Bihar Politics: ओबरा से जदयू के 2 प्रत्याशियों ने किया था नामांकन, फिर पप्पू के साथ हो गया 'खेला'
वर्ष 2010 का ओबरा विधानसभा चुनाव विशेष था। जदयू से प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की जगह निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन किया, चर्चा थी कि उन्हें नीतीश कुमार का समर्थन है। अंतिम दिन प्रमोद सिंह चंद्रवंशी ने भी नामांकन किया। नियमानुसार सिंबल न मिलने पर निरंजन कुमार पप्पू को नाम वापस लेना पड़ा। सोमप्रकाश निर्दलीय चुनाव जीते, प्रमोद सिंह चंद्रवंशी 802 वोट से हार गए।

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। वर्ष 2010 का विधानसभा चुनाव ओबरा के लिए विशेष रहा था। अक्टूबर 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में 23,315 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे जदयू प्रत्याशी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की जगह निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन किया था। प्रचार यह हुआ कि नीतीश कुमार की विशेष कृपा पर जदयू के टिकट पर ओबरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे।
तब व्यवस्था यह थी कि नाम वापसी के दिन तक पार्टी का सिंबल जमा किया जा सकता है। बिना सिंबल के निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन किया। नामांकन के अंतिम दिन प्रमोद सिंह चंद्रवंशी अचानक आनन-फानन में पार्टी सिंबल लेकर आए और नामांकन किया। अब व्यवस्था बदल गई है। अब नामांकन के साथ ही पार्टी का सिंबल देना आवश्यक होता है।
प्रमोद सिंह चंद्रवंशी बताते हैं कि तब कई नेता ऐसे थे, जिन्होंने निरंजन कुमार पप्पू को जदयू का सिंबल मिलने का आश्वासन देकर नामांकन कराया था। बताया कि जदयू का सिंबल निरंजन कुमार पप्पू को नहीं मिला था, इसलिए उन्होंने नाम वापस ले लिया। अगर नाम वापस नहीं लेते तो निर्दलीय लड़ना पड़ता। राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उनके सामने नाम वापसी के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
ओबरा विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था और न ही इस घटना के बाद हुआ। किसी पार्टी से दो-दो प्रत्याशी ने नामांकन कर दिया हो और एक को नाम वापस इसलिए लेना पड़ा हो कि उसे पार्टी ने सिंबल नहीं दिया ऐसा पहली बार हुआ था।
मात्र 802 मत से हारे थे प्रमोद
वर्ष 2010 के चुनाव में ओबरा के थानाध्यक्ष रहे सोमप्रकाश निर्दलीय चुनावी मैदान में थे। राजद से सत्यनारायण सिंह थे जो तत्कालीन विधायक थे। निर्दलीय सोम प्रकाश 36,816 वोट लाकर चुनाव जीत गए। प्रमोद सिंह चंद्रवंशी जदयू के प्रत्याशी रहते 36,014 वोट लाने में सफल रहे और 802 वोट से हार गए।
बिहार में जब एनडीए का लहर था तब इतने कम वोट से प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की हार पार्टी और खुद उनके लिए किसी बड़े आघात से कम नहीं था। इस चुनाव में सत्यनारायण सिंह को मात्र 16,851 मत मिला था। वे चौथे स्थान पर चले गए थे। तीसरे स्थान पर 18,461 मत के साथ भाकपा माले प्रत्याशी राजाराम सिंह थे।
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