Ganga ki Katha: इस श्राप के कारण देवी गंगा ने नदी में बहाए थे 7 पुत्र, 8वां बना महाभारत का महान योद्धा
महाभारत (Mahabharat Katha) में कथा मिलती है कि गंगा ने अपने 7 पुत्रों को जन्म के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था। लेकिन क्या आप इसका कारण जानते हैं। दरअसल माता गंगा ने उन 7 पुत्रों को एक श्राप से मुक्त करने के लिए यह कदम उठाया था। तो चलिए जानते हैं कि यह श्राप क्यों और किसके द्वारा दिया गया था।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भीष्म पितामह, महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक रहे हैं, जो महाराज शांतनु और देवी गंगा की संतान थे। उन्हें अपने पिता द्वारा इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त हुआ था। हालांकि जन्म के दौरान उनका नाम देवव्रत रखा गया था, लेकिन जीवन भर विवाह न करने की प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ गया।
शांतनु ने तोड़ा वचन
गंगा ने शांतनु से यह वचन लिया था कि वह कभी उसके किसी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इसी वचन से बद्ध होकर गंगा के अपने 7 पुत्रों को नदी में प्रवाहित करने के बाद भी शांतनु कुछ नहीं बोल सके। लेकिन जब देवी गंगा आठवें पुत्र के साथ भी ऐसा ही करने जा रही थीं, तो शांतनु ने उन्हें रोका और इसका कारण पूछा। इस पर मां गंगा ने उत्तर दिया कि मैं अपने पुत्रों को वशिष्ठ ऋषि द्वारा दिए गए एक श्राप मुक्त कर रही हूं। लेकिन आठवें पुत्र को इस श्राप से मुक्ति नहीं मिल सकी। वह बालक कोई और नहीं, बल्कि भीष्म पितामह थे।
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क्यों मुक्त नहीं हो पाया 8वां पुत्र
पौराणिक कथा के अनुसार, गंगा के वह आठ पुत्र पिछले जन्म में 8 वसु अवतार थे। जिसमें से द्यु नामक एक वसु ने अन्य के साथ मिलकर ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय को चुरा लिया था। जब इस बात का पता ऋषि को चला, तो वह अत्यंत क्रोधित हो गए। गुस्से में ऋषि वशिष्ठ ने सभी को यह श्राप दिया कि वे सभी मृत्युलोक में मानव के रूप में जन्म लेंगे और उन्हें कई तरह के कष्टों का सामना करना होगा।
जब उन सभी को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने ऋषि से क्षमा याचना की। वशिष्ठ ऋषि ने कहा कि बाकी सातों वसु को तो मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन द्यु को अपनी करनी का फल भोगना होगा। यही कारण है कि आठवें पुत्र अर्थात भीष्म पितामह को इस श्राप से मुक्ति नहीं मिल सकी।
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