग्रेस छोड़ गये थे। अपने राजनीतिक सफर में तंवर ने सबसे पहले स्वयं का मोर्चा बनाया।
सैलजा से हारे थे लोकसभा चुनाव
उसके बाद वह ममता बैनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में गये। फिर आम आदमी पार्टी ज्वाइन की। इन दोनों दलों में बात नहीं बनी तो अशोक तंवर अपने पुराने मित्र के माध्यम से भाजपा में आए और पार्टी ने उन्हें निवर्तमान सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर सिरसा से चुनाव लड़वाया।
सिरसा में अशोक तंवर भाजपा का साथ होने के बावजूद कोई खास कमाल नहीं कर सके और कांग्रेस की कुमारी सैलजा से हार गये। तंवर चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस में आए। उन्हें उम्मीद थी कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बन रही है, लेकिन अब वे कांग्रेस में भी कहीं के नहीं रहे।
बृजेंद्र सिंह भी हारे चुनाव
यही स्थिति हिसार के पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह के साथ बनी, जो हिसार लोकसभा में टिकट कटने की आशंका के चलते कांग्रेस में आ गए थे, लेकिन कांग्रेस में उन्हें हिसार अथवा सोनीपत कहीं से भी टिकट नहीं मिले।
भाजपा ने उनके पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह, माता प्रेमलता और स्वयं बृजेंद्र को राजनीतिक ऊंचाइयों पर पहुंचाया, लेकिन उचाना से बृजेंद्र सिंह जिस तरह से चुनाव हारे हैं, वह उनके लिए राजनीतिक घाटे का सौदा रहा है। भाजपा में रहते बृजेंद्र सिंह राजनीतिक बुलंदियां हासिल कर सकते थे। सबसे ज्यादा धोखा भाजपा के साथ निवर्तमान बिजली मंत्री रणजीत सिंह चौटाला ने किया है।
रणजीत चौटाला के भविष्य पर सवाल खड़े
रणजीत चौटाला इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के भाई और पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल के छोटे बेटे हैं। चौटाला ने पिछला चुनाव रानियां से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता था और भाजपा सरकार को समर्थन दिया था। चौटाला पूरे पांच साल बिजली व जेल मंत्री रहे। लोकसभा चुनाव के दौरान रणजीत चौटाला भाजपा में शामिल हुए और पार्टी ने उन्हें आधे घंटे के अंदर हिसार से लोकसभा का टिकट दे दिया।
रणजीत चौटाला हार गये, लेकिन रानियां से जब भाजपा ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया तो वह नाराज हो गये और भाजपा से ही बगावत कर बैठे। अब हार के रूप में उनके राजनीतिक भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।