गीताप्रेस के पाठकों को ‘श्रीकृष्णलीला’ का 84 साल बाद पुन: दर्शन, 1938-40 में प्रकाशित हुई थीं प्रतियां
Shri Krishnaleela Darshan गोरखपुर में गीताप्रेस 84 साल बाद संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी द्वारा रचित श्रीकृष्णलीला दर्शन का पुन प्रकाशन करने जा रहा है। यह पुस्तक भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर उनकी बाललीला तक का अद्भुत वर्णन प्रस्तुत करती है। अब यह आर्ट पेपर पर चार रंगों में प्रकाशित होगी और इसमें चित्रों की संख्या बढ़ाकर 101 कर दी गई है।
गजाधर द्विवेदी, जागरण, गोरखपुर। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर उनकी बाललीला का दर्शन अब गीताप्रेस पाठकों को उपलब्ध कराने जा रहा है। संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी द्वारा रचित 'श्रीकृष्णलीला दर्शन' का 84 वर्ष बाद पुन: प्रकाशन होने जा रहा है। गीताप्रेस ने 1938 में इसे पहली बार प्रकाशित किया था।
दो वर्ष बाद 1940 में पुन: इसका प्रकाशन किया गया। दोनों बार तीन-तीन हजार प्रतियां प्रकाशित की गई थीं। उस समय साधारण पेपर पर प्रकाशित ग्रंथाकर इस पुस्तक का मूल्य 2.50 रुपये था। अब आर्ट पेपर पर यह पुस्तक प्रकाशित की जाएगी। मूल्य अभी तय नहीं किया गया है लेकिन लगभग 300 रुपये इस पुस्तक का मूल्य तय किया जा सकता है।
'श्रीकृष्णलीला दर्शन' में माता देवकी की विदाई, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, बाललीला, मथुरागमन, कंस वध आदि प्रसंगों का अद्भुत वर्णन है। पुरानी पुस्तक में 160 पृष्ठ व 68 चित्र शामिल हैं। पूरी पुस्तक साधारण पेपर पर प्रकाशित है। चित्रों का प्रकाशन आर्ट पेपर पर कर उन्हें अलग से पुस्तक में जोड़ा गया है।
सभी चित्रों के दोनों तरफ प्लास्टिक लगाकर उसे लेमिनेटेड किया गया है, ताकि वे खराब न हों। अब 84 वर्ष बाद 256 पृष्ठों में आर्टपेपर पर चार रंगों में प्रकाशित होने जा रही इस दुर्लभ पुस्तक की 25 हजार प्रतियां प्रकाशित की जाएंगी। इस पुस्तक में लेख व चित्र सभी एक साथ आर्ट पेपर पर ही प्रकाशित होंगे।
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चित्रों की संख्या बढ़ाकर लगभग 101 कर दी गई है। पुस्तक में श्रीकृष्ण बाललीला के 73 प्रसंग हैं। पुस्तक प्रकाशन की प्रक्रिया नवंबर के अंतिम सप्ताह तक पूर्ण होने की उम्मीद है। दिसंबर तक संभावना है कि यह बुक स्टालों पर उपलब्ध हो जाएगी।गीताप्रेस प्रबंधक डा. लालमणि तिवारी ने कहा कि 'श्रीकृष्णलीला दर्शन' बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसीलिए गीताप्रेस ने अपनी स्थापना के शुरुआती वर्षों में ही इसे प्रकाशित किया था। उस समय हमारे पास संसाधन बहुत सीमित थे। इसलिए श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भ्रगवद्गीता समेत कुछ अन्य लोकप्रिय पुस्तकों का प्रकाशन तो होता रहा लेकिन यह पुस्तक नहीं छप सकी।
अब हमारे पास पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं, इसलिए 'श्रीकृष्णलीला दर्शन' का पुन: प्रकाशन करने का निर्णय लिया गया है। आर्ट पेपर पर पुस्तकों की मांग काफी बढ़ गई है, इसलिए इसकी छपाई आर्ट पेपर पर चार रंगों में की जाएगी।
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