वेटलैंड बढ़े व शिकारी घटे तो पक्षियों को पसंद आने लगी गोरक्षनगरी की हवा, अब तेजी से बढ़ रही इनकी संख्या
Bird Population in Gorakhpur गोरखपुर की हवा और जंगल के बीच स्थित तालाब और नदियां पक्षियों को खूब पसंद आ रही हैं। वेटलैंड के बढ़ने और शिकारियों की संख्या घटने से पक्षियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पिछले तीन वर्षों में सारस की संख्या तीन गुना हो गई है। एशियन ओपनबिल की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है।
जगारण संवाददाता, गोरखपुर। गोरक्षनगरी की हवा और जंगल के बीच स्थित तालाब व नदियां पक्षियों को रास आ रहा है। दूर दराज से आने वाले पक्षी चार से पांच महीने इन जगहों पर अपना डेरा जमाते हैं। इनके ठहराव के लिए गोरखपुर वन प्रभाग क्षेत्र में पढ़ने वाले 92 नदी, तालाब और पोखरों को वन विभाग साफ-सुथरा करा दिया है जिससे पक्षियो को भोजन के रूप में पर्याप्त मछली मिल रही है।
इससे उनका कूनबा भी बढ़ रहा है। तीन वर्ष की गणना पर नजर डाले तो सारस की संख्या में तीन गुणा वृद्धि हुई है। वही इसी प्रजाति का प्रवासी पक्षी एशियन ओपनबिल की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर वर्ष 2021 में पहली बार वन विभाग ने वेटलैंड की गणना के साथ सारस की गणना की। जिसमें वन प्रभाग क्षेत्र में सिर्फ 128 सारस मिले। इसमें 116 व्यस्क और 16 बच्चे शामिल थे। इसके बाद इनकी संख्या को बढ़ाने के लिए सीएम ने वेटलैंड को चिन्हित कर उनकी निगरानी करते हुए पक्षियों के ठहराव की व्यवस्था करने का निर्देश दिया।
साथ ही शिकारियों पर लगाम लगाने के लिए भी कहा। जिसका नतीजा रहा कि वर्ष 2022 में जब दोबारा सारस की गणना हुई तो उनकी संख्या 187 पहुंच गई। जिसमें व्यस्क 169 और 18 बच्चे मिले। इसके बाद वन विभाग ने इनकी निगरानी करते हुए देखभाल दोगुनी कर दी। जिसका असर यह हुआ कि वर्ष 2023 में कुल सारसों की संख्या 426 पहुंच गई।
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इनमें 347 व्यस्क और 79 बच्चे थे। वर्ष 2024 में ग्रीष्मकालीन की गणना में 675 सारस मिले थे। जिसमें 576 व्यस्क और 99 बच्चे थे। अभी शीतकालीन सारस की गणना होना है। जिसे वन विभाग दिसंबर में करेगा।
कैम्पियरगंज क्षेत्र में सारस। सौ. वन विभाग
परतावल, कैंपियरगंज और सहजनवां क्षेत्र में सबसे अधिकवन विभाग के अनुसार गोरखपुर वन प्रभाग में कुल 11 रेंज है। इन रेंजों में कुछ खास क्षेत्र हैं, जो सारस के लिए उपयुक्त है। इन क्षेत्रों में हर दिन सुबह और शाम सारस अपने जोड़ों में दिखाई देते हैं। ऐसे स्थानों पर वन विभाग की टीम प्रतिदिन गश्त कर उनकी गणना और निगरानी करती है। सबसे अधिक सारस परतावल रेंज में मिलते हैं। इसके बाद इनकी संख्या कैंपियरगंज और सहजनवां क्षेत्र में स्थित छोटे-छोटे तालाब, पोखरों और नदियों के किनारे मिलते हैं। इसके अलावा चिलुआताल में भी हर महीने सारस और ठंड के समय प्रवासी पक्षी डेरा डाले दिखते हैं। शिकारियों के नहीं होने से यहां पर वह खुद को सुरक्षित मानते हैं।