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Vivah Geet Lyrics: देवउठनी एकादशी के साथ ही शुरू हो चुके हैं मांगलिक कार्य, घर-घर गूंज रहे हैं मंगल और विवाह गीत

अवध में राम की महिमा है लेकिन मिथिला में राम पहुना हैं। मिथिलावासी मानते हैं कि मिथिला आकर राम पूर्ण हुए और ‘सियाराम’ हुए। राम आमजन के इतने अपने हैं कि मिथिलावासी उन्हें निश्छल भाव से गारी (Vivah Geet Lyrics) भी सुना देते हैं। वे मानते हैं कि मड़वा पर बैठाकर राम को उनके कुल को गारी देने का सौभाग्य मिला है।

By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 21 Nov 2024 06:10 PM (IST)
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Vivah Panchami 2024: विवाह पंचमी और मैथिली गीत
मालिनी अवस्थी। भारतीय पंचांग का आधार विज्ञान ऋतु चक्र है। भारतीय संस्कृति में परंपरा का अनुशासन देखते ही बनता है। चातुर्मास में मंगल कार्य निषिद्ध होते हैं, अतएव सबको बड़े चाव से इंतजार होता है देवोत्थानी अथवा देवउठनी एकादशी का। इस एकादशी (जो मंगलवार को थी) के साथ ही ढोलक की थाप गूंज उठती है और विवाह आदि मंगल आयोजनों का शुभारंभ हो जाता है।

ढोलक रानी को न्योता

विवाह के लिए शुभ मुहूर्त वाले दिन प्रारंभ होने के अवसर पर एकादशी के दिन सर्वप्रथम ढोलक पुजाई की जाती है और गमकने लगती है इसकी थाप-

ढोलक रानी मोरे नेवते आइउ।

ढोलक रानी मोर नित उठी आइउ।।

भए मा आइउ छठी म आइउ।

ढोलक रानी मोरे बरही म आइउ।।

मुड़नी म आइउ छेदनी आइउ।।

और इसी तरह ढोलक रानी को जनेऊ से लेकर विवाह और नाती-पनाती के जन्म के शुभ अवसर पर शगुन मानने के लिए गाकर न्योता जाता है। पितरों को याद किया जाता है, इसके बाद देवी सुमिरन। इसमें भी अनुशासन है, पांच या सात या फिर नौ गीत उठाए जाते हैं-

अमृत की बरसे बदरिया,

अंबे मां की दुअरिया।

दादुर मोर पपिहा बोलें,

कोयल सुनावे रागनियां।

अंबे मां की दुअरिया।।

गीतों के केंद्र में श्रीराम सृष्टि नियम से चलती है और इस नियम के नियंता है सृष्टिपालक भगवान विष्णु। श्रीराम विष्णु के अवतार हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, भारत के चित्त में विराजते हैं, राम चरित अति पावन है, वे उत्तम संस्कार के प्रणेता हैं और इसलिए संस्कार गीतों के केंद्र में भगवान श्रीराम हैं-

इन गलियन में लइयो रे रघुनाथ बन्ना को,

अंग में जामा सोहे प्यारे बनरा को,

कलगी में लाल लगइयो रे रघुनाथ बन्ना को।।

लोकसंस्कृति में ब्याह का अर्थ ही है राम सिया का ब्याह! इसीलिए सिया रानी का सुहाग गंगा जमुना की धार की तरह अमर रहे, यही कामना सुहाग में गाई जाती है। अयोध्या में कनक भवन में आज भी यही गूंज सुनाई देती है-

सिया रानी का अचल सुहाग रहे।

राजा राम के सिर पर ताज रहे।।

जब तकले सीस अहिवात रहे।

गंगा जमुना की धारा बहती रहे।।

नित कनक बिहारी बिराज रहे।

नित भरा पूरा दरबार रहे।।

प्रीत में पगी गारी लोकमानस में राम-जानकी के प्रति अपनत्व का भाव इस तरह बसा है कि वे आज भी अपने स्वजनों के विवाह संस्कार में राम-सीता के विवाह गीत गाते हैं। हर वर में राम, हर वधु में सीता देखते हैं। जनक और सुनैना हर कन्या के पिता-माता हैं और दशरथ व कौशल्या वर के पिता-माता-

देखो आज बड़ी भीड़ जनक अंगना।

बागों में राम जी जामा सम्हाले।।

सिया चुनरी सम्हाले जनक अंगना।

देखो आज बड़ी भीड़ जनक अंगना।।

अवध में राम की महिमा है, लेकिन मिथिला में राम पहुना हैं। मिथिलावासी मानते हैं कि मिथिला आकर राम पूर्ण हुए और ‘सियाराम’ हुए। राम आमजन के इतने अपने हैं कि मिथिलावासी उन्हें निश्छल भाव से गारी भी सुना देते हैं। वे मानते हैं कि मड़वा पर बैठाकर राम को, उनके

कुल को गारी देने का सौभाग्य मिला है। उनको, कितनी ही हंसी-ठिठोली की उनके साथ-

राम जी से पूछें जनकपुर की नारी।

बता द बबुवा लोगवा देत काहे गारी।।

तोहरा से पूछूं ए धनुषधारी,

एक भाई गोर काहे एक भाई कारी।

बता द बबुआ लोगवा देत काहे गारी।।

रूठने-मनाने की रिश्तेदारी, ब्याह-शादी में जब तक ठिठोली न हो, नाते रिश्तेदारी में नोक-झोंक न हो तो कैसा उत्सव! मुंडन हो या जनेऊ या फिर विवाह, कोई उत्सव तो तभी मनता है जब पूरा परिवार साथ हो। मगर जहां परिवार में सब एक साथ हुए, तो कोई न कोई रूठने-बिगड़ने का प्रसंग अवश्य होता है और फिर मनाने का सिलसिला।

समय बीत जाने पर ये स्मृतियां ही रिश्तों को नेह की डोर से जोड़ती हैं। विवाह दो परिवारों का मिलन है। मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जहां वर पक्ष के पिता-माता का गारी गाकर स्वागत नहीं किया गया तो उन्होंने इसे अपमान माना और कहकर गारी गवाई। न गारी गाने वालों की हंसी रुक रही थी न सुनने वालों की-

समधिनिया हरजाई न्योता लेके आईं,

लै आई लड्डू ले आई पेड़ा

हलवईया भतार संगे ले के आईं

मांगलिक उत्सव परिवार को जोड़ने के लिए बने हैं। दबी शिकायतें हो या अनकही हिकायतें, मुंडन-जनेऊ-शादी ब्याह के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में सब कुछ कह दिया जाता है।

‘सैयां तेरी बहना बड़ी नखरेवाली’

‘सासू के बोल कठोर दैया मर गई मर गई’

‘इस घर में मेरा गुजारा नहीं ननदी’

‘मैं गोरी सैयां काले मिले मेरे ऐसे नसीब’

‘मार दिया रे रसगुल्ला घुमाय के’

ये गीत मनोविनोद के लिए हैं, शगुन के बीच प्रसन्नता का स्तर उठाने के लिए बनाए गए और अनिवार्यतः गाए जाते हैं। उत्सव का उद्देश्य आनंद प्राप्ति है, आनंद हर उत्सव की ऊष्मा है, एकादशी से उठी ढोलक की अनुगूंज अनंतकाल तक सबके घर में मंगल जगाती रहे!