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राजनीति की दिशा और दशा बदल सकते हैं पांच मामलों में आने वाले फैसले, राहुल गांधी का चुनावी भविष्य भी होगा तय

अगले साल देश में आम चुनाव हैं और सभी राजनीतिक दलों ने अभी से कमर कस ली है और तैयारी शुरू कर दी है। राजनीतिक दल एक एक कदम साध कर रख रहे हैं और हर एक बयान चुनावी गणित का जोड़ घटाना लगा कर दे रहें हैं लेकिन कुछ ऐसे मामले हैं जिन पर आने वाले फैसले लोकसभा चुनाव की सियासी बयार बदल सकते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sat, 29 Jul 2023 08:49 PM (IST)
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राहुल गांधी का चुनावी भविष्य भी होगा तय

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अगले साल देश में आम चुनाव हैं और सभी राजनीतिक दलों ने अभी से कमर कस ली है और तैयारी शुरू कर दी है। राजनीतिक दल एक एक कदम साध कर रख रहे हैं और हर एक बयान चुनावी गणित का जोड़ घटाना लगा कर दे रहें हैं, लेकिन कुछ ऐसे मामले हैं जिन पर आने वाले फैसले लोकसभा चुनाव की सियासी बयार बदल सकते हैं। इनमें से कुछ मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं तो कुछ चुनाव आयोग के समक्ष हैं।

जिन मामलों पर आने वाले फैसले देश की चुनावी राजनीति को प्रभावित करेंगे उनमें जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 निरस्त किया जाना, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की अयोग्यता, दिल्ली सरकार में सेवाओं पर नियंत्रण के मामले में केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश की वैधानिकता और शिवसेना के शिंदे गुट के विधायकों की अयोग्यता का सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामला है।

NCP का भविष्य होगा तय

इसके अलावा एनसीपी से अलग हुए अजित पवार गुट और शरद पवार गुट के बीच पार्टी की दावेदारी को लेकर चुनाव आयोग में अर्जियां गई हैं और एनसीपी पार्टी का भविष्य तय करने वाला मामला चुनाव आयोग में है। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ दो अगस्त से जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

अनुच्छेद 370 मामले में सुनवाई

सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय पीठ में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत हैं।

इस पीठ में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल इसी वर्ष दिसंबर में सेवानिवृत हो जाएंगे ऐसे में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के मामले में सुनवाई पूरी होकर उससे पहले फैसला आ सकता है। हालांकि, ये आने वाले फैसले पर निर्भर करेगा कि कौन सा राजनीतिक दल उस पर क्या रुख अपनाता है, लेकिन जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद ये पहला लोकसभा चुनाव होगा।

राहुल गांधी की अयोग्यता का मामला

राजनीतिक लिहाज से अगर देखा जाए तो सबसे महत्वपूर्ण मामला राहुल गांधी की अयोग्यता का है। राहुल गांधी को गुजरात की एक अदालत ने आपराधिक मानहानि में दोषी ठहराते हुए दो वर्ष के कारावास की सजा सुनवाई है।

राहुल गांधी ने सजा के खिलाफ अपील दाखिल कर दी है और उनकी सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगा कर उन्हें जमानत भी मिल गई है, लेकिन दो वर्ष की कैद होने के कारण राहुल गांधी चुनाव लड़ने और सदन के सदस्य होने के अयोग्य हो गए हैं।

कब होगी सुनवाई?

गुजरात की सत्र अदालत और गुजरात हाई कोर्ट राहुल गांधी की दोष सिद्धि पर रोक लगाने की मांग ठुकरा चुका है और अब उन्हें अंतिम उम्मीद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से ही है।

राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट उनकी याचिका पर नोटिस जारी कर चुका है और मामले में सुप्रीम कोर्ट में चार अगस्त को सुनवाई होनी है।

अयोग्यता का मामला लंबित

महाराष्ट्र में राजनैतिक दलों के बीच सियासी घमासान अपने चरम पर है। पहले शिवसेना टूटी और उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के शिवसेना के दो गुट बन गए फिर एक दूसरे के खिलाफ अयोग्यता और कानूनी लड़ाई का दौर चला।

चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना मान कर तीर कमान चुनाव चिन्ह शिंदे गुट के नाम कर दिया, लेकिन उद्धव ठाकरे गुट की शिंदे गुट के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता का मामला विधानसभा स्पीकर के सामने लंबित है। स्पीकर उस पर सुनवाई नहीं कर रहे हैं और इसलिए उद्धव गुट ने स्पीकर को जल्दी सुनवाई कर अयोग्यता याचिकाएं तय करने का सुप्रीम कोर्ट से निर्देश मांगा है।

NCP में भी पड़ी फूट

महाराष्ट्र में एनसीपी के भी दो गुट हो गई हैं और अजित पवार चाचा शरद पवार से अलग होकर कुछ विधायकों के साथ महाराष्ट की शिंदे सरकार में शामिल हो गए हैं। इतना ही नहीं शिंदे गुट ने स्वयं को असली एनसीपी होने का दावा भी चुनाव आयोग के समक्ष कर दिया है।

दूसरी ओर शरद पवार गुट ने भी चुनाव आयोग में स्वयं को असली एनसीपी बताने की दावेदारी कायम रखी है। इस मामले में चुनाव आयोग का जो भी फैसला आएगा उसका निश्चित तौर पर असर अगले लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। वैसे भी चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ पक्षकार सुप्रीम कोर्ट जरूर जाएंगे और वहां भी सुप्रीम कोर्ट ही एनसीपी का भाग्य तय करने वाला साबित हो सकता है।

दिल्ली बनाम केंद्र सरकार

पांचवा मामला दिल्ली की सियासत से जुड़ा है। जबसे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तभी से दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों की खींचतान चल रही है। कई दौर की मुकदमेबाजी हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी आए, लेकिन विवाद बरकरार है।

ताजा मामला दिल्ली की सेवाओं और अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग के बारे में केंद्र के अध्यादेश का है जिसमें अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले में एक अथारिटी तो गठित की गई है, लेकिन किसी तरह की मतभिन्नता होने पर अंतिम फैसला उप राज्यपाल को करने की शक्ति दी गई है यानी सेवाओं पर नियंत्रण में उपराज्यपाल का वर्चस्व कायम है।

दिल्ली सरकार ने इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट के सेवाओं मामले में दिये गए फैसले का उल्लंघन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसमें जो भी फैसला आएगा वह दिल्ली की राजनीति पर असर डालने वाला होगा। वैसे भी आम आदमी पार्टी सारे विपक्षी दलों से दिल्ली अध्यादेश को कानून का रूप देने के लिए संसद में लाए जाने वाले विधेयक का विरोध करने के लिए तैयार करने में जुटी है।