अब 1962 वाला भारत नहीं, डोकलाम से देपसांग तक... वो जगहें जहां चीन को पीछे खींचने पड़े अपने कदम
करीब चार साल बाद सीमा पर भारत और चीन के बीच गतिरोध खत्म होने के आसार हैं। दोनों देश समझौते के बेहद करीब हैं। मई 2020 में चीन ने पूर्वी लद्दाख में सीमा स्थिति बदलने की कोशिश की थी। मगर भारतीय जवानों ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया था। इससे पहले 2017 में डोकलाम में भी चीन को भारत के हाथों मुंह की खानी पड़ी थी।
जेएनएन, नई दिल्ली। भारत अब 1962 वाला देश नहीं रहा। जो इसकी कथनी है, वही इसकी करनी है। दुनिया इसे देख चुकी है और इसका ताजा उदाहरण चीन के कदम से देखा जा सकता है। पहले जून 2017 में डोकलाम की तनातनी के बाद चीन को यहां से अपने पैर वापस खींचने पड़े और अब जून 2020 में टकराव के चार वर्षों बाद चीन ने फिर से कदम वापस कर लिए हैं।
आज का भारत अपने हकों के लिए लड़ता है और आवाज बुलंद करता है, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि यह शांति और वसुधैव कुटुंबकम में यकीन रखता है। आइए देखें इस पूरे सफर की टाइम लाइन।
भारत-चीन की सीमा
भारत और चीन के बीच कोई सीमा नहीं है। इनके बीच केवल एक काल्पनिक सीमांकन है, ना कि किसी मानचित्र या जमीन पर। इन दोनों देशों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अलग करती है। हालांकि, दोनों देश एलएसी पर सहमत नहीं हैं। भारत एलएसी को 3,488 किलोमीटर लंबा मानता है, जबकि चीन इसे केवल 2000 किलोमीटर ही मानता है।डोकलाम का मामला
भारत-भूटान और चीन के बीच का तिकोना पठारी हिस्सा डोकलाम है। चीन यहां पर अपनी मौजूदगी चाहता है और इस पर मार्ग बनाकर पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ने वाली भारतीय सीमा के पास आना चाहता है। इससे जुड़े समझौते भी हैं, जो चीन को यहां आने से रोकते हैं, लेकिन ड्रैगन अपनी हरकतों से बाज नहीं आता।कब हुआ विवाद
भूटान के डोकलाम में 16 जून 2017 को चीन सड़क निर्माण सामग्री पहुंचाने लगा। विरोध के बाद भी जब चीनी सेना नहीं मानी, तो भूटान ने भारत की मदद मांगी। भारतीय सेना ने हस्तक्षेप किया और पीएलए को रोका। इससे गतिरोध बढ़ा और भारत ने अपने सैनिकों की तैनाती जारी रखी। हालांकि काफी विवाद और हस्तक्षेप के बाद 28 अगस्त को दोनों देशों ने अपनी सेनाएं वापस ले लीं।