बीवी से लड़कर दामाद ने सास को बनाया था हवस का शिकार, कोर्ट ने बरकरार रखी सजा; कहा- नारीत्व को अपवित्र किया
बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट की पीठ ने सास से दुष्कर्म के मामले में एक दोषी को सजा को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि दोषी द्वारा गया गया कृत्य शर्मनाक है। पीड़िता उसकी मां के समान थी उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसका दामाद कभी उसके साथ इस तरह की हरकत कर सकता है। दोषी ने उसकी नारीत्व को अपवित्र किया है।
पीटीआई, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने सास से दुष्कर्म के लिए एक व्यक्ति की सजा बरकरार रखी है। कोर्ट ने कहा कि यह शर्मनाक कृत्य था और पीड़िता उसके लिए मां जैसी थी। जस्टिस जी ए सनप की एकल पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि पीड़िता की उम्र दोषी की मां के बराबर थी और उसने 'उसकी नारीत्व को अपवित्र' किया।
कोर्ट ने कहा कि महिला ने कभी नहीं सोचा होगा कि उसका दामाद ऐसा निंदनीय कृत्य करेगा और वह जीवन भर इस कलंक को अपने साथ लेकर चलेगी।
कोर्ट ने कहा, 'यह ध्यान देने योग्य है कि अपीलकर्ता (दोषी), जो अभियोक्ता (शिकायतकर्ता पीड़िता) का दामाद है, ने अपनी सास के साथ यह शर्मनाक कृत्य किया है, जो उसकी अपनी मां की उम्र की है। अपीलकर्ता ने अभियोक्ता की नारीत्व को अपवित्र किया है।'
अपराध की गंभीरता
हाई कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने पीड़िता के साथ अपने संबंधों का फायदा उठाया। पीड़िता ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसका दामाद उसके साथ ऐसा घृणित कृत्य करेगा। पीठ ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य दुष्कर्म के मामले को साबित करने के लिए पर्याप्त थे और दोषी को दी गई सजा अपराध की गंभीरता के बिल्कुल विपरीत थी।
क्या था मामला?
- बता दें कि दोषी ने सत्र न्यायालय के मार्च 2022 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दिसंबर 2018 में अपनी 55 वर्षीय सास के साथ दुष्कर्म के लिए उसे दोषी ठहराया गया था और 14 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।
- शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसके दामाद और बेटी अलग हो गए थे और उसके दो पोते अपने पिता के साथ रहते थे। कथित घटना के दिन आरोपी पीड़िता से मिलने गया, उससे झगड़ा किया और मांग की कि वह अपनी बेटी को उसके साथ फिर से रहने के लिए समझाए।
- आरोपी की मजबूरी पर पीड़िता (सास) उसके साथ उसके घर चली गई। रास्ते में आरोपी ने शराब पी और कथित तौर पर महिला के साथ तीन बार दुष्कर्म किया। महिला ने अपनी बेटी को कथित घटना के बारे में बताया और फिर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
कोई अपने चरित्र पर कलंक नहीं लगा सकता
अपनी अपील में व्यक्ति ने दावा किया कि यह सहमति से बनाया गया यौन संबंध था और उसे झूठे दुष्कर्म के मामले में फंसाया गया था। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि घटना के समय पीड़िता 55 वर्ष की थी और झूठे आरोप लगाकर अपने चरित्र पर ऐसा कलंक नहीं लगा सकती।
उच्च न्यायालय ने कहा कि इस तरह के मामले की पुलिस को रिपोर्ट करना कलंकपूर्ण परिणामों को आमंत्रित करता है। अगर यह सहमति से किया गया कार्य था, तो वह पुलिस को घटना की सूचना ही नहीं देती। अगर यह सहमति से किया गया कार्य था, तो वह अपनी बेटी को भी इसके बारे में नहीं बताती।
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