प्रेम और शुभता का प्रतीक है रंगोली, यहां पढ़ें क्यों दिवाली पर होता है इसका खास महत्व
दिवाली जैसे-जैसे करीब आती जाएगी रंगोली (Diwali 2024 Rangoli) बनाने को लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ने लगती है। हालांकि अब भले ही इसे सिर्फ त्योहारों पर बनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहले रंगोली रोज घर के दरवाजे के बाहर बनाई जाती थी। इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व काफी गहरा है जिसके बारे में हम यहां जानेंगे। आइए जानें।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। त्योहार या किसी भी शुभ अवसर पर आपने अपने घरों के बाहर रंगोली बनी देखी होगी, खासकर दिवाली (Diwali 2024 Rangoli) के मौके पर। रंग-बिरंगे पाउडर, फूल-पत्तियां, चावल के आटे आदि का इस्तेमाल किया जाता है। अलग-अलग तरह के डिजाइन और आकृतियों (Rangoli latest design) से बनी रंगोली को घर के दरवाजे के बाहर बनाया जाता है, जिससे घर की खूबसूरती और बढ़ती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रंगोली का अपना धार्मिक और सांस्कृति महत्व (Diwali Rangoli Importance) भी है। यहां हम उसी बारे में जानने की कोशिश करेंगे कि रंगोली का क्या महत्व है और क्यों इसे शुभ अवसरों पर बनाया जाता है।
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कैसे हुई रंगोली की शुरुआत?
रंगोली भारतीय संस्कृति की अनोखी झलक है। यह न सिर्फ एक कला है, बल्कि धर्म, संस्कृति और जीवन के प्रति भारतीयों के दृष्टिकोण का भी प्रतिबिंब भी है। इसके इतिहास की बात करें, तो रंगोली बनाने की प्रथा सदियों पुरानी है। रंगोली बनाने की शुरुआत कैसे हुई, इसे लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन इसकी शुरुआत असल में कहां से हुई इसके बारे में पुख्ता रूप से कहा नहीं जा सकता है। लेकिन रंगोली हमारी भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है। पुराने समय में रंगोली बनाना रोज की एक क्रिया थी। घर के दरवाजों के बाहर रोज रंगोली बनाई जाती थी। हालांकि, धीरे-धीरे इसका प्रचलन खत्म हो गया और अब इसे सिर्फ त्योहारों पर बनाया जाता है।
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कैसे बनाते हैं रंगोली?
इसी तरह रंगोली को बनाने के तरीके में भी धीरे-धीरे काफी बदलाव हुए हैं। पहले सिर्फ ज्यामितिय आकृतियां बनाई जाती थीं, या फूल, पक्षी आदि। वो भी प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल से। हालांकि, अब रंगोली के डिजाइन में काफी बदलाव आ गया है। रंगोली को भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग चीजों की मदद से ये आकृतियां उकेरी जाती हैं। कहीं फूल की पंखुड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है, तो कहीं चावल के आटे या हल्दी का प्रयोग होता है। हालांकि, आजकल तो लगभग सभी जगहों पर आर्टिफिशियल रंगों या स्टिकर्स का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन पहले सिर्फ प्राकृतिक रंगों से ही रंगोली बनाई जाती थी।
भारत के विभिन्न हिस्सों में रंगोली को क्या कहते हैं और इसे कैसे बनाया जाता है?
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में रंगोली को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इसे बनाने की विधियां भी अलग-अलग होती हैं।- उत्तर भारत- उत्तर भारत में रंगोली को चौक पूरना कहा जाता है। यहां ज्यादातर गेहूं के आटे और हल्दी का उपयोग करके रंगोली बनाई जाती है। कई जगहों पर इसे रंगोली भी कहा जाता है।
- महाराष्ट्र- महाराष्ट्र में रंगोली को रंगोली ही कहा जाता है। यहां रंगोली को बनाने के लिए अलग-अलग प्रकार के रंगों का उपयोग किया जाता है।
- तमिलनाडु- तमिलनाडु में रंगोली को कोल्लम कहा जाता है। यहां रंगोली को चावल के आटे से बनाया जाता है।
- आंध्र प्रदेश- आंध्र प्रदेश में रंगोली को मुग्गु कहा जाता है। यहां रंगोली को चावल के आटे और कुमकुम से बनाया जाता है।
- केरल- केरल में रंगोली को पुकल्म कहा जाता है। यहां रंगोली को चावल के आटे और रंगों से बनाया जाता है।