मां-बेटी हत्याकांड का पर्दाफाश: जहां सुराग खत्म हुए, वहीं से पुलिस की पांच टीम ने निकाली राह
गोरखपुर में मां-बेटी हत्याकांड की गुत्थी पुलिस के लिए एक चुनौती थी। घटनास्थल पर सुरागों की कमी के कारण, पुलिस ने तकनीकी और आर्थिक पहलुओं पर ध्यान केंद ...और पढ़ें

हर टीम को अलग जिम्मेदारी, किसी ने फुटेज खंगाली, किसी ने रिश्तों की परतें खोलीं। जागरण
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। कमरे में संघर्ष के निशान कम थे, हथौड़ा कपड़े में लिपटा मिला, फिंगरप्रिंट नहीं थे और आसपास के किसी कैमरे में स्पष्ट चेहरा नहीं दिख रहा था। जांच की दिशा बार-बार अंधे मोड़ पर जा रही थी। फोरेंसिक टीम को भी घटनास्थल से ऐसा कोई निर्णायक सबूत नहीं मिला जो सीधे कातिल तक पहुंचा सके। ऐसे में पुलिस ने पूरे केस को तकनीकी रणनीति पर खड़ा किया और शहर के 800 कैमरों, 200 मोबाइल नंबरों और दर्जनों आर्थिक व्यवहारों के विश्लेषण की ऐसी जांच शुरू की, जो अंततः आरोपित रजत तक ले गई। पुलिस के लिए वह एक ऐसा नाम जिसे परिवार ने भी शक के घेरे में कभी नहीं सोचा था।
मां-बेटी हत्याकांड पुलिस के लिए ऐसा केस था, जिसमें शुरू से ही हर कदम अनिश्चितता से भरा दिख रहा था। ऐसे समय में पुलिस ने वह रणनीति अपनाई, जो बड़े शहरों के हाई-प्रोफाइल मामलों में लागू होती है, मल्टी टीम पैरलल इन्वेस्टिगेशन। शाहपुर पुलिस, क्राइम ब्रांच, स्वाट, सर्विलांस और फील्ड इंटेलिजेंस की पांच टीमों ने अलग-अलग दिशाओं जांच शुरू की।
पहली टीम को तकनीकी फ्रंट सौंपा गया, जिसे शहर के 800 कैमरे और संदिग्ध गतिविधियों वाले फुटेज की गहन खोज करनी थी। यह टीम 24 घंटे फुटेज मंगाती, साफ़ करती, फ्रेम दर फ्रेम देखकर संदिग्धों की पहचान करने की कोशिश करती रही।
शुरुआत में तीन दिनों तक कोई सफलता नहीं मिली। फेस पहचान न होने के बावजूद टीम ने बाडी लैंग्वेज, बाइक के पैटर्न, चलने की दिशा और समय के अंतराल जैसे सूक्ष्म संकेतों पर भरोसा रखा। यही धैर्य आगे चलकर निर्णयकारी साबित हुआ। दूसरी टीम को मोबाइल फोरेंसिक और काल डिटेल जांच दी गई। इस टीम ने टावर लोकेशन, मूवमेंट पैटर्न, काल की आवृत्ति, इंटरनेट उपयोग की टाइमिंग और टावर हैंडओवर का विश्लेषण किया।
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तीसरी टीम फील्ड इंटेलिजेंस और मोहल्ले के सामाजिक दायरे को समझने में लगी रही। यह टीम घर-घर जाकर पूछताछ करती, लोगों की आदतें, विवाद, पुराने संवाद, नए मेल-जोल और रिश्तेदारी के पैटर्न को पढ़ती। यह वही टीम थी जिसने सबसे पहले संकेत दिया कि हत्यारा कोई ऐसा भी हो सकता है जिसे घर में प्रवेश करने के लिए किसी अनुमति की जरूरत न हो। मोहल्ले की खामोशी, रात की गतिविधियों और पड़ोसी परिवारों की गैर-मौजूदगी ने जांच को ‘करीबी’ के दायरे में प्रवेश कराया।
चौथी टीम को आर्थिक गतिविधियों की जांच दी गई। इस टीम ने संदिग्धों के बैंक खातों, यूपीआइ लेन-देन, नकदी निकासी, नए खर्च और खरीदारी की टाइमिंग चेक की। पांचवीं टीम पूछताछ, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और घटनाक्रम के पुनर्निर्माण पर केंद्रित थी। यह टीम संदिग्धों के चेहरे, भाषा, उत्तर की स्थिरता और व्यवहार के उतार-चढ़ाव को नोट कर रही थी। इस टीम ने पाया कि रजत बार-बार टाइमलाइन बदल रहा है, कुछ विवरणों को लेकर घबरा रहा है और उसके उत्तर प्राकृतिक नहीं लग रहे। शुक्रवार की रात मोबाइल फोन को कब्जे में लेकर पूछताछ व जांच शुरू हुई तो रहस्य से पर्दा उठ गया।

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