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Khatu Shyam Ji: आखिर बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम, जानें कब मनाया जाता है हारे के सहारे का जन्मदिन?

देशभर में खाटू श्याम को समर्पित कई मंदिर हैं जिनमें रोजाना हारे के सहारे की विशेष पूजा-अर्चना होती है। खाटू श्याम (how Barbarik become Khatu Shyam Ji) के इन्हीं मंदिरों में राजस्थान के सीकर जिले का मंदिर भी शामिल है। यहां भक्तों की अधिक भीड़ होती और किसी खास अवसर पर खाटू नगरी में भव्य नजारा देखने को मिलता है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Mon, 21 Oct 2024 03:38 PM (IST)
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Khatu Shyam Ji: खाटू श्याम की महिमा है निराली
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वर्तमान में लोगों के बीच खाटू श्याम को लेकर गहरी आस्था है। भगवान श्रीकृष्ण का कलयुगी अवतार खाटू श्याम को माना जाता है। प्रभु के भक्त देश-विदेश के कोने-कोने में मौजूद हैं। खाटू श्याम को समर्पित मंदिर राजस्थान के सीकर में स्थित है। धार्मिक मान्यता है कि इस मंदिर में खाटू श्याम के दर्शन और पूजा-अर्चना करने से जातक के बिगड़े काम पूरे होते है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हर साल कार्तिक माह में खाटू श्याम (Khatu Shyam Birthday 2024 Date) के अवतरण दिवस (जन्मदिन) को बहुत उत्साह के साथ मनाया मनाया जाता है। इस खास अवसर पर मंदिर को बहुत ही सुंदर तरीके से सजाया जाता है और इस दौरान श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ होती है। ऐसे में आइए हम आपको बताएंगे कि कब मनाया जाएगा हारे का सहारे का अवतरण दिवस। साथ ही जानेंगे कि बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम?

कब है खाटू श्याम का जन्मदिन?

धार्मिक मान्यता के अनुसार, हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को खाटू श्याम का अवतरण दिवस मनाया जाता है। इस एकादशी को देव उठनी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी 12 नवंबर 2024 को है। वहीं, कुछ मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर खाटू श्याम जन्मदिन मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन खाटू श्याम को भगवान श्रीकृष्ण ने श्याम अवतार होने का वरदान दिया था।

बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम

बर्बरीक की माता का नाम अहिलावती और पिता का नाम घटोत्कच (Ghatotkacha) था। बर्बरीक (how Barbarik became Khatu Shyam Ji) ने महाभारत के युद्ध में जाने की माता से इच्छा जाहिर की। मां की अनुमति मिलने पर उन्होंने अहिलावती से पूछा ‘मैं युद्ध में किसका साथ दूं?’ इसके जवाब में माता ने कहा ‘जो हार रहा हो, तुम उसी का सहारा बनो।’

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इसके बाद युद्ध में बर्बरीक ने माता के वचन का पालन किया। वहीं, जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का अंत जानते थे। इसी वजह से उन्होंने विचार किया किया कि यदि कौरवों को देखते हुए बर्बरीक युद्ध में उनका (कौरवों) का साथ देने लगा देने लगा, तो पांडवों को हार का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया।

ऐसी स्थिति में बर्बरीक सोचने लगा कि कोई ब्राह्मण मेरा शीश क्यों मांगेगा? यह सोच उन्होंने ब्राह्मण से उनके असली रूप के दर्शन की इच्छा जाहिर की। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप में दर्शन दिए। बर्बरीक ने अपना शीश प्रभु को समर्पित कर गए और श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को खाटू श्याम नाम दिया और कहा कि कलयुग में आप आप मेरे नाम से पूजे जाएंगे। धार्मिक मान्यता है कि जिस स्थान पर बर्बरीक का शीश रखा गया। उस जगह पर आज भी खाटू श्याम जी विराजते हैं।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।