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क्या NOTA को 'Tata' कर रहे लोग? जानिए क्या कहते हैं महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के नतीजे

Assembly Election 2024 महाराष्ट्र और झारखंड दोनों राज्यों में जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया है और अपनी पसंद की सरकार चुनी है लेकिन हर बार की तरह इस बार भी नोटा का विकल्प बहुत कम लोगों ने अपनाया। गौरतलब है कि जब मतदाता किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते हैं तो वह नोटा का विकल्प अपनाते हैं। हालांकि इसकी प्रासंगिकता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं।

By Agency Edited By: Sachin Pandey Updated: Sat, 23 Nov 2024 07:32 PM (IST)
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महाराष्ट्र के मुकाबले झारखंड में अधिक लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया। (File Image)
पीटीआई, नई दिल्ली। महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के साथ कई राज्यों के उपचुनाव के नतीजे भी शनिवार को घोषित हुए। नतीजों में एक गौर करने वाली बात यह भी रही कि नोटा विकल्प का इस्तेमाल लगातार घटता जा रहा है।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार दोनों राज्यों में बहुत कम लोगों ने नोटा को अपनाया। महाराष्ट्र में 0.75 प्रतिशत और झारखंड में 1.32 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में एक प्रतिशत से भी कम (0.75 प्रतिशत) मतदाताओं ने 'इनमें से कोई नहीं' या नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया, जहां 288 सीटों के लिए चुनाव हुए।

झारखंड में अधिक रहा नोटा का प्रतिशत

झारखंड में एक प्रतिशत से थोड़ा अधिक (1.32 प्रतिशत) मतदाताओं ने नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया। चुनाव आयोग के अनुसार, महाराष्ट्र में 20 नवंबर को एक चरण के मतदान में 65.02 प्रतिशत मतदान हुआ। वहीं झारखंड में पहले चरण में 66.65 प्रतिशत और दूसरे चरण में 13 नवंबर और 20 नवंबर को 68.45 प्रतिशत मतदान हुआ।

पिछले विधानसभा चुनावों में जम्मू-कश्मीर में हरियाणा के मुकाबले ज्यादा मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था। 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा के चुनावों में दो करोड़ से ज्यादा मतदाताओं में से 67.90 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इनमें से 0.38 प्रतिशत ने नोटा का विकल्प चुना था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद किया गया था शुरू

2013 में शुरू किए गए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर नोटा विकल्प का अपना प्रतीक है- एक बैलेट पेपर, जिस पर काले रंग का क्रॉस बना होता है। सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम पर नोटा बटन को वोटिंग पैनल पर अंतिम विकल्प के रूप में जोड़ा था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले, जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते थे, उनके पास फॉर्म 49-ओ भरने का विकल्प था, लेकिन चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49-ओ के तहत मतदान केंद्र पर फॉर्म भरने से मतदाता की गोपनीयता से समझौता होता था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह निर्देश देने से इनकार कर दिया था कि यदि अधिकांश मतदाता मतदान के दौरान नोटा का विकल्प चुनते हैं तो वह फिर से चुनाव कराए।

'नोटा का केवल प्रतीकात्मक महत्व'

हाल ही में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था, 'मौजूदा स्थिति में नोटा का केवल प्रतीकात्मक महत्व है और इसका किसी भी सीट के चुनाव परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता है।' उन्होंने कहा था, 'राजनीतिक समुदाय को यह दिखाने के लिए कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले या अन्य अयोग्य उम्मीदवारों को अपने वोट के लायक नहीं मानते हैं, 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं को एक सीट पर नोटा का विकल्प चुनना होगा। इसके बाद ही संसद और चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ेगा और उन्हें चुनाव परिणामों पर नोटा को प्रभावी बनाने के लिए कानून बदलने के बारे में सोचना होगा।'