न्यूबॉर्न बेबी के विकास के लिए जरूरी है सही खानपान, न्यूट्रिशनिस्ट ने बताएं बच्चों के लिए हेल्दी न्यूट्रिशन टिप्स
मुट्ठी से भी छोटा होता है नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों का पेट। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 6 से 23 महीने के बच्चे पर्याप्त पोषण विविधता प्राप्त नहीं कर पा रहे। नए पैरेंट्स के लिए यह चिंता की बात है। किस विविधता के साथ पूरी करें पोषण की यह मांग बता रही हैं न्यूट्रिशनिस्ट गजल फर्नीचरवाला।
नई दिल्ली। सात महीने की रूही को फलों की स्मूदी तो पसंद है, मगर दलिया देखते ही वह मम्मी की नाक में दम कर देती है। सिर्फ फलों से सारा पोषण तो मिल नहीं सकता, ऐसे में रूही की मम्मी स्नेहा परेशान रहती हैं कि रूही को पर्याप्त पोषण नहीं मिला तो भविष्य की नींव कहीं कमजोर न हो जाए। स्नेहा का सोचना ठीक है क्योंकि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, देश के आठ राज्यों में 6 से 23 महीने के बच्चे पर्याप्त पोषण हासिल नहीं कर पा रहे। आहार में विविधता की कमी इसकी सबसे बड़ी वजह है।
कीमती हैं शुरुआती 1000 दिन
गर्भधारण से लेकर बच्चे के दूसरे जन्मदिन तक लगभग 1000 दिन उसके मस्तिष्क और शरीर के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। पहले छह महीनों के लिए स्तनपान अत्यंत आवश्यक है, जो उन्हें ऊर्जा, पोषक तत्व, प्रतिरक्षा, पाचन और भविष्य के लिए बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करता है। स्तनपान के अभाव में बच्चों को देसी गाय का दूध, चावल की कांजी या रागी की खीर दी जा सकती है। माता-पिता को ताजा, स्थानीय और मौसमी फल-सब्जियों का उपयोग करके घर पर पकाए गए भोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए। पैकेज्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों जैसे प्रोटीन पाउडर, बेबी फूड या डिब्बाबंद फलों के रस से बचें।
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रस्मों में छिपा सेहत का आशीर्वाद
भारतीय परंपराओं और रस्मों में इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता था कि गर्भधारण से लेकर जन्म के बाद तक मां और उसकी संतान को उचित पोषण मिले। ऐसी ही एक रस्म है अन्नप्राशन। छह माह तक बच्चे को मां का दूध और उसके बाद ठोस पदार्थों के सेवन की शुरुआत पर केंद्रित यह परंपरा कुपोषण को रोकने और हमारी जलवायु की पोषण संबंधी अनूठी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती है।
इसमें चावल की खीर का काफी महत्व है। चावल एक प्री-बायोटिक आहार है जो आंत के स्वास्थ्यकर बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा देता है। इसी तरह चांदी की कटोरी अथवा चम्मच से खिलाया गया भोजन भी विज्ञान की दृष्टि से बेहतरीन है। जीवाणुरोधी गुणों वाली धातु चांदी अच्छी प्रतिरक्षा सुनिश्चित करती है और एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्प्रभाव को रोकती है।
खाने पर हो पूरा ध्यान
आजकल यह सामान्य बात है कि बच्चे को खाना खिलाने से पहले उसके आगे टीवी या मोबाइल खोल दिया जाता है। बच्चे स्क्रीन पर व्यस्त रहते हैं और माता-पिता उन्हें खाना खिलाते हैं। यह एक बहुत ही गलत परंपरा अपनाई जा रही है। अपने बच्चे को खिलाते समय गैजेट या स्क्रीन से उनका ध्यान भटकाने से बचें। उनका पूरा ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि वे क्या खा रहे हैं और उसे किस तरह खाना चाहिए। इससे जीवन में भोजन के साथ उनके संबंध में सुधार हो सकता है।
बच्चे माता-पिता को देखते हुए सीखते हैं। अगर आप भी यही आदत अपनाते हैं तो आज ही से इसे बंद करें। बच्चों के साथ बैठकर खाएं। उन्हें स्थानीय रूप से उपलब्ध, मौसमी और पारंपरिक खाद्य पदार्थ परोसें व स्वयं भी वही खाएं। शहरी क्षेत्रों में रह रहे माता-पिता अगर ताजा, जैविक उपज हासिल नहीं कर पा रहे हैं तो भी वे अनाज, दालों और श्रीअन्न का उपयोग कर सकते हैं। बच्चों की थाली में चावल की कांजी/चावल की खीर/रागी की खीर/पफ्ड राजगिरी को दूध/रोटी के साथ घी-गुड़ मिलाकर दे सकते
हैं!
न उलझें मिथकों के जाल में
- मिथ: मां के दूध के साथ बच्चे के लिए फार्मूला मिल्क भी आवश्यक है।
- तथ्यः मां का दूध अपने आप में संपूर्ण है और शुरुआती 6 महीनों के लिए पोषण का पर्याप्त स्रोत है।
- मिथ: विदेशी खाद्य पदार्थ स्थानीय से बेहतर होते हैं।
- तथ्यः हमारे वातावरण में मिलने वाला स्थानीय भोजन यहां के वासियों के लिए श्रेष्ठ है।
- मिथ: शक्कर खतरनाक है।
- तथ्यः घर पर पकाए जाने वाले पारंपरिक भोजन जैसे खीर, हलवा आदि में चीनी का प्रयोग सुरक्षित है। अति-प्रसंस्कृत और डिब्बाबंद खाद्य व पेय पदार्थों के माध्यम से शक्कर का सेवन हानिकारक हो सकता है।
- मिथ: बाजार में मिल रहा पैकेटबंद दूध ही बढ़िया है।
- तथ्यः देसी गाय का दूध बच्चों के लिए अतिरिक्त पोषण का बढ़िया माध्यम है। इसे अपनी स्थानीय डेयरी से ताजा प्राप्त करें।
बच्चों के लिए जरूरी है फूड्स
- मां का दूध
- दालें और मेवे
- डेयरी उत्पाद
- मांस और अंडे
- अनाज, जड़ें और कंद
- विटामिन युक्त फल व सब्जियां