Saint Premanand: गले लगाया और आसन पर विराजमान कर चरण पखारे... आरती उतारी, कौन पहुंचा संत प्रेमानंद से मिलने?
वृंदावन में संत प्रेमानंद से मलूक पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी डा. राजेंद्रदास और महंत किशोरदेव दास जु महाराज मिलने पहुंचे। तीनों संतों ने एक दूसरे का भावपूर्ण स्वागत किया और गुरु तत्व पर सत्संग किया। संत प्रेमानंद ने गुरु के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु के बिना ठाकुर का मिलना दुर्लभ है।

संत प्रेमानंद महाराज। फाइल
संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। ब्रज की अधिष्ठात्री देवी श्रीराधारानी के साधक संत प्रेमानंद से मिलने शनिवार को मलूक पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी डा. राजेंद्रदास देवाचार्य, गोरीलाल कुंज के महंत किशोरदेव दास जु महाराज पहुंचे। तीनों साधकों का भावुक मिलन देख आश्रम में मौजूद संत परिक्रमा आनंदित हो उठा। तीनों साधकों ने एक-दूसरे का भावपूर्ण स्वागत किया और एक-दूसरे को प्रसादी चुनरी ओढ़ाई।
संत प्रेमानंद से मिलने पहुंचे जगद्गरु स्वामी डॉ. राजेंद्रदास, महंत किशोरदेव दास जु
परिक्रमा मार्ग स्थित श्रीराधा केलिकुंज में शनिवार को सुबह करीब आठ बजे मलूक पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी डॉ. राजेंद्रदास देवाचार्य, गोरीलाल कुंज के महंत किशोरदेव दास जु महाराज पहुंचे। संत प्रेमानंद ने दोनों संतों का माल्यार्पण कर गले लगाया और आसन पर विराजमान कर चरण पखारे व आरती उतारी। इसके बाद शुरू हुआ संतों का सत्संग। संत प्रेमानंद ने साधकों से गुरुतत्व पर चर्चा शुरू करते हुए कहा हम साधकों की सबसे बड़ी कमी है कि हम अपने गुरु द्वारा किए गए मंगलमयी प्रतिकूल व्यवहार को वास्तविक प्रतिकूल मानकर उनका अनादर कर देते हैं, उनकी अवज्ञा कर देते हैं। फिर हम भटकना प्रारंभ करते हैं और इतना भटक जाते हैं कि लाड़िलीजी के चरणों से बहुत दूर हो जाते हैं।
संत ने कहा, कि साधक को जब गुरुदेव भगवान प्रतिकूल व्यवहार कर रहे हों, यद्यपि वे प्रतिकूल व्यवहार नहीं कर सकते। श्रीगुरुदेव भगवान आचार्यचरण और प्रियालाल में कोई अंतर नहीं है। हमें लगता है हमारे जीवन में यदि गुरु तत्व की प्राप्ति न होती तो हम हम क्या करते। हमारे प्रियालाल से मिलाने वाले श्रीगुरुचरण ही हैं। यदि हमें गुरुदेव की प्राप्ति नहीं हुई, तो ठाकुर का मिलना दुर्लभ है।

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