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Shardiya Navratri 2024: मां कात्यायनी की इस चालीसा के पाठ से शत्रुओं का होगा नाश, चमक उठेगा सोया हुआ भाग्य

ज्योतिषियों की मानें तो शारदीय नवरात्र (Maa Katyayani Chalisa) की षष्ठी तिथि पर एक साथ कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में मां दुर्गा की उपासना करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख एवं संताप दूर हो जायेंगे। मां कात्यायनी की पूजा करने से अविवाहित जातकों की शीघ्र शादी के योग बनते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 07 Oct 2024 05:59 PM (IST)
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Shardiya Navratri 2024: मां कात्यायनी को कैसे प्रसन्न करें ?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व है। इस दौरान जगत की देवी मां दुर्गा और उनके नौ शक्ति स्वरूपों की पूजा की जाती है। साधक नौ दिनों तक मां दुर्गा की कठिन साधना करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा साधक को मनोवांछित फल देते हैं। शारदीय नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी को दुर्गा और चंडी भी कहा जाता है। अगर आप भी मां कात्यायनी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो शारदीय नवरात्र के छठे दिन स्नान-ध्यान के बाद विधिपूर्वक मां कात्यायनी की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ करें।

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विन्ध्येश्वरी चालीसा

॥ दोहा ॥

नमो नमो विन्ध्येश्वरी,नमो नमो जगदम्ब

सन्तजनों के काज में,माँ करती नहीं विलम्ब॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदि शक्ति जग विदित भवानी॥

सिंहवाहिनी जै जग माता। जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥

कष्ट निवारिनी जय जग देवी। जय जय जय जय असुरासुर सेवी॥

महिमा अमित अपार तुम्हारी। शेष सहस मुख वर्णत हारी॥

दीनन के दुःख हरत भवानी। नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी॥

सब कर मनसा पुरवत माता। महिमा अमित जगत विख्याता॥

जो जन ध्यान तुम्हारो लावै। सो तुरतहि वांछित फल पावै॥

तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी। तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी॥

रमा राधिका शामा काली। तू ही मात सन्तन प्रतिपाली॥

उमा माधवी चण्डी ज्वाला। बेगि मोहि पर होहु दयाला॥

तू ही हिंगलाज महारानी। तू ही शीतला अरु विज्ञानी॥

दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता। तू ही लक्श्मी जग सुखदाता॥

तू ही जान्हवी अरु उत्रानी। हेमावती अम्बे निर्वानी॥

अष्टभुजी वाराहिनी देवी। करत विष्णु शिव जाकर सेवी॥

चोंसट्ठी देवी कल्यानी। गौरी मंगला सब गुण खानी॥

पाटन मुम्बा दन्त कुमारी।भद्रकाली सुन विनय हमारी॥

वज्रधारिणी शोक नाशिनी। आयु रक्शिणी विन्ध्यवासिनी॥

जया और विजया बैताली। मातु सुगन्धा अरु विकराली॥

नाम अनन्त तुम्हार भवानी। बरनैं किमि मानुष अज्ञानी॥

जा पर कृपा मातु तव होई। तो वह करै चहै मन जोई॥

कृपा करहु मो पर महारानी। सिद्धि करिय अम्बे मम बानी॥

जो नर धरै मातु कर ध्याना। ताकर सदा होय कल्याना॥

विपत्ति ताहि सपनेहु नहिं आवै। जो देवी कर जाप करावै॥

जो नर कहं ऋण होय अपारा। सो नर पाठ करै शत बारा॥

निश्चय ऋण मोचन होई जाई। जो नर पाठ करै मन लाई॥

अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावे। या जग में सो बहु सुख पावै॥

जाको व्याधि सतावै भाई। जाप करत सब दूरि पराई॥

जो नर अति बन्दी महं होई। बार हजार पाठ कर सोई॥

निश्चय बन्दी ते छुटि जाई। सत्य बचन मम मानहु भाई॥

जा पर जो कछु संकट होई। निश्चय देबिहि सुमिरै सोई॥

जो नर पुत्र होय नहिं भाई। सो नर या विधि करे उपाई॥

पांच वर्ष सो पाठ करावै। नौरातर में विप्र जिमावै॥

निश्चय होय प्रसन्न भवानी। पुत्र देहि ताकहं गुण खानी॥

ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै। विधि समेत पूजन करवावै॥

नित प्रति पाठ करै मन लाई। प्रेम सहित नहिं आन उपाई॥

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा। रंक पढ़त होवे अवनीसा॥

यह जनि अचरज मानहु भाई। कृपा दृष्टि तापर होई जाई॥

जय जय जय जगमातु भवानी। कृपा करहु मो पर जन जानी॥

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