UP के लाल ने बनाई सुप्रीम कोर्ट में न्याय देवी की मूर्ति, 5 महीने की मेहनत के बाद मिला अंतिम आकार
सुप्रीम कोर्ट में न्याय की नई प्रतिमा स्थापित की गई जिसमें न्याय देवी की आंखों से पट्टी हट गई है और हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब नजर आ रही है। सुप्रीम कोर्ट में स्थापित नई मूर्ति को नंदगांव के नंदभवन मंदिर के सेवायत प्रो. विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने तराशा है। यह परिवर्तन सुप्रीम कोर्ट में पारदर्शिता और समानता के संदेश को दर्शाता है।
संवाद सूत्र जागरण, बरसाना (मथुरा)। कान्हा की क्रीड़ास्थली नंदगांव में जन्मे मूर्तिकार विनोद गोस्वामी के हाथों से तैयार न्याय देवी की मूर्ति सुप्रीम कोर्ट में स्थापित हुई है। खास बात ये है कि पूर्व में न्याय देवी की आंखों पर पट्टी बंधी थी, लेकिन नई प्रतिमा में पट्टी नहीं है। हाथ में भारतीय संविधान है। सुप्रीम कोर्ट में स्थापित नई मूर्ति को नंदगांव के नंदभवन मंदिर के सेवायत प्रो. विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने तराशा है।
विनोद गोस्वामी वर्तमान में नई दिल्ली के कालेज आफ आर्ट में कार्यरत हैं। उन्होंने बताया, यह मूर्ति मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देश पर बनाई गई है। मूर्ति में न्याय देवी को साड़ी पहनाने के साथ ही उनकी आंखों से काली पट्टी हटा दी गई है।करीब पांच माह की मेहनत और कई डिजाइन बनाने के बाद अप्रैल 2023 में इस मूर्ति को अंतिम आकार मिला। फाइबर ग्लास युक्त मूर्ति का वजन करीब 100 किग्रा है। मूर्ति पूरी तरह सफेद है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाते समय तय हुआ कि जब हम न्याय देते हैं तो मूर्ति की आंखों से पट्टी हटनी चाहिए।
न्याय की देवी की आंखों से हटी पट्टी
नई दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट में में न्याय की देवी की नई मूर्ति।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में सुप्रीम कोर्ट और न्याय व्यवस्था पारदर्शिता की ओर कदम बढ़ा रही है। लगातार यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि न्याय सभी के लिए है, न्याय के समक्ष सब बराबर हैं और कानून अब अंधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में बदलाव हुआ है।
न्याय की देवी की आंखों की पट्टी हट गई है और इसके अलावा उसके हाथ से तलवार भी हटा दी गई है। अब न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में पुस्तक है जो संविधान जैसी दिखती है। इसके अलावा एक और बड़ा बदलाव हुआ है।खुली आंखों से समानता के साथ न्याय करने का संदेश देने वाला यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट की जजों की लाइब्रेरी में लगी न्याय की देवी की प्रतिमा में हुआ है। इस लाइब्रेरी में न्याय की देवी की एक बड़ी सी नई प्रतिमा लगी है, जिसकी आंखों से पट्टी हटा दी गई है।
नई मूर्ति के एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार की जगह एक पुस्तक है, जो कानून की किताब या संविधान जैसी दिखती है, हालांकि उस पर संविधान नहीं लिखा है।प्रधान न्यायाधीश मानते हैं कि कानून अंधा नहीं है बल्कि कानून सभी को समान मानता है। न्याय की देवी के हाथ से तलवार हटाने का भी संकेत शायद औपनिवेशिक काल की चीजों को छोड़ना है।
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