रावण के देखते ही घास का तिनका क्यों उठा लेती थीं माता सीता, राजा दशरथ के इस वचन का रखा था मान
रामायण में वर्णित इस कथा के बारे में तो लगभग सभी जानते होंगे कि रावण द्वारा माता सीता का अपहरण किया गया था। इसके साथ ही यह प्रसंग भी मिलता है कि जब भी रावण माता सीता के सामने आता था, तो वह एक खास तिनका उठा लेती थीं। इसके पीछे एक बहुत ही खास कारण मिलता है।

माता सीता ने रखा राजा दशरथ के इस वचन का मान।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रामचरितमानस में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार, सीता जी अशोक वाटिका में रावण को अपनी व्यथा सुनाने के लिए तिनके का सहारा लेती हैं। इसी प्रसंग में सीता जी द्वारा राजा दशरथ को दिए गए एक वचन की कथा मिलती है। चलिए जानते हैं इसके बारे में -
तृण धर ओट कहत वैदेही
सुमिरि अवधपति परम् सनेही
क्या है पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार अयोध्या के राजभवन में राजा दशरथ समेत सभी लोग भोजन कर रहे थे। माता सीता ने अपने हाथों से खीर बनाई थी, जो वह सभी को परोसने लगीं, लेकिन तभी बहुत जोर से एक हवा का झौंका आया। उस समय सभी अपनी भोजन की पत्तलों को संभालने लगे। तब सीता जी ने देखा कि राजा दशरथ की खीर में एक तिनका आ गिरा। सीता जी सभी के सामने उस घास के तिनके को हाथ से नहीं निकाल सकती थीं।

राजा दशरथ ने देखा चमत्कार
तब माता सीता ने उस तिनके को एकटक देखना शुरू किया और तब तक पलक नहीं झपकाई, जब तक की वह तिनका जलकर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर नहीं रह गया। इसके बाद सीता जी ने इधर-उधर देखा और उन्हें लगा कि उन्हें किसी ने नहीं देखा, लेकिन यह सारा दृश्य राजा दशरथ भी देख रहे थे। इसके बाद राजा दशरथ ने सीता जी को अपने कक्ष में बुलवाया और यह कहा कि भोजन के समय उनके द्वारा किए गए चमत्कार को वह देख रहे थे।

(AI Generated Image)
राजा ने लिया ये वचन
राजा दशरथ ने सीता जी से कहा कि आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं। साथ ही यह वचन लिया कि आज वह जिस दृष्टि से तिनके को देख रही हैं, वैसे कभी अपने शत्रु को भी न देखें। राजा दशरथ को दिए गए इसी वचन के कारण सीता जी ने कभी रावण को उस दृष्टि से नहीं देखा, वरना वह उसकी दृष्टि से ही राख हो सकता था। राजा दशरथ को दिए गए वचन को याद करने के लिए सीता जी एक तिनका उठा लेती थीं।
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