विज्ञान के क्षेत्र में समूचे विश्व में महिलाओं के साथ भेदभाव, अब खत्म हो लैंगिक असमानता
विज्ञान के क्षेत्र में समूचे विश्व में महिलाओं के साथ भेदभाव होता रहा है। भारत के सबसे बड़े वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास संगठन ‘सीएसआइआर’ द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार इच्छा और रुचि के बावजूद भारत के विज्ञान जगत में महिलाओं की स्थिति सुधरी नहीं है।
By TilakrajEdited By: Updated: Sat, 02 Jul 2022 11:06 AM (IST)
नई दिल्ली, प्रदीप। आजकल लगभग सभी मंचों से समाज में महिलाओं को बराबरी का स्थान देने की बात की जाती है। परंतु वैश्विक स्तर पर विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात करें तो कुछ दूसरा ही दृश्य उभरता है। प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका ‘नेचर टुडे’ में हाल में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, विज्ञान में बराबरी से काम करती महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों से 59 प्रतिशत पीछे हैं। महिला शोधकर्ताओं द्वारा शीर्ष विज्ञान जर्नल्स में प्रकाशित किए गए काम को पुरुष शोधकर्ता द्वारा प्रकाशित किए गए उसी गुणवत्ता के काम की तुलना में काफी कम उल्लेख मिलते हैं। यहां तक कि 59 प्रतिशत मामलों में पूरा श्रेय पुरुष अपनी ही झोली में डाल लेते हैं।
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए इस अध्ययन में 9,778 शोध दलों से वार्ता की गई, जिनमें लगभग डेढ़ लाख स्त्री-पुरुष सम्मिलित थे।निश्चित रूप से विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ विज्ञान में भी महिलाओं की संख्या बढ़ी है, किंतु अब भी लिंग-आधारित भेदभाव दिखने में आ ही जाता है। अन्य क्षेत्रों की भांति विज्ञान में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुरुषों की तुलना में बहुत कम है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के योगदानकर्ताओं के रूप में महिलाओं का नाम बमुश्किल याद किया जाता है। भारत के सबसे बड़े वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास संगठन ‘सीएसआइआर’ द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार इच्छा और रुचि के बावजूद भारत के विज्ञान जगत में महिलाओं की स्थिति सुधरी नहीं है।
इस सर्वे के अनुसार, देश के अनुसंधान और विकास क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी केवल 15 प्रतिशत है। वैसे यूनेस्को के ताजा सर्वे के अनुसार समूचे विश्व में 30 प्रतिशत महिलाएं ही शोध के क्षेत्र में हैं, वहीं 13.9 प्रतिशत के साथ दक्षिण एशिया की स्थिति तो और भी ज्यादा खराब है।आखिर इस लैंगिक असमानता के पीछे क्या कारण हैं? सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति के बावजूद आज भी पूरे विश्व में व्यावहारिक स्तर पर लैंगिक रूढ़िवादिता जटिल रूप में मौजूद है।
आम तौर पर यह मान्यता व्याप्त है कि कुछ खास कार्यो के लिए पुरुष ही योग्य होते हैं और महिलाओं की अपेक्षा पुरुष इन कार्यों में ज्यादा कुशल होते हैं और महिलाएं अपेक्षाकृत कोमल होती हैं, इसलिए वे मुश्किल कार्यों के लिए अयोग्य हैं। यह पूर्वाग्रह अभी भी कायम है कि लड़कियां और महिलाएं विज्ञान और गणित पसंद नहीं करतीं हैं या उनकी इन विषयों में रुचि नहीं होती है। पुरुषों के अलावा तमाम महिलाएं भी यही सोचती हैं कि वे ‘नजाकत भरे’ कार्यों या विषयों (जैसे सामाजिक विज्ञान और गृह विज्ञान) के ही योग्य हैं। ऐसी मानसिकता से मुक्ति पाकर अब विज्ञान के क्षेत्र में लड़कियों के आगे आने की सभी बाधाएं दूर करने की आवश्यकता है।(लेखक विज्ञान के जानकार हैं)