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Maharashtra Election Result: बेमेल चुनावी नैरेटिव... महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार के 10 फैक्टर

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में पिछले महीने हुए चुनाव में उम्मीद के विपरीत लगे झटके के बावजूद महाराष्ट्र में सत्ता हासिल करने का सुनहरा मौका गंवाने से साफ है कि पार्टी अपनी संगठनात्मक और रणनीतिक कमजोरी का समाधान निकालने में विफल हो रही है। झारखंड में आईनडीआईए गठबंधन की जीत के साथ केरल और कर्नाटक उपचुनाव के नतीजों की ओट लेकर पार्टी इस विफलता को ढंकने का चाहे प्रयास कर रही।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Sat, 23 Nov 2024 08:19 PM (IST)
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नाना पटोले, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी (Photo Jagran)
संजय मिश्र, जागरण नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन के दम पर मुख्यधारा की राजनीति में विपक्ष को वापस लौटने का दमखम दिखाने वाली कांग्रेस पांच महीने के दौरान ही एक बार फिर तेजी से लुढ़कती दिखाई दे रही है। महाराष्ट्र चुनाव में महाविकास अघाड़ी के साथ-साथ इसकी अगुवाई कर रही कांग्रेस की करारी हार इसका ताजा प्रमाण है।

हाशिए पर जाती कांग्रेस

चुनावी राजनीति में हार-जीत का चक्र असामान्य नहीं मगर कांग्रेस के लिए बनी यह स्थिति इस लिहाज से सोचनीय है कि पार्टी उन राज्यों में फिर हाशिए पर जाती दिख रही है जहां लोकसभा चुनाव में उसने मजबूत वापसी की थी। लोकसभा में एक समर्थित निर्दलीय समेत 14 सीटें हासिल कर महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस पांच महीने में ही विधानसभा में लुढ़क कर पांचवे पायदान की पार्टी बन गई है।

हरियाणा से भी बदहाल स्थिति

लोकसभा के नतीजों के आधार पर ही कांग्रेस नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी गठबंधन को सत्ता की प्रबल दावेदार माना जा रहा था मगर पार्टी यहां हरियाणा से भी बदहाल स्थिति में पहुंच गई है।

कांग्रेस का दांव नाकाम

हरियाणा व जम्मू-कश्मीर के बाद महाराष्ट्र की मात इस बात का भी संकेत दे रही कि राज्यों के चुनाव को भी राष्ट्रीय विमर्श पर लड़ने का कांग्रेस का दांव नाकाम हो रहा है।

नैरेटिव बनाने की कोशिश

विधानसभा चुनाव की जमीनी हकीकत और जनता के मिजाज को भांपने की बजाय पार्टी ने हरियाणा की गलती से सबक न लेते हुए महाराष्ट्र में भी लोकसभा चुनाव के मुद्दे के जरिए ही नैरेटिव बनाने की कोशिश की।

प्रचार अभियान का विमर्श

कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के प्रचार अभियान का विमर्श जातीय जनगणना, मित्र पूंजीवाद से लेकर चुनाव आयोग से लेकर तमाम संस्थानों पर भाजपा-आरएसएस के कब्जा कर लेने के ईद-गिर्द ही रहा।

नहीं चला ये मुद्दा

बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा भी उनके विमर्श की धुरी में शामिल रहा मगर लोकसभा की तरह इन मुद्दों को विधानसभा में पार्टी के लिए फायदेमंद बनाने का उनका दो महीने के भीतर दूसरी बार नहीं चल पाया है।

हेमंत सोरेन की बढ़ी लोकप्रियता

जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के करिश्मे ने कांग्रेस के विफलता को तात्कालिक तौर पर ढंक दिया था। इसी तरह झारखंड में कांग्रेस का पिछला प्रदर्शन बरकार रहा है तो इसमें हेमंत सोरेन की बढ़ी लोकप्रियता का बड़ा योगदान माना जा रहा है।

राहुल गांधी की मुखरता पर असहज

विपक्षी राजनीति की डोर संभाले रखने की जरूरत के लिहाज से कांग्रेस नेतृत्व जातीय जनगणना और आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा हटाने को लेकर मंडल राजनीति की पैरोकार दलों से भी ज्यादा मुखर है। वैसे हकीकत यह भी है कि पार्टी में अंदरखाने एक वर्ग जातीय जनगणना पर राहुल गांधी की मुखरता को लेकर असहज है।

मध्यम वर्ग में नाराजगी

हालांकि वर्तमान नेतृत्व के पार्टी पर मजबूत नियंत्रण के चलते खुले रूप में यह असहमति सामने नहीं आती मगर दबी जुबान में इस पर चिंता जरूर जाहिर करते हैं कि जातीय जनगणना पर जोर देने के कारण भाजपा से निराश होने के बावजूद मध्यम वर्ग का एक बड़ा आधार कांग्रेस से जुड़ नहीं पा रहा है।

सामाजिक समीकरण

जबकि परिसीमन के बाद लोकसभा-विधानसभा में शहरी सीटों की संख्या तथा सामाजिक समीकरण में तब्दीली आयी है। ऐसे में इस हकीकत को गहराई से भांप मुद्दे-विमर्श को आकार देने की बजाय राज्यों के चुनाव में अब भी राष्ट्रीय विमर्श का नैरेटिव चलाने की राजनीतिक रणनीति पर चिंतन-मंथन करने में देरी हुई तो कांग्रेस को आगे आने वाले राज्यों के चुनाव में कहीं ज्यादा मुश्किल होगी।