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Chhath Puja 2024: छठ पूजा के अंतिम दिन ऐसे करें भगवान सूर्य की स्तुति, प्राप्त होगी अपार धन और संपत्ति

छठ पूजा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह भगवान सूर्य और छठी माता को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से सूर्य देव के साथ छठी माता की कृपा प्राप्त होती है। पंचांग के अनुसार आज यानी शुक्रवार 08 नवंबर को छठ पूजा का अंतिम दिन है। इस दिन (Chhath Puja 2024) उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Fri, 08 Nov 2024 06:15 AM (IST)
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Chhath Puja 2024: छठ पूजा के अंतिम दिन ऐसे करें भगवान सूर्य की स्तुति।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आज छठ पूजा का आखिरी दिन है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। यह पर्व भगवान सूर्य और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व के व्रत व पूजन नियम का पालन करने से साधक के परिवार का हर कष्ट दूर होता है। साथ ही जीवन में खुशहाली आती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यदि आप छठी माता की कृपा प्राप्त करने की कामना रखते हैं,

तो आपको इस दिन (Chhath Puja 2024) सूर्य स्तुति का पाठ (Surya Stuti) अवश्य करना चाहिए। इससे अपार यश और धन की प्राप्ति होती है।

।।सूर्य अर्घ्य मंत्र।।

ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।।

ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।।

।। श्री सूर्य स्तुति ।।

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन ।।

त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।

दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।

अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।

विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।

सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।

वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।

हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

॥सूर्य अष्टक स्तोत्रम्॥

नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे ।

त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायण शंकरात्मने ॥॥

यन्मडलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् ।

दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मण्डलं देवगणै: सुपूजितं विप्रैः स्तुत्यं भावमुक्तिकोविदम् ।

तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनं, त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं, त्रिगुणात्मरुपम् ।

समस्ततेजोमयदिव्यरुपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।

यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजु: सामसु सम्प्रगीतम् ।

प्रकाशितं येन च भुर्भुव: स्व: पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।

यद्योगितो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।

यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम् ।

यस्मिन् जगत् संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।

सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ॥

यन्मडलं वेदविदि वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।

यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।

तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

मण्डलात्मकमिदं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ।

॥ सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥

॥ इति श्रीमदादित्यहृदये मण्डलात्मकं स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

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