एफएफडीसी ने शोध बढ़ाकर अगरबत्ती निर्माण के लिए पांच नए कच्चे उत्पाद खोजे हैं। अभी तक बबूल के पाउडर, कोयला व जिगत (मैदा लकड़ी) से अगरबत्ती बन रही थी। 31 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने अगरबत्ती निर्यात पर रोक लगाई। केवल वियतनाम से ही 800 करोड़ की अगरबत्ती आती थी।
एफएफडीसी का अगरबत्ती निर्माण के लिए मंदिर, मस्जिद, शादी-विवाह के बचे फूलों के अवशेष, गाय के गोबर, नारियल के जूट, तेल निकालने के बाद बची लेमन ग्रास व अगरवुड को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने पर शोध सफल हुआ। इससे आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़े हैं। अगरबत्ती के मापदंड तय कर भारतीय मानक संस्थान को भेजे हैं। वहां से हरी झंडी मिलने पर और बेहतरी आएगी।
अतर (इत्र) : यह प्राकृतिक सुगंध अर्थात फूल, जड़ी-बूटी, मसाले, सुगंधित पौध व अन्य गंध के स्रोत से डेग व भभका पर के माध्यम से बेस तेल चंदन या प्राकृतिक तेल के आसवन से बनता है। इसमें गुलाब, बेला, हिना या शमामा, केवड़ा, मिट्टी, गुल हिना (मेहंदी), मौल श्री, चोया नख व कदंब आदि शामल हैं।
सुगंधित तेल : ये पौधों के विभिन्न हिस्सों जैसे फूल, पत्ते, तना व जड़ से निकाले जाते हैं। इनका उपयोग सुगंध, सुरस, एरोमाथेरेपी, मालिश व त्वचा की देखरेख में प्रयोग होता है। चंदन, गुलाब, बेला, लैवेंडर, टी ट्री, मेंथा, रोजमेरी, नींबू व खस इसके प्रकार हैं।
सुगंधित जल : इन्हें हाइड्रोसोल के नाम से भी जानते हैं। इसमें गुलाब जल, केवड़ा व खस जल हैं। इनका उपयोग मिठाई, शरबत, क्रीम, लोशन बनाने में होता है।
सुगंध : इस उपयोग साबुन, क्रीम, शैंपू, स्प्रे, परफ्यूम, रूम फ्रेशनर, अगरबत्ती में होता है।
फ्लेवर : इनका उपयोग खानपान सामग्री जैसे मिठाई, आइसक्रीम, शरबत, मंजन व पान मसाला में होता है। इसी तरह स्प्रे परफ्यूम भी अलग-अलग तरह के होते हैं।
रोल आन सुगंध : ये एक से लेकर 10-15 ग्राम की शीशी में रोजाना व्यक्तिगत प्रयोग वाली सुगंध है।
एयर फ्रेशनर या एयर-केयर उत्पाद : यह वातावरण को सुगंधित करने वाले उत्पाद होते हैं। इसमें लैवेंडर, लेमनग्रास, आरेंज व नींबू प्रमुख हैं।
मध्यवर्ती व अर्द्ध तैयार सुगंधित उत्पाद : ये कच्चे माल के रूप में प्रयोग होते हैं। मध्यवर्ती माल उद्योगों के बीच फिर से बिकता है। इसमें एरोमा केमिकल, कंक्रीट, एब्सोल्यूट व आइसोलेट्स हैं।
- 23 बड़ी यूनिटें हैं जो चंदन, नागरमोथा व खस का तेल निकालती हैं।
- 350 से अधिक छोटे-बड़े कारखाने और दुकानें हैं वर्तमान में इत्र नगरी में।
- 50 हजार लोग कारखानों से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से पा रहे हैं रोजगार।
- 30 प्रतिशत बढ़ गई है फूलों की खेती, परिवहन, भंडारण में आई बेहतरी।
सुगंध का अनादिकाल से ही महत्व है। जन्म से मृत्यु तक यह व्यक्ति के जीवन का हिस्सा है। कन्नौज के इत्र की मांग बढ़ी है, जबकि प्रदेश सरकार की अच्छी नीतियों से खुशबू का अंदाज बदला है। स्वरोजगार व कारोबार दोनों को उड़ान मिली है। -शुभ्रांत कुमार शुक्ल, जिलाधिकारी कन्नौज।
लोगों का झुकाव प्राकृतिक सुगंध की ओर अधिक है। हिंदू व मुस्लिम धर्मावलंबियों में भी मांग बढ़ने से और बेहतरी आ रही। धीरे-धीरे अतर (इत्र) लोगों की दिनचर्या में शामिल हो गया है। -शक्ति विनय शुक्ला, प्रधान निदेशक, एफएफडीसी कन्नौज।