...तो चुनाव में रेवड़ी भी जरूरी, महाराष्ट्र में 6 महीने में BJP ने कैसे बदला सियासी गणित; कांग्रेस के सामने क्या चुनौती?
Maharashtra Election Result 2024 महाराष्ट्र की जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया है। भाजपा नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने 235 सीटों पर कब्जा जमाया है। महा विकास अघाड़ी गठबंधन को 49 सीटों पर जीत मिली है। लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था। मगर छह महीने बाद गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस हार जीत के अपने सियासी मायने हैं।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में महायुति (राजग) की आंधी आई तो झारखंड में झामुमो के असर के सामने राजग की सारी रणनीति धुल गई। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक एक की बराबरी पर सिमट गया। अच्छी बात रही कि जनता ने जिसे भी चुना स्पष्ट बहुमत दिया ताकि सरकार स्थायी हो। मगर हरियाणा की अचंभित जीत के एक-डेढ़ महीने के अंदर ही महाराष्ट्र जैसे बड़े और राष्ट्रीय प्रभाव डालने वाले राज्य में चौंधियाने वाली जीत को क्या माना जाए।
यूपी में भी भाजपा का जलवा
महाराष्ट्र की जीत का पुख्ता संकेत मिलने के तत्काल बाद महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री व संभवत: भावी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट किया- ''एक हैं तो सेफ हैं, मोदी है तो मुमकिन है।'' यानी 2019 के उस नारे की भी वापसी हो गई जिसने पूरे देश में लहर को पैदा किया था। उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने जिस तरह सपा की जीती हुई सीटों पर कब्जा किया है वह बताता है कि लोकसभा के नतीजे से भाजपा बाहर आ चुकी है।
बिहार और दिल्ली में परीक्षा
बहरहाल, इसकी परीक्षा होनी बाकी है कि राजग की लहर कितनी बड़ी है क्योंकि बहुत जल्द ही दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं और फिर राजनीतिक रूप से अहम बिहार में। वैसे एक बात चुनाव दर चुनाव साबित हो रही है कि रेवड़ी मीठी होती है।
झारखंड में क्यों हारी भाजपा?
झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी ने फिर से यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य में आदिवासियों के वही एक मान्य नेता हैं। लगातार दूसरी बार भाजपा की हार के कई और भी कारण हो सकते हैं जिसके कारण घुसपैठिया, धर्म परिवर्तन जैसा मुद्दा भी नहीं चल पाया। मगर एक और मुद्दे पर भाजपा को विशेष तौर पर विचार करना पड़ेगा कि विधानसभा चुनावों में बाहर से आए नेताओं को पर्दे के पीछे रखना है कि आगे।कांग्रेस को करनी पड़ेगी क्षेत्रीय दलों की सवारी
महाराष्ट्र में भी भाजपा ने कई बड़े केंद्रीय नेताओं को जिम्मेदारी दी थी लेकिन वह सभी पर्दे के पीछे से रणनीति का जिम्मा संभालते रहे। झारखंड में स्थिति थोड़ी अलग थी जिसे झामुमो ने स्थानीय बनाम बाहरी की कसौटी पर भुनाया।दूसरी बार वापसी हेमंत सोरेन के लिए बहुत बड़ी जीत है लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि महाराष्ट्र की आंधी और उत्तर प्रदेश उपचुनाव के नैरेटिव में राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के लिए झारखंड राहत की सांस भर है। जबकि कांग्रेस के लिए फिर से एक संदेश कि फिलहाल कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के कंधों पर ही सवारी करनी है।