Bihar Election: बिहार की इस विधानसभा सीट में यादव ही बनता है विधायक, पार्टी चाहे जो भी हो
बिहार की एक विधानसभा सीट पर अनोखा राजनीतिक चलन है। यहाँ, विधायक हमेशा यादव समुदाय से ही चुना जाता है, चाहे पार्टी कोई भी हो। यादव समुदाय की अधिक आबादी के कारण, उनकी भूमिका चुनावों में निर्णायक होती है। सभी दल इस समुदाय को आकर्षित करते हैं। जातिगत समीकरण इतने मजबूत हैं कि पार्टी या उम्मीदवार गौण हो जाते हैं।

बिहार की इस विधानसभा सीट में यादव ही बनता है विधायक
अजीत कुमार, फुलकाहा (अररिया)। जिले की राजनीति में नरपतगंज विधानसभा सीट हमेशा सुर्खियों में रही है। सीमांचल के इस क्षेत्र को राजनीतिक विश्लेषक बिहार की राजनीति का जातीय आईना भी कहते हैं, क्योंकि यहां हर चुनाव में सामाजिक समीकरण परिणाम तय करते हैं। नरपतगंज का राजनीतिक इतिहास यह दर्शाता है कि यह सीट लंबे समय से यादव समुदाय के प्रभाव में रही है।
1962 से लेकर 2020 तक हुए कुल 15 विधानसभा चुनावों में 14 बार यादव प्रत्याशी ही जीते हैं। यहां यादव मतदाता लगभग 30 प्रतिशत तो मुस्लिम मतदाता लगभग 25 प्रतिशत है। जो यहां जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
अगर राजनीतिक यात्रा पर नजर डालें तो 1962 में पहली बार कांग्रेस के डुमर लाल बैठा यहां से विधायक बने। उसके बाद से सत्ता की बागडोर यादवों के हाथ में रही। 1967 में कांग्रेस के सत्य नारायण यादव ने जीत दर्ज की।
यहां कांग्रेस, कभी जनता दल, कभी भाजपा और कभी राजद अलग-अलग दलों के झंडे बदलते रहे, लेकिन चेहरा अक्सर यादव ही रहा। जनसंघ के जनार्दन यादव, जनता दल के दयानंद यादव, राजद के अनिल कुमार यादव और भाजपा के जयप्रकाश यादव जैसे नाम इस सीट के इतिहास में दर्ज हैं।
दिलचस्प यह भी है कि दल चाहे कोई भी रहा हो, नरपतगंज की जनता ने हर दौर में यादव प्रत्याशियों को ही अपना प्रतिनिधि चुना। यहां यादव मतदाताओं के अलावे मुस्लिम, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों की भी बड़ी आबादी है, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है।
फिर भी, इन वर्गों का झुकाव अक्सर यादव उम्मीदवारों की ओर रहा है, जिसने इस सीट को यादव प्रभाव क्षेत्र की पहचान दी। पिछले दो दशकों में भाजपा और राजद के बीच मुख्य मुकाबला रहा है।
2000 में भाजपा के जनार्दन यादव तो 2005 में राजद के अनिल कुमार यादव ने जीत दर्ज की, 2010 में फिर भाजपा की देवंती यादव तो 2015 में राजद की वापसी हुई और 2020 में भाजपा ने एक बार फिर विजय पताका फहराई। यानी, पार्टी बदली पर जाति नहीं बदली।
विशेषज्ञों का मानना है कि नरपतगंज की राजनीति जातीय पहचान के इर्द-गिर्द घूमती रही है, पर अब हालात कुछ बदलते दिख रहे हैं। क्षेत्र की जनता अब विकास, रोजगार और शिक्षा को भी मुद्दा बना रही है। लगातार आने वाली बाढ़, खराब सड़कें, और युवाओं का पलायन अब स्थानीय नाराजगी का कारण बन रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में यह चर्चा आम है कि अब जनता काम के आधार पर नेता चुनना चाहती है, न कि सिर्फ जातीय आधार पर। यही कारण है कि इस विधानसभा चुनाव को लेकर नरपतगंज में उत्सुकता बढ़ गई है। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि इस बार मुकाबला सिर्फ भाजपा और राजद के बीच सीमित नहीं रहेगा।
जन सुराज के आने से यहां त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है। जन सुराज के कार्यकर्ता लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं और स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता के बीच संवाद बना रहे हैं। ऐसे में पुराने समीकरणों पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।
भाजपा के संगठनात्मक ढांचे और राजद के पारंपरिक यादव–मुस्लिम समीकरण के बीच अगर कोई तीसरी ताकत सक्रिय होती है तो चुनावी तस्वीर बदल सकती है। जानकारों का मानना है कि 2025 का चुनाव नरपतगंज की राजनीति में निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
नरपतगंज के अब तक रहे विधायक
वर्ष | विजयी | दल का नाम |
---|---|---|
1962 | डूमर लाल बैठा | कांग्रेस |
1967 | सत्यनारायण यादव | कांग्रेस |
1969 | सत्यनारायण यादव | कांग्रेस |
1972 | सत्यनारायण यादव | कांग्रेस |
1977 | जनार्दन यादव | जनसंघ |
1980 | जनार्दन यादव | भाजपा |
1985 | इंद्रानंद यादव | कांग्रेस |
1990 | दयानंद यादव | राजद |
1995 | दयानंद यादव | राजद |
2000 | जनार्दन यादव | भाजपा |
2005 | जनार्दन यादव | भाजपा |
2005 | अनिल कुमार यादव | राजद |
2010 | देवयंती यादव | भाजपा |
2015 | अनिल कुमार यादव | राजद |
2020 | जय प्रकाश यादव | भाजपा |
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