Samudra Manthan: कैसे हुई कल्पवृक्ष की उत्पत्ति? समुद्र मंथन से जुड़ा है कनेक्शन
भगवद्भजन के प्रताप से समस्त कामनाओं का अंत हो जाता है तब साधक को भगवत-रूपमाधुरी सुधा का अमर-अमृत पान प्राप्त हो जाता है। लौकिक-पारलौकिक सुखों के भोगों को भोगना और उनकी परिकल्पना करते रहना यह एक ऐसी मृगतृष्णा है जो मनुष्य के बहुमूल्य जीवन को नष्ट-भ्रष्ट कर देती है। महाराज भर्तृहरि जी ने उपदेशित करते हुए हमें सावधान किया है-भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता।