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शिवलिंग पर बिच्छू वाले मामले में शशि थरूर को सुप्रीम कोर्ट से राहत, पीएम मोदी पर की थी टिप्पणी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाकर कथित तौर पर शिवलिंग पर बिच्छू वाली टिप्पणी करने के लिए दायर मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस सांसद शशि थरूर के विरुद्ध ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक को चार सप्ताह के लिए बढ़ा दिया। पीठ ने निर्देश दिया था कि अंतरिम आदेश (मानहानि कार्यवाही पर रोक का) जारी रहेगा।

By Agency Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Mon, 14 Oct 2024 07:16 PM (IST)
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बिच्छू वाले मामले में शशि थरूर को सुप्रीम कोर्ट से राहत
पीटीआई, नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाकर कथित तौर पर 'शिवलिंग पर बिच्छू' वाली टिप्पणी करने के लिए दायर मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस सांसद शशि थरूर के विरुद्ध ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक को चार सप्ताह के लिए बढ़ा दिया। जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने थरूर की याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए दिल्ली पुलिस और शिकायतकर्ता को चार सप्ताह का समय दिया है।

पीठ ने निर्देश दिया कि अंतरिम आदेश (मानहानि कार्यवाही पर रोक का) जारी रहेगा। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल राजकुमार भास्कर ठाकरे ने कहा कि प्राथमिक प्रश्न यह है कि शिकायतकर्ता बीजेपी नेता राजीव बब्बर पीड़ित पक्ष हैं या नहीं।

ठाकरे और बब्बर के वकील ने समय की मांग की

बाद में ठाकरे और बब्बर के वकील ने याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय की मांग की। टॉप अदालत ने 10 सितंबर को मामले में ट्रायल कोर्ट के समक्ष मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। थरूर ने दिल्ली हाई कोर्ट के 29 अगस्त के आदेश के विरुद्ध शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें उनके विरुद्ध मानहानि की कार्यवाही को रद्द करने से इनकार करते हुए उन्हें 10 सितंबर को ट्रायल कोर्ट में पेश होने को कहा गया था।

मोदी की तुलना शिवलिंग पर बैठे बिच्छू से की

उल्लेखनीय है कि अक्टूबर, 2018 में थरूर ने कथित तौर पर दावा किया था कि एक अनाम आरएसएस नेता ने मोदी की तुलना ''शिवलिंग पर बैठे बिच्छू'' से की थी।

वकील ने इस मामले में दलील दी थी कि शशि थरूर की टिप्पणी मानहानि कानून के प्रतिरक्षा खंड के तहत संरक्षित है, जो यह निर्धारित करती है कि अच्छी सोच के साथ दिया गया बयान गलत नहीं है। वहीं वकील ने इस मामले में आगे ये भी कहा था कि शशि थरूर ने टिप्पणी करने से छह साल पहले कारवां पत्रिका में प्रकाशित एक लेख का संदर्भ दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी हैरानी

इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई थी कि 2012 में उस वक्त यह बयान अपमानजनक नहीं था जब आलेख मूल रूप से प्रकाशित हुआ था।

इसको लेकर जस्टिस रॉय ने सुनवाई के दौरान कहा था, 'आखिरकार यह एक रूपक है। मैंने समझने की कोशिश की है। यह संदर्भित व्यक्ति (पीएम मोदी) की अपराजेयता को दर्शाता है।

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