Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गिरफ्तार क्यों नहीं किए जाते पराली जलाने वाले किसान? सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण पर जताई चिंता, राज्य सरकारों से मांगा जवाब

    Updated: Wed, 17 Sep 2025 10:16 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने सर्दियों में बढ़ते वायु प्रदूषण पर चिंता जताई है। पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का सुझाव दिया है ताकि एक कड़ा संदेश जा सके। कोर्ट ने पंजाब सरकार से पूछा कि पराली जलाने वाले किसानों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा सकता। अदालत ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई पर जोर दिया और प्रदूषण नियंत्रण उपायों की जानकारी मांगी।

    Hero Image
    सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण पर जताई चिंता, राज्य सरकारों से मांगा जवाब (पीटीआई)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सर्दियों में सामान्य तौर पर वायु प्रदूषण बढ़ जाने के बारे में बुधवार को चिंता जताते हुए पराली जलाने वाले किसानों पर कठोर कार्रवाई करने पर विचार करने को कहा ताकि एक संदेश जाए। कोर्ट ने पंजाब सरकार से पूछा कि पराली जलाने वाले जो कुछ किसान हैं उन्हें गिरफ्तार क्यों न किया जाए, ताकि एक कड़ा संदेश दिया जा सके।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शीर्ष अदालत ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई पर जोर देते हुए कहा कि किसान देश के लिए महत्वपूर्ण हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि उन्हें बिना रोक टोक पराली जलाने की अनुमति दी जाए।

    दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण के मुद्दे पर सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि किसान हमारे लिए विशेष हैं हम उनकी बदौलत खा रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम पर्यावरण की रक्षा नहीं कर सकते। कोर्ट ने सरकार से कहा कि आप निर्णय लें अन्यथा हम आदेश जारी करेंगे।

    पराली जलाने के दोषी किसानों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया- कोर्ट

    कोर्ट ने पंजाब सरकार की ओर से पेश वकील राहुल मेहरा से पूछा कि पराली जलाने के दोषी किसानों को क्यों नहीं गिरफ्तार करके पराली जलाने के लिए उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि हम किसानों का सम्मान करते हैं। किसान खास हैं और हम उनकी बदौलत खा रहे हैं लेकिन किसी को भी पर्यावरण को प्रदूषित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    पीठ ने सरकार से कहा कि आप दंडात्मक प्रविधानों के बारे में क्यों नहीं विचार करते। अगर कुछ लोग जेल जाएंगे तो इससे सही संदेश जाएगा। अगर वास्तव में आपकी मंशा पर्यावरण संरक्षण की है तो फिर आप कार्रवाई करने से क्यों हिचकिचा रहे हैं।

    पराली जलाने की घटनाओं में आई कमी

    कोर्ट ने इसके पहले सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि पराली को जलाने के बजाए जैव ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। मेहरा ने कहा कि पंजाब सरकार पहले ही कई कदम उठा चुकी है और प्रदूषण का स्तर धीरे-धीरे कम हो रहा है। पिछले साल इसमें कमी आयी थी अब और भी कमी आएगी। तीन सालों में बहुत कुछ हासिल किया गया है और इस साल भी बहुत कुछ हासिल किया जाएगा। हाल के वर्षों में पराली जलाने की संख्या 77000 से घट कर 10000 रह गई है।

    वकील ने कहा कि एक हेक्टेयर जमीन जोतने वाले किसानों को गिरफ्तार करने से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और अगर उन्हें गिरफ्तार किया जाता है तो उनके आश्रितों को भी नुकसान होगा। कोर्ट ने जब पूछा कि किस कानून के तहत पराली जलाने पर रोक है तो एक वकील ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का हवाला दिया। हालांकि कोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत आपराधिक मुकदमा चलाने के प्रविधान वापस ले लिए गए हैं।

    चीफ जस्टिस ने पूछा कि इसे वापस क्यों लिया गया? लोगों को सलाखों के पीछे डालने से सही संदेश जाएगा। पीठ को बताया गया कि पर्यावरण संरक्षण कानून दंड का प्रविधान नहीं करता, बल्कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) अधिनियम दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रविधान करता है। हालांकि चीफ जस्टिस ने वकील मेहरा द्वारा जताई गई चिंताओं पर गौर करते हुए अपनी टिप्पणियों को स्पष्ट किया और कहा कि नियमित रूप से गिरफ्तारियां नहीं होनी चाहिए, बल्कि एक उदाहरण स्थापित करने के लिए जरूरी हो सकती हैं।

    नियमित रूप से नहीं बल्कि एक संदेश देने के लिए हो सकती हैं। मामले में न्यायमित्र वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि 2018 से सब्सिडी उपकरण और कोर्ट के बार बार आदेश के बावजूद जमीनी स्तर पर कोई खास सुधार नहीं हुआ है। सीएक्यूएम की ओर से पेश एडीशनल सालिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अपडेटेड स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय मांगा।

    सीएक्यूएम और सीपीसीबी से तीन सप्ताह में प्रदूषण नियंत्रण उपायों की मांगी जानकारी

    कोर्ट ने बुधवार को सीएक्यूएम और सीपीसीबी व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को तीन सप्ताह में प्रदूषण नियंत्रण के उपायों की जानकारी देने का निर्देश दिया है। मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में रिक्तियों के लिए राज्यों की खिंचाई की। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब को निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर खाली पदों को भरें। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को भी तीन महीने में रिक्तियां भरने का आदेश दिया। हालांकि प्रोन्नति पदों को भरने के लिए छह महीने का समय दिया गया है।

    यह भी पढ़ें- प्रदूषण से ब‍िगड़ सकता है गर्भ में पल रहे बच्‍चे का द‍िमागी व‍िकास, नई स्‍टडी में हुआ खुलासा