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जीवन दर्शन: जीवन में बनना चाहते हैं सफल इंसान, तो इन बातों का जरूर रखें ध्यान

अध्यात्म से आत्मबल बढ़ता है। आपके भीतर स्थिरता धैर्य शौर्य करुणा दया आदि सभी सद्गुण हैं पर उन्हें विकसित होने के लिए थोड़ा समय और एक अवसर चाहिए। वह समय और अवसर आपको निरंतर ‘ध्यान’ के अभ्यास से मिल सकता है। ध्यान से आपका चंचल मन शांत हो जाएगा और आप अपने भीतर ये सभी गुण विकसित होते हुए देखेंगे।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarSun, 02 Jun 2024 01:53 PM (IST)
जीवन दर्शन: जीवन में बनना चाहते हैं सफल इंसान, तो इन बातों का जरूर रखें ध्यान

श्री श्री रविशंकर (आध्यात्मिक गुरु, आर्ट ऑफ लिविंग)। युवा वह है, जो हमेशा जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहता है। जो हमेशा उत्साहित रहता हो। यदि कोई युवा इस बात की प्रतीक्षा करता है कि उसके जीवन में सब कुछ आसान हो जाए तो वह व्यक्ति युवा नहीं कहलाएगा। जीवन में चुनौतियों से डरे बिना उनका सामना करने में आध्यात्मिक ज्ञान और ‘ध्यान’ की बड़ी भूमिका है। पूजा-पाठ, आराधना-साधना ही अध्यात्म नहीं है। जहां हमारा आत्मबल बढ़े, जहां कोई पराया न लगे, जहां जीवन में मानवीय मूल्य सहज ही बहने लगें और जहां हमारे भीतर अटूट विश्वास, अटूट शक्ति जगे, वही अध्यात्म है। 

अध्यात्म हमारा मूल है। अध्यात्म से आत्मबल बढ़ता है। आपके भीतर स्थिरता, धैर्य, शौर्य, करुणा, दया आदि सभी सद्गुण हैं, पर उन्हें विकसित होने के लिए थोड़ा समय और एक अवसर चाहिए। वह समय और अवसर आपको ‘ध्यान’ के अभ्यास से मिल सकता है। ध्यान से आपका मन शांत हो जाएगा और आप अपने भीतर ये सभी गुण विकसित होते हुए देखेंगे।

अक्सर युवा समझते हैं कि जो महत्व की बात है, वह रसहीन (बोरिंग) होगी। इसलिए युवाओं को अध्यात्म के बजाय दुनिया के आकर्षण अधिक प्रभावित करने लगते हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। अध्यात्म रसहीन नहीं है। जो दुनिया से भी अधिक आकर्षक है, वही अध्यात्म है। यदि एक व्यक्ति को दुनिया के आकर्षण से भी ऊपर उठना हो तो पथ भी ऐसा आकर्षक होना चाहिए, जिसमें बाकी सब अनावश्यक चीजें सहज ही छूट जाएं। अध्यात्मिक पथ पर सारी अनावश्यक बातें अपने आप छूट जाती हैं। 

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युवाओं को यह बात समझनी चाहिए कि अंदर की गहराई के बिना जीवन में कोई बात नहीं बनेगी और ना ही किसी काम में सफलता मिलेगी। काम में सफलता मिलने के लिए अंतर्मुखी और केंद्रित होना चाहिए। जब आप अंतर्मुखी होने लगेंगे तब जीवन में मजबूती आएगी और आप सुखी रहेंगे। आप जो भी सोचेंगे, वह काम होने लगेगा। जब जीवन में सत्व बढ़ता है तो अपने आप संकल्पसिद्धि होने लगती है। हमें कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ता। जब सतोगुण की वृद्धि होती है तो आप दुनिया जीत सकते हैं। आप मुस्कुराते-मुस्कुराते हर तरह की चुनौतियों को पार कर लेते हैं। जब हम अध्यात्म के द्वारा समष्टि चेतना के साथ जुड़ जाते हैं, तभी काम में सफलता मिलती है ।

युवाओं के जीवन की दिशा काफी कुछ उनकी संगत पर निर्भर करती है। हमारा जीवन पानी जैसा है। आप उसको जिस सांचे में ढालते हैं, वह वैसा हो जाता है। आप जैसी संगत में रहते हैं, आपकी जीवन धारा वैसी ही बहने लगती है। अगर मन को चुगली में लगाएंगे तो फिर वो चुगली करने लगेगा, क्रोध में डालेंगे तो क्रोधित रहेंगे। मन को चिंता की झोली में डालेंगे तो चिंतित रहेंगे। जब आप मन को लोभ और लालच में डालते हैं तो दिमाग यही सोचता रहता है कि “अरे, उसने उतना कमाया, इसने इतना किया, मै इतना करूं”।

यदि कोई भी कारण न हो तो भी हम कुछ न कुछ कारण ढूंढ़ ही लेते हैं और ऐसे ही जीवन व्यतीत हो जाता है। लेकिन जब आप सत्संग में जाते हैं तो आपकी ऊर्जा सकारात्मक हो जाती है। जब आप सत्संग में बैठते हैं तो आपकी पूरी चेतना बदल जाती है। आपका मन सकारात्मक हो जाता है और उत्साह, स्फूर्ति और भक्ति से भर जाता है। जब आप मन को भक्ति के वातावरण में डालते हैं, तब आप भक्तिमय हो जाते हैं। और इस तरह जब हम जीवन को प्रेम और अध्यात्म में डालते हैं तो हमारा पूरा जीवन प्रेममय और आध्यात्मिक हो जाता है। 

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आज के युवा कुछ क्षणों के आनंद के लिए नशे की आदतों में फंस जाते हैं, लेकिन ऐसी आदतों से मिलने वाला सुख क्षणिक होता है। उसमें कोई आनंद नहीं रहता, बल्कि थोड़े समय बाद पछतावा, दुःख और नीरसता आ जाती है। जीवन में हमारा पथ ऐसा नहीं होना चाहिए, जिसमें नीरसता छाई हुई हो या कोई आनंद न हो। पथ का लक्ष्य और पथ दोनों ही आनंदमय होना चाहिए। जिसमें मस्ती हो, आनंद हो वही आध्यात्मिक पथ है।

इसीलिए साधु-सन्यासी, महात्माओं के लिए एक प्रथा है कि उनके नाम के आखिर में आनंद जोड़ देते हैं। ऐसा इसलिए है कि वे सत्संग में ढल गए हैं और मस्त हो गए हैं। एक बार जिनको ध्यान का, सुदर्शन क्रिया का और आध्यात्मिक ज्ञान का रस मिल जाता है, फिर उन्हें यही लगता है कि अरे इसमें तो बहुत आनंद है, हमने पहले इसका अनुभव क्यों नहीं किया।