प्रेम के प्रतीक माने जाते हैं सारसडीएफओ विकास यादव ने बताया कि सारस पक्षी की खास बात यह है कि वह एक ही क्षेत्र में रहते हैं। अगर उन्हें सुरक्षा का अहसास हो जाता है तो उसी क्षेत्र में वह अपना घोंसला बनाकर प्रजनन करते हैं। इस पक्षी को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। अगर सारस के जोड़े में किसी एक की मौत हो जाती है तो दूसरा भी कुछ दिनों के अंदर ही प्राण त्याग देता है। डीएफओ ने कहा कि राजकीय पक्षी सारस की संख्या में हो रही लगातार वृद्धि गोरखपुर वन प्रभाग के लिए सुखद है। यहां की जलवायु और हवा उन्हें पसंद आ रहा है। यही कारण है कि पिछले तीन से चार सालों के अंदर सारस की संख्या पांच गुना बढ़ी है। इसे भी पढ़ें-महाकुंभ में दिखेगा समूह की महिलाओं का हुनर, वोकल फॉर लोकल पर जोर दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाते हैं ओपनबिलएक वर्ष से डेरा जमाए एशियन ओपनबिल मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाते हैं। उपवनाधिकारी डा. हरेंद्र सिंह ने बताया कि यह सारस की प्रजाति का ही पक्षी है। इसका भी प्रमुख भोजन मछली है। तालाब, पोखरों और नदियों के आसपास रहना पसंद करते हैं। इनके चोंच के बीच का हिस्सा गोल आकार में ऊंचा होता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।परतावल, कैंपियरगंज और सहजनवां क्षेत्र में सबसे अधिकवन विभाग के अनुसार गोरखपुर वन प्रभाग में कुल 11 रेंज है। इन रेंजों में कुछ खास क्षेत्र हैं, जो सारस के लिए उपयुक्त है। इन क्षेत्रों में हर दिन सुबह और शाम सारस अपने जोड़ों में दिखाई देते हैं। ऐसे स्थानों पर वन विभाग की टीम प्रतिदिन गश्त कर उनकी गणना और निगरानी करती है। सबसे अधिक सारस परतावल रेंज में मिलते हैं। इसके बाद इनकी संख्या कैंपियरगंज और सहजनवां क्षेत्र में स्थित छोटे-छोटे तालाब, पोखरों और नदियों के किनारे मिलते हैं। इसके अलावा चिलुआताल में भी हर महीने सारस और ठंड के समय प्रवासी पक्षी डेरा डाले दिखते हैं। शिकारियों के नहीं होने से यहां पर वह खुद को सुरक्षित मानते हैं।प्रेम के प्रतीक माने जाते हैं सारसडीएफओ विकास यादव ने बताया कि सारस पक्षी की खास बात यह है कि वह एक ही क्षेत्र में रहते हैं। अगर उन्हें सुरक्षा का अहसास हो जाता है तो उसी क्षेत्र में वह अपना घोंसला बनाकर प्रजनन करते हैं। इस पक्षी को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। अगर सारस के जोड़े में किसी एक की मौत हो जाती है तो दूसरा भी कुछ दिनों के अंदर ही प्राण त्याग देता है। डीएफओ ने कहा कि राजकीय पक्षी सारस की संख्या में हो रही लगातार वृद्धि गोरखपुर वन प्रभाग के लिए सुखद है। यहां की जलवायु और हवा उन्हें पसंद आ रहा है। यही कारण है कि पिछले तीन से चार सालों के अंदर सारस की संख्या पांच गुना बढ़ी है। इसे भी पढ़ें-महाकुंभ में दिखेगा समूह की महिलाओं का हुनर, वोकल फॉर लोकल पर जोर दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाते हैं ओपनबिलएक वर्ष से डेरा जमाए एशियन ओपनबिल मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाते हैं। उपवनाधिकारी डा. हरेंद्र सिंह ने बताया कि यह सारस की प्रजाति का ही पक्षी है। इसका भी प्रमुख भोजन मछली है। तालाब, पोखरों और नदियों के आसपास रहना पसंद करते हैं। इनके चोंच के बीच का हिस्सा गोल आकार में ऊंचा होता है।