आजादी के 78 साल बाद भी ब्रिटिश कंपनी के अधीन है भारत की यह रेलवे लाइन, सरकार देती है सालाना करोड़ों का भुगतान
स्वतंत्रता के 78 साल बाद भी भारत में एक रेलवे लाइन ब्रिटिश कंपनी के अधीन है। महाराष्ट्र में यवतमाल और अचलपुर के बीच 190 किलोमीटर तक फैली शकुंतला रेलवे ट्रैक ब्रिटिश राज का अवशेष है। भारत सरकार इस रेलवे लाइन के इस्तेमाल के लिए ब्रिटिश कंपनी को सालाना भुगतान करती है। भारतीय रेलवे ने इस ट्रैक को खरीदने की कोशिश की है।

ऑटो डेस्क, नई दिल्ली। देश को आजाद हुए 78 साल हो चुके हैं। इन 78 वर्षों में भारतीय रेलवे ने बहुत तरक्की कर ली है। देश के हर कोने में रेलवे का विस्तार हो चुका है और मकड़ी की जाले की तरह रेलवे लाइन देशभर में बिछी हुई है। अब भारतीय रेलवे जल्द ही बुलेट ट्रेन तक चलाने वाली है। भारतीय रेलवे का इतना विकास होने के बाद भी देश में एक ऐसी रेलवे लाइन है, जो एक ब्रिटिश कंपनी के अधीन है। इतना ही नहीं, भारत सरकार आज भी इसके लिए सालाना एक बड़ी रकम का भुगतान करती है। आइए इस रेलवे लाइन के बारे में विस्तार में जानते हैं कि यह कहां पर है और यह अभी तक एक ब्रिटिश कंपनी के अधीन कैसे है?
यह रेलवे लाइन ब्रिटिश कंपनी के अधीन
भारत में एक रेलवे लाइन एक ब्रिटिश कंपनी के अधीन है। यह रेलवे लाइन महाराष्ट्र में यवतमाल और अचलपुर के बीच 190 किलोमीटर तक फैली शकुंतला रेलवे ट्रैक है। यह ट्रैक ब्रिटिश राज का एक अवशेष है। इस रेलवे लाइन का निर्माण 20वीं सदी की शुरुआत में किलिक निक्सन एंड कंपनी के जरिए किया गया था। इसे बनाने के पीछे का उद्देश्य अमरावती से कपास को मुंबई बंदरगाह तक पहुंचाना था। 1951 में अधिकांश निजी रेलवे लाइनों का राष्ट्रीयकरण हो गया था, लेकिन यह लाइन ब्रिटिश स्वामित्व में ही रही।
स्थानीय लोगों के लिए जीवनरेखा
देश के आजाद होने के बाद भी यह रेलवे ट्रैक एक ब्रिटिश कंपनी के पास है। दशकों तक इस ट्रैक पर केवल एक ट्रेन चलती थी, जिसका नाम शकुंतला पैसेंजर था। यह ट्रेन 190 किमी की दूरी 20 घंटे में तय करती थी और लगभग 17 स्टेशनों पर रुकती थी। अब इस सर्विस को बंद कर दिया गया है, लेकिन स्थानिय लोग इसे दोबारा शुरू करने की मांग कर रहे हैं, उनके लिए एक जरूरी जीवनरेखा थी।
ट्रैक पर चल चुकी हैं भाप से डीजल तक के इंजन
- शुरुआत में इस रेलवे ट्रैक पर ट्रेन मैनचेस्टर में बने ZD-स्टीम इंजन वाली ट्रेन चलती थी, जिसे 1994 में एक डीजल इंजन से बदल दिया गया। आज भी, किलिक निक्सन एंड कंपनी (CPRC के माध्यम से) भारतीय सरकार से इस लाइन के इस्तेमाल के लिए रॉयल्टी प्राप्त करती है।
- इस लाइन को केवल सात कर्मचारियों के जरिए चलाया जाता था, जो टिकट बेचने से लेकर सिग्नल और इंजन को मैन्युअल रूप से संभालने का काम करते हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत सरकार इस लाइन के लिए सालाना करीब 1.2 करोड़ रुपये की रॉयल्टी देती है, लेकिन ब्रिटिश कंपनी ने रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया, जिससे ट्रैक की हालत खराब हो गई है।
- भारतीय रेलवे ने इस ट्रैक को खरीदने की कोशिश की है, लेकिन बातचीत सफल नहीं हुई है। कुछ रिपोर्ट्स का कहना है कि अब सरकार रॉयल्टी का भुगतान नहीं करती, लेकिन स्वामित्व और भविष्य के प्रबंधन को लेकर बातचीत अभी भी चल रही है।
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