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    माता तुलसी और भगवान गणेश ने एक-दूसरे को क्यों दिया था श्राप, पढ़िए ये अद्भुत कथा

    By digital deskEdited By: Suman Saini
    Updated: Sat, 01 Nov 2025 04:40 PM (IST)

    हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा बहुत ही पूजनीय माना गया है। लगभग हर घर में यह पौधा पाया जाता है। वहीं सनातन धर्म में भगवान गणेश की पूजा प्रथम पूज्य देव के रूप में की जाती है। आज हम आपको माता तुलसी और भगवान गणेश से जुड़ी एक कथा बताने जा रहे हैं। चलिए इस बारे में एस्ट्रोलॉजर दिव्या गौतम जी से जानते हैं।

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    bhagwan Ganesha aur Tulsi ki katha (AI Generated Image)

    दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। हिंदू धर्म में भगवान गणेश और माता तुलसी की कहानी सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन का सच्ची सीख देती है। यह सिखाती है कि भक्ति में अगर मर्यादा और संयम न हो, तो वह अहंकार में बदल सकती है। माता तुलसी का सच्चा प्रेम और गणेश जी का ब्रह्मचर्य, दोनों ही अच्छे थे, लेकिन जब भावनाएं सीमा पार कर जाती हैं, तो परेशानी शुरू होती है। यह कथा हमें बताती है कि सच्चा प्रेम वही है जिसमें श्रद्धा, समझ और आत्मसंयम तीनों साथ हों तभी जीवन में शांति और संतुलन बना रहता है।

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    विवाह प्रस्ताव प्रसंग

    पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता तुलसी, जो पहले वृंदा नाम की तपस्विनी थीं, गहन तपस्या के पश्चात भगवान गणेश के दर्शन के लिए गईं। जब उन्होंने देखा कि गणेश जी एकांत वन में ध्यानमग्न बैठे हैं, तो उनके दिव्य तेज, सौंदर्य और शांत भाव को देखकर तुलसी जी अत्यंत प्रभावित हुईं। उनके मन में यह भावना उत्पन्न हुई कि भगवान गणेश ही उनके योग्य वर हैं।

    तुलसी जी ने भगवान गणेश से विवाह का प्रस्ताव रखा। गणेश जी ने अत्यंत विनम्रता से उत्तर दिया कि “हे देवी, मैं ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहा हूं और इस जन्म में विवाह नहीं करूंगा।” परंतु तुलसी जी अपने भावों में इतनी लीन थीं कि उन्होंने उनका यह उत्तर स्वीकार नहीं किया और बार-बार आग्रह करती रहीं।

    ganash tulsi i

    माता तुलसी का श्राप

    जब गणेश जी ने बार-बार विनम्रता से विवाह से इंकार किया, तो माता तुलसी अपने भावों पर से नियंत्रण खो दिया। प्रेम से उत्पन्न यह आग्रह क्रोध में बदल गया, और उन्होंने भगवान गणेश को श्राप दिया कि उनका विवाह अवश्य होगा। गणेश जी ने भी शांत भाव से उत्तर दिया कि तुलसी का यह क्रोध स्वयं उनके लिए दुःख का कारण बनेगा। उन्होंने कहा कि तुलसी का विवाह एक असुर से होगा, परंतु वे अपने श्राप से मुक्त होकर एक दिव्य और पूजनीय पौधे के रूप में प्रतिष्ठित होंगी, जिनकी पूजा हर धार्मिक अनुष्ठान में अनिवार्य होगी।

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    लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।