वाराणसी में बिजली का कैश काउंटर फिनटेक एजेंसी को देने का विरोध
वाराणसी में बिजली विभाग के कैश काउंटर को एक फिनटेक एजेंसी को देने के फैसले का विरोध हो रहा है। कर्मचारी और स्थानीय लोग इस निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें भ्रष्टाचार बढ़ने, नौकरी जाने और बिजली बिलों में वृद्धि होने की आशंका है। इस फैसले से उपभोक्ताओं में भी चिंता है।

शनिवार को बनारस के बिजलीकर्मियों ने बिजली के निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन किया।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले शनिवार को बनारस के बिजलीकर्मियों ने बिजली के निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि बनारस शहर के कैश काउंटर को फिनटेक एजेंसी को सौंपने का प्रबल विरोध किया जाएगा।
वक्ताओं ने बताया कि घाटे के नाम पर पूर्वांचल विद्युत निगम का निजीकरण करने की कोशिश की जा रही है। बनारस सहित अन्य जिलों में मात्र 20 हजार रुपये में चलने वाले कैश काउंटर को फिनटेक कंपनी को सौंपने का प्रस्ताव है, जबकि इसके लिए 1 लाख 50 हजार रुपये खर्च करने होंगे।
उन्होंने बताया कि निदेशक वाणिज्य से मिलकर पूरे मामले को उनके सामने रखा गया। वार्ता के दौरान निदेशक को बताया गया कि हाल ही में चंदौली सहित अन्य जनपदों में विभागीय कर्मचारियों को हटाकर फिनटेक को राजस्व वसूली में लगाया गया था। लेकिन पिछले महीने की रिपोर्ट में संबंधित खंड का राजस्व कम होने की बात सामने आई, जिसके बाद अधिकारियों ने अपने विभागीय कर्मचारियों को फिर से नियुक्त किया। इसके बावजूद बनारस के कैश काउंटर को फिनटेक को देने की बात हो रही है।
वक्ताओं ने कहा कि कैश काउंटर को फिनटेक कंपनी को सौंपने से वहां कार्यरत कर्मचारियों की नौकरी समाप्त हो जाएगी। इसके अलावा, कैश काउंटर पर हो रही राजस्व वसूली का टेंडर न होने की स्थिति में पूर्वांचल निगम को हर महीने करोड़ों रुपये का नुकसान होगा।
वक्ताओं ने ऐलान किया कि 10 अक्टूबर को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की मीटिंग में लिए गए निर्णय के अनुसार, केंद्र से मिलने वाली वित्तीय सहायता के नाम पर उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश के विद्युत वितरण निगमों को निजी घरानों को सौंपने की कोशिश के खिलाफ उत्तर प्रदेश के बिजलीकर्मी और इंजीनियर देशभर के बिजली कर्मचारियों के साथ मिलकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेंगे।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि बिजली संविधान की आठवीं अनुसूची में है, जो समवर्ती सूची है। इसका तात्पर्य है कि बिजली के मामले में केंद्र और राज्य सरकार के बराबर के अधिकार हैं। ऐसे में ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की मीटिंग में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण का फैसला कैसे लिया जा सकता है?
उन्होंने बताया कि 10 अक्टूबर को हुई मीटिंग में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और राजस्थान के विद्युत मंत्री शामिल थे। इन सभी के बीच सहमति बनी कि विद्युत वितरण निगमों को केंद्र से मिलने वाली वित्तीय सहायता के लिए तीन विकल्प दिए जाएं।
संघर्ष समिति ने कहा कि यह सरासर ब्लैक मेलिंग है और चोर दरवाजे से निजीकरण करने की कोशिश है, जिसका देश के 27 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर संयुक्त रूप से विरोध करेंगे। उन्होंने बताया कि नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स की आगामी 03 नवंबर को मुंबई में मीटिंग होगी, जिसमें इस मुद्दे पर विचार विमर्श किया जाएगा।
सभा को सर्वश्री अंकुर पाण्डेय, अरुण कुमार, रमेश कुमार, अनुराग मौर्य, शिवम, कमलेश यादव, रमेश पटेल, नागेंद्र यादव, राजबिहारी पाण्डेय, धर्मेन्द्र यादव, सुनील कुमार, मनीष कुमार, मनोज यादव, प्रवीण कुमार, अरविंद कौशनन्दन, देवेंद्र सिंह, अम्बरेश सिंह आदि ने संबोधित किया।

